उ०प्र० खनन घोटाला, जद से जड़ तक गहरी औऱ मज़बूत पकड़ पर लगी लग़ाम

हाईकोर्ट के मौरंग खदानों पर पूरी तरह से रोक लगाने के बाद भी अवैध खनन खुलेआम किया जाता रहा हैं ओर रोक लगाने जैसा प्रभावी कदम किसी भी शासनिक एवं प्रशासनिक स्तर पर पर काटो भरा ही साबित हुआ! प्रदेश में खनन के लिए स्वर्ग माने जाने वाले हमीरपु में हो रहे अवैध खनन के मामले में अब तक सीबीआइ डेढ़ दर्जन से अधिक स्थानों पर पड़ताल कर रही है। अखिलेश यादव के मुख्यमंत्री के कार्यकाल के दौरान गायत्री प्रसाद प्रजापति की सरपरस्ती में यह अवैध खनन का घोटाला सौ करोड़ का आंकड़ा पार कर चुका हैं!

क्या है अवैध खनन घोटाला,

उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यमंत्री मायावती सरकार में खनन मंत्री बने बाबू सिंह कुशवाहा ने बालू खनन का अधिकार कुछ चुनिंदा लोगों को सौप दिया गया था, मौरंग की डिमांड को बढ़ते होने के चलते पट्टों की ज़रूरत के अनुसार, पट्टों के लिए टेंडर निकाले गए, तो टेंडर भरने वालों ने सरकार को होने वाली कमाई और और ज्यादा बढ़ाने के लिए रायल्टी बढ़ा दी. मतलब ये कि हर घन फुट बालू पर सरकार को ज्यादा आमदनी दिखाई देने लगी. जिसने ज्यादा आमदनी दिखाई दी, पट्टे लेने वालों ने ज्यादा पैसे देने का वादा तो कर दिया, लेकिन नेशनल ग्रीन ट्रिबयूनल के कायदे-कानून इतने सख्त थे कि वो सिर्फ तीन मीटर की गहराई तक ही खुदाई कर सकते थे. लेकिन पट्टे हासिल करने वालों ने अपना और सरकार का पेट भरने के लिए 30-30 मीटर की गहराई तक खुदाई शुरू कर दी औऱ यही से शुरू हो गया अवैध खनन का तिलिस्म खेल!

असल में अवैध खनन होता कैसे हैं.?

खनन के काम मे उनकी भी इंट्री हो गयीं, जिनको इस काम की ए बी सी डी तक पता नही थी और एक झटके में रुपये का न्यारा व्यारा करने वालो की पो बारह शुरू हो गया, खनन के लिए खनन और राजस्व विभाग एक सर्वे करके तय करते हैं कि कौन-कौन से इलाके सरकारी नक्शों में खनन के लायक हैं. कौन से नदी के क्षेत्र हैं या कौन से मैदानी क्षेत्र खनन लायक हैं. फिर देखा जाता है कि कौन-कौन से इसमें सरकार के पास हैं. लेखपाल की रिपोर्ट के बाद सरकारी पट्टों को छांटकर नीलामी के लिए पट्टे जारी किया जाते है. लेकिन अब यह पट्टे ई ऑक्शन के जरिए नीलाम किए जाने लगे हैं. जो ज्यादा पैसा देता है सरकार को, उसे सरकार पट्टा सौंप देती, कुछ वर्षों तक यह सारा काम मैनुअल चलता रहा, जो लोग फॉर्म भरते थे, उनमें से छांटकर उसे पट्टा आवंटित कर दिया जाता था.

जबकि नियम यह है कि जिस हालत में पट्टा मिलेगा, उसमें केवल 3 मीटर गहराई तक ही खोदाई की जा सकती है. खनन की तारीख भी तय होती है. इसका सीजन आम तौर पर अक्टूबर से अप्रैल-मई तक का होता है. मॉनसून में खोदाई नहीं की जा सकती हैं, वही रात में भी खुदाई नहीं हो सकती है! अगर कोई इन नियमों का पालन नहीं करता है, तो उस पर जुर्माना लगता है. परन्तु यह अवैध खनन नहीं होता है. अवैध खनन यह है कि बिना पट्टे के कहीं भी किसी भी जगह पर मशीनें उतार दो औऱ जितना संभव हो बालू खोद कर उसे मनमानी कीमत पर बेच दो. इस प्रकार के खनन सरकारी दस्तावेज में दर्ज नहीं होता है. इसलिए न तो सरकार को इसके पैसे मिलते हैं और न ही इसका कोई लेखा-जोखा होता है कि कहां और कितना खनन हुआ है और यह अवैध खनन बन गया सिंडिकेट, औऱ इस अवैध खनन की देखभाल करने उससे वसूली करने का एक सिस्टम तैयार हो गया, जिसे सिंडिकेट कहा जाने लगा.

औऱ यह सिंडिकेट कही किसी कागज़ पर दर्ज नहीं हुए, जिसके बाद यूपी में पट्टों की संख्या बढ़ गयी और शुरू हो गया अवैध खनन! इस अवैध खनन पर नेता, मंत्री औऱ अधिकारियों की नज़र पड़ी तो उनको भी रुपये नज़र आने लगे, इसके लिए सबसे पहले एक नाम सामने आया सहारनपुर का इकबाल. उसने इस सिंडिकेट को चलाने के लिए एक प्लान तैयार किया, कि हर ट्रक पर 8000 से 1000 रुपये की वसूली शुरू कर दी! जो ट्रक खदान के मुहाने पर रुपये देते, उनको एक कोड लिखी कागज की एक पर्ची पकड़ायी जाती थी. यह कागज़ की पर्ची ट्रक के एक लिए परमिट जैसा होता था. इस कोड वाली पर्ची से ट्रक प्रदेश में कहीं भी बिना रोक टोक के आ जा सकता था! औऱ इस तरह से ट्रकों से भारी वसूली शुरू हो गयी और इस सिंडिकेट का सारा पैसे एक जगह इकट्ठा होने लगया और जिसकी सत्ता से नज़दीकियां होती थीं. वहां से अधिकारियों, नेताओं, पत्रकारों, ठेकेदारों और ऊपर तक पहुंचने लगा.

खूब खनन हुआ. वैध की आड़ में अवैध खनन हुआ और इतना हुआ कि पूरा बुंदेलखंड गड्ढे में तब्दील हो गया! और इस खेल में पर औऱ लगने लगे जब वसूली प्रति ट्रक 800-1000 रुपये से बढ़ा कर 2012-13 के आते-आते 3000 रुपये प्रति ट्रक तक हो गयी! जब खनन के पट्टों पर रोक लगई, तो वैध खनन से भी अवैध तरीके से बालू निकाली जाने लगी, वैध खनन भी अवैध तरीके से होने लगा. जिसमें एक ट्रक के लिए जितनी सीमा निर्धारित थी, उससे ज्यादा बालू उस ट्रक पर लादी जाने लगी. अगर कागज़ में एक ट्रक पर 400 घन फुट बालू आती थी, तो उसे ठूंस-ठूंसकर 600-700 घन फुट भरा जाने लगा!औऱ जब यह ट्रक बाहर निकलते तो कागजों पर बालू 400 घन फुट ही होती और लदा होता कई अधिक औऱ इन ओवरलोडेड ट्रकों को भी पर्ची कटवानी पड़ती थी जिससे ये पूरे प्रदेश में कहीं भी आ-जा सकते थे. ऐसे में जिन वैध तरीकों से सरकार को आमदनी होनी चाहिए थी, उस पर विराम लगने लगा!

बदली सरकार और बदल गए नियम,

जब अखिलेश यादव की सरकार बनी, तो उन्होंने बी. चंद्रकला को हमीरपुर का डीएम बना दिया औऱ खनन विभाग का मन्त्रालय अपने पास रखा था औऱ फिर एक नया नियम बनाया गया. तय हुआ कि अब पट्टे ई-टेंडरिंग के जरिए दिए जाएंगे. मतलब ये कि अब ऑनलाइन टेंडर निकलेंगे और पट्टे दिए जाएंगे. हर जिले में ई-टेंडरिंग के जरिए पट्टे दिए गए, लेकिन हमीरपुर इसका अपवाद रहा, हमीरपुर की डीएम पर आरोप लगा कि बी चंद्रकला ने बेतवा और यमुना नदी से मौरंग निकालने के लिए कुल 50 पट्टे जारी कर दिए. इन 50 पट्टों में 11 पट्टे अकेले एमएलसी रमेश मिश्रा और उनके घरवालों के नाम थे.

इसके अलावा कई पट्टे संदीप दीक्षित, संजय दीक्षित और कई और लोगों के नाम कर दिए गए. जब इसकी शिकायत हाई कोर्ट में हुई तो हाई कोर्ट ने जवाब मांगा. सरकार की ओर से किसी ने जवाब नहीं दिया और फिर 2013 में हाई कोर्ट ने नए पट्टे देने पर रोक लगा दी. इस फैसले से पुराने पट्टे चलाने वालों की चांदी हो गई. वो लोग और भी अवैध खनन करने लगे, क्योंकि उन्हें पता था कि अब इस खेल में कोई नया खिलाड़ी नहीं आएगा. नतीजा ये हुआ कि केन, बेतवा, बागेन और चंबल जैसी नदियों से बालू पूरी तरह से निकाल ली गई औऱ नदी पूरी तरह खत्म होने की कगार पर आ गई!

इस सिंडिकेट में लोकायुक्त की एंट्री से अनेक रोचक मोड़ आये, जस्टिस एनके मेहरोत्रा ने जांच शुरू की. जिसमें डॉ. नूतन ठाकुर ने इस मामले को आगे बढ़ाया, लगभग ढाई साल खेल चलता रहा. इसी बीच 2013 में ही अखिलेश यादव ने गायत्री प्रजापति को खनन का राज्यमंत्री बना दिया. 2014 में गायत्री कैबिनेट मंत्री बन गए. फिर आया 11 दिसंबर 2014. ओम शंकर द्विवेदी नाम से एक शख्स ने उत्तर प्रदेश के लोकायुक्त एनके मेहरोत्रा के यहां एक शिकायत की. शिकायत यह थी कि अखिलेश सरकार में खनन मंत्री रहे गायत्री प्रजापति के पास आय से अधिक संपत्ति है. ये संपत्ति अवैध खनन से कमाई गई है.

जब तक जस्टिस एनके मेहरोत्रा मामले की जांच शुरू करते, ओम शंकर द्विवेदी अपनी बातों से ही मुकर गए. जस्टिस एनके मेहरोत्रा ने जांच शुरु करते हुए कहा कि यूपी में हर महीने करीब 150 करोड़ रुपये का अवैध खनन हो रहा है. अवैध खनन के साथ ही टैक्स की चोरी हो रही है और सरकार को मिलने वाली रॉयल्टी का नुकसान हो रहा है. जस्टिस मेहरोत्रा के मुताबिक तीन साल यानि कि 2012 से 2015 के बीच में सरकार को करीब 3450 करोड़ रुपये की रॉयल्टी का नुकसान हुआ था. और ये सारा पैसा गया था सिंडीकेट की जेब में गया. डॉ. नूतन ठाकुर की शिकायत के बाद 30 जनवरी, 2015 को लोकायुक्त जस्टिस एनके मेहरोत्रा ने मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को जांच रिपोर्ट सौंप दी. इस रिपोर्ट के साथ ही जस्टिस मेहरोत्रा ने 1800 पेज के साक्ष्य भी भेजे थे!!

इलाहाबाद हाई कोर्ट का हुआ आदेश

जस्टिस मेहरोत्रा की रिपोर्ट सोपे जाने के बाद भी कोई कार्रवाई नहीं हुई, हाई कोर्ट में दो अलग-अलग पीआईएल दाखिल की गई. पीआईएल दाखिल करने वाले थे अमर सिंह और सोनू कुमार. हाई कोर्ट ने सरकार से जवाब मांगा. लगातार दो बार जवाब मांगा, परन्तु न ही अखिलेश यादव और न ही खनन मंत्री गायत्री प्रजापति ने कोई जवाब दिया. जिसके बाद हाई कोर्ट ने सीबीआई जांच के आदेश दे दिये! 28 जुलाई, 2016 जांच शुरू हुई, कुछ जगहों पर छापेमारी भी हुई, लेकिन सीबीआई के हाथ कुछ नहीं लगा!!

आयी योगी सरकार औऱ जाँच में बढ़ गयी सख्ती

2017 में योगी आदित्यनाथ यूपी के मुख्यमंत्री बने औऱ सरकार बदलते ही सीबीआई की जाँच में तेजी आई औऱ साल 2019 के दूसरे ही दिन एक एफआईआर दर्ज की. इस एफआईआर में कुल 11 नाम थे. बी चंद्रकला (डीएम हमीरपुर), मोइनुद्दीन (खनन अधिकारी, हमीरपुर), राम आसरे प्रजापति (माइनिंग क्लर्क, हमीरपुर) रमेश कुमार मिश्रा (खदान मालिक, हमीरपुर) दिनेश कुमार मिश्रा (खदान मालिक, हमीरपुर), अंबिका तिवारी (खदान मालिक, हमीरपुर), संजय दीक्षित (खदान मालिक, हमीरपुर), सत्यदेव दीक्षित (खदान मालिक, हमीरपुर), रामअवतार सिंह (खदान मालिक, जालौन), करण सिंह (खदान मालिक, जालौन), आदिल खान (अवैध खनन करने वाला लखनऊ और दिल्ली में है घर), सीबीआई ने 11 लोगों के खिलाफ केस भी दर्ज किया है! सीबीआई ने अपनी एफआईआर में कहा है कि 2012 से 2016 के दौरान जो भी खनन मंत्री रहे हैं, उनसे पूछताछ की जा सकती है, औऱ सीबीआई ने अखिलेश यादव और गायत्री प्रसाद प्रजापति से पूछताछ के लिए दबाव बनाना शुरू कर दिया है. जबकि सीबीआई को इस जांच का आदेश 28 जुलाई, 2016 को मिला था, परन्तु ढ़ाई साल तक सीबीआई ढाई कोस का सफर तक तय नही कर पायी. औऱ एफआईआर दर्ज होते ही कुछ लोगों के ठिकाने पर छापे मारी शुरू हो गयी!सीबीआई का लगातार शिकंजा कसते देख अवैध मौरंग खनन करने वाले लोगों की परेशानी बढ़ती जा रही है!

खनन घोटाले की जांच में सीबीआई टीम ने 2 मई 2017 को जिले के बड़े मौरंग कारोबारी व बसपा नेता संजय दीक्षित को तलब किया। संजय दीक्षित की माता-पिता सहित अन्य परिजनों के नाम करीब एक दर्जन खनन के पट्टे थे। इसी के साथ वह सिंडीकेट के भी हिस्सेदार थे। इसके अलावा तीन बार जिले के खनन अधिकारी व इसके बाद भू-वैज्ञानिक के पद पर कार्यरत रह चुके मुईनउद्दीन को सीबीआइ ने तलब कर चार घंटे की लंबी पूछताछ की थी। इसी के साथ जिला पंचायत के अपर मुख्य विकास अधिकारी जेपी मौर्या को भी तलब कर जिला पंचायत के बैरियर व जिला पंचायत की ओर से कराए गए विकास कार्यों में प्रयोग हुई मौरंग की पूछताछ की जा चुकी हैं!

सपा औऱ बसपा शासनकाल से चला खनन सिंडीकेट की जड़ों को सीबीआइ खोजने में लगी हुई है। सीबीआई की जांच सिंडीकेट पर आधारित है। वह सिंडीकेट चलाने वाले व उसकी जड़ें कहां तक फैली हैं इसकी खोज लगातार कर रही है! पूर्व खनिज मंत्री गायत्री प्रजापति से लेकर अन्य अधिकारी व नेता लपेटे में हैं!!

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