50 साल पहले आज ही चांद पर इंसान ने रखा था पहला कदम, यहां जानें मिशन की अनसुनी बातें

21 जुलाई, 1969. 50 साल पहले की वो तारीख, जब इंसान ने चांद पर पहला कदम रखकर इतिहास तो रचा ही था, साथ ही भविष्‍य में सुदूर अंतरिक्ष तक अपनी पहुंच की संभावनाओं के दरवाजे भी खोल दिए थे. 16 जुलाई 1969 को अपोलो-11 की लॉन्चिंग हुई. 21 जुलाई को 2:56 बजे अमेरिकी अंतरिक्ष यात्री नील आर्मस्‍ट्रांग ने चांद पर पहले कदम रखे थे. वह अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी नासा के अपोलो 11 मिशन के तहत चांद पर गए थे. उनके साथ बज आल्ड्रिन और माइक कॉलिंस भी इस मिशन पर गए थे. लेकिन क्‍या आपको पता है इस मिशन की नींव 1961 में ही पड़ गई थी.

1961 में पहली बार अंतरिक्ष में गया था इंसान
1961 में पहली बार इंसान अंतरिक्ष में गया था. तत्कालीन सोवियत संघ (अब रूस) के अंतरिक्ष यात्री यूरी गगारिन ने यह उपलब्धि हासिल की थी. वह सोवियत संघ की ओर से लांच किए गए वोस्‍टोक अंतरिक्ष यान में बैठकर पृथ्वी की कक्षा में गए थे और सकुशल धरती पर वापस आए थे. सोवियत संघ की इस कामयाबी के बाद तत्‍कालीन अमेरिकी राष्‍ट्रपति जॉन एफ केनेडी ने बड़ी घोषणा कर दी. उन्‍होंने ऐलान किया कि अमेरिका अगले 10 साल के अंदर चांद पर इंसान को पहुंचाएगा और उसे वहां से सकुशल वापस लाएगा.

1 दशक की मेहनत के बाद मिली सफलता
तत्‍कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति जॉन एफ केनेडी द्वारा घोषित किए गए चांद पर मानव मिशन के बाद उसे मूर्तरूप देने के लिए नासा पूरी टीम के साथ जुट गई. नासा ने करीब एक दशक तक चांद पर मानव को उतारने के लिए कड़ी मेहनत की. इस दौरान करीब 5 लाख वैज्ञानिकों ने इसमें अपना योगदान दिया. नासा की ओर से 24 घंटे तक कड़ी मेहनत की गई.

लूनर मॉड्यूल बनाने में लगे 6 साल
नासा को चांद पर इंसान को भेजने और वहां से उसे सकुशल पृथ्‍वी पर वापस लाने के लिए एक बेहद शक्तिशाली और मजबूत अंतरिक्ष यान व रॉकेट बनाना था. इसके लिए नासा ने करीब 6 साल तक कड़ी मेहनत करके लूनर मॉड्यूल तैयार किया. इसे नाम दिया गया ईगल. यह लूनर मॉड्यूल चांद की कक्षा में रॉकेट के जरिए पहुंचने के बाद चांद की सतह पर लैंड होना था.

नासा ने चांद तक जाने और वहां से वापस आने के लिए शक्तिशाली रॉकेट इंजन का आविष्कार किया. यह उस समय का दुनिया का सबसे शक्तिशाली कंबशन इंजन था. इसकी क्षमताओं को परखने और उसे बढ़ाने के लिए नासा ने करीब 7 साल तक परीक्षण किए. इसके बाद ही नासा को बेहद शक्तिशाली और सफल रॉकेट इंजन बनाने में सफलता हासिल हुई.

प्रोजेक्‍ट जेमिनी के कारण मिली सफलता
नासा ने अपने मानव चांद मिशन की तकनीक समझने और उसे मूर्तरूप देने की संभावनाओं के लिए 1961 में ही प्रोजेक्‍ट जेमिनी की शुरुआत की. 1966 तक चले इस प्रोजेक्‍ट के तहत 10 बार इंसानों को पृथ्‍वी की कक्षा पर भेजकर वापस धरती पर लाया गया. इस दौरान इंसानों के शरीर और स्‍वास्‍थ्‍य पर पड़ने वाले अंतरिक्ष के प्रभाव को समझा गया. साथ ही कई तकनीकी चीजों को भी समझा गया.

3 अमेरिकी अंतरिक्षयात्रियों की मौत भी हुई थी
चांद पर इंसानों के भेजने से पहले नासा ने एक परीक्षण मिशन भी किया था. अपोलो 1 नामक इस मानव मिशन के तहत तीन अमेरिकी अंतरिक्ष यात्रियों को पहली बार पृथ्‍वी की कक्षा तक भेजकर उन्‍हें वापस धरती पर लाना था. यह नासा के चांद मिशन का रिहर्सल था. 27 जनवरी, 1967 को अपोलो-1 को जब लॉन्‍च किया गया तो इसके केबिन में आग लग गई. इस घटना में तीनों अंतरिक्षयात्रियों वर्जिल आई गस ग्रिसम, एड व्‍हाइट और रोजर बी चैफी का निधन हो गया. नासा के लिए यह बड़ा झटका था. लेकिन नासा ने हौसला बनाए रखा और मिशन को आगे बढ़ाया.

ऐसे चुने गए थे नील आर्मस्‍ट्रांग और 2 अन्‍य
नासा की ओर से चांद पर इंसान के उतरने का मिशन शुरू करने से पहले यह कन्फ्यूजन था कि इस मिशन में किसको शामिल किया जाए. इसके लिए नासा ने अमेरिकी वायुसेना समेत अन्य विभागों में कार्यरत पायलटों और अन्य विशेषज्ञों के बारे में जानकारी जुटाई. नासा को लगा कि चांद मिशन के तहत उन लोगों को भेजा जा सकता है, जो उड़ान का काफी अनुभव रखते हों. इसके तहत नासा ने नए विमानों का परीक्षण करने वाले पायलटों पर गौर फरमाया. नासा ने करीब 15 टेस्ट पायलटों की छंटनी की. अब इन 15 टेस्ट पायलटों में से सिर्फ 3 को चांद पर जाने के लिए चुना जाना था. इसके लिए नासा ने कई परीक्षण किए और हर कसौटी पर खरा उतरने के बाद नील आर्मस्ट्रांग, बज आल्ड्रिन और माइक कॉलिंस को अपने मिशन के लिए चुना.

16 जुलाई को लॉन्‍च हुआ था अपोलो-11
नासा ने करीब एक दशक की मेहनत के बाद 16 जुलाई, 1969 को केनेडी स्‍पेस सेंटर से अंतरराष्‍ट्रीय समयानुसार दोपहर 1:32 बजे लॉन्‍च किया. इसे सैटर्न 5 रॉकेट से लॉन्‍च किया गया था. इस रॉकेट में तीन स्‍टेज थीं. प्रक्षेपण को दुनियाभर में टीवी पर लाइव दिखाया गया. साथ ही लॉन्चिंग साइट के आसपास भी लाखों लोग इसे देखने के लिए पहुंचे थे. जब अपोलो-11 को लॉन्‍च किया गया तो शक्तिशाली इंजन के कारण आसपास की इमारतें हिल गई थीं.

19 जुलाई, 1969 को अपोलो 11 चांद की कक्षा में दाखिल हुआ. लेकिन जब अंतरिक्ष यात्री चांद की कक्षा पर पहुंचे तो उन्हें दिखा कि चांद की सतह काफी उबड़खाबड़ और ऊंची-ऊंची पहाड़ियों की बनी है. चांद की सतह पर गहरे गड्ढे भी थे. अंतरिक्ष यात्रियों को चांद की सतह पर उतरने की सुरक्षित जगह खोजने थी. नासा ने इसके लिए 6 साल की कड़ी मेहनत के बाद उस जगह को पहले ही चिन्हित कर लिया था, जहां अंतरिक्ष यान को उतारा जाना था. नासा ने सुरक्षित स्‍थान की तलाश के लिए कई साल तक बहुत सारे सैटेलाइट चांद पर उसकी तस्वीरें लेने के लिए भेजे. इन सैटेलाइट के जरिए मिली तस्वीरों से ही वहां अपोलो 11 मिशन के तहत इंसान को उतारने की लैंड साइट चिह्नित हो पाई.

20 जुलाई को चांद पर उतरा यान
20 जुलाई को चांद की कक्षा में मौजूद अपोलो-11 के हिस्‍से कोलंबिया से ईगल को अलग करके चांद पर उतारना था. इसके लिए नील आर्मस्‍ट्रांग और बज आल्ड्रिन ईगल पर सवार हुए. माइक कॉलिंस चांद की कक्षा पर मौजूद कोल‍ंबिया पर ही रुके. इस लैंडर ईगल को चांद से वापस उड़ान भरकर कक्षा में मौजूद कोलंबिया से जुड़ना था. नील आर्मस्‍ट्रांग और आल्ड्रिन को लेकर ईगल लैंडर चांद पर 20 जुलाई, 1969 को रात करीब 8 बजे उतरा. इसके बाद दोनों ने कई घंटे तक तैयारी की. फिर 21 जुलाई को 2:56 बजे नील आर्मस्‍ट्रांग ने बतौर इंसान चांद पर पहला कदम रखा. इसके कुछ देर बाद आल्ड्रिन वहां उतरे. दोनों ने चांद की सतह और मिट्टी के नमूने लिए. दोनों ने चांद की सतह पर 21 घंटे और 31 मिनट बिताए.

चांद की सतह पर मिशन पूरा करने के बाद दोनों ईगल में बैठे और चांद की कक्षा में मौजूद कोलंबिया से जुड़ने के लिए उड़ान भरी. यह सब मानव इतिहास में पहली बार हो रहा था. ईगल में ईंधन कम था, लेकिन वे 21 जुलाई को सकुशल कोलंबिया तक पहुंच गए. दोनों यान आपस में जुड़े. ये तीनों अंतरिक्ष यात्री 24 जुलाई, 1969 को पृथ्‍वी पर लौटे. इनका यान प्रशांत महासागर में गिरा. यहां से तीनों को 21 दिनों तक अलग कमरे में रखा गया. ताकि यह जांच की जा सके कि इनमें अंतरिक्ष का कोई संक्रमण तो नहीं हुआ.

लॉन्च के बाद टूट गया था संपर्क
नासा ने 16 जुलाई, 1969 को अपोलो-11 को लांच किया था. इसके बाद कुछ देर के लिए नासा के वैज्ञानिकों का संपर्क इस यान से टूट गया था. फिर ऐसा माना जाने लगा कि अब इस यान से कभी संपर्क नहीं हो पाएगा. लेकिन तीनों अंतरिक्ष यात्रियों ने जब चांद की कक्षा में यान को पहुंचाया तो पृथ्वी पर मौजूद वैज्ञानिकों का संपर्क इस यान से दोबारा जुड़ गया.

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