ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इस वजह से व्यक्ति होते हैं समलैंगिक
कहते हैं शुक्र का वक्री होना अच्छा नहीं माना जाता है और यह हर प्रकार से जातक को कष्ट ही देता है। इसी के साथ जिस जातक की कुंडली में शुक्र वक्री होता है वे कटुभाषी हो जाते हैं। कहते हैं कई बार सत्य को भी ये लोग इतना अधिक कटुता के साथ बोलते हैं कि सामने वाला व्यक्ति क्रोधित हो जाता है। वैसे हम सभी जानते हैं कि सत्य बोलना अच्छी बात है लेकिन उस सत्य को बोलने का सही तरीका होता है और वक्री शुक्र वाले जातकों के मन में निराशा की ऐसी भावना जागृत होती है कि उनके लिए परिवार, बच्चे, जीवनसाथी, गृहस्थी और अन्य सुखों के प्रति सोच ही बदल जाती है। कहते हैं ऐसा व्यक्ति कई बार महत्वहीन वस्तुओं को भी अत्यधिक महत्व देने लग जाता है और ऐसी अवस्था में व्यक्ति संकुचित एवं सीमित विचारों वाला हो जाता है और सामाजिक और पारिवारिक जिम्मेदारियों से मुंह मोड़ लेता है।
इसी के साथ कहते हैं शुक्र चूंकि यौन इच्छाओं का भी ग्रह है इसलिए इसके वक्री होने के कारण व्यक्ति में भावुकता बढ़ जाती है। जी हाँ, वह अपने प्रेमी या प्रेमिका से ज्यादा प्यार पाने के लिए लालायित हो उठता है और उसे पर्याप्त प्यार नहीं मिलने पर वह संबंधित व्यक्ति के प्रति विद्रोह कर बैठता है। कहते हैं वक्री शुक्र पंचम भाव में होने पर जातक की कन्या संतानें अधिक होती हैं और पुत्र होने पर भी पुत्र की ओर से इन्हें कोई सुख प्राप्त नहीं हो पाता है। जी हाँ, जी क्योंकि ऐसा व्यक्ति जुआरी, लॉटरी और ऐसे ही खेलों में अधिक रूचि रखता है और शुक्र यदि बिगड़ा हुआ हो तो जातक समलैंगिक होता है।