‘नोमोफोबिया’ का शिकार बन सकती है आप स्मार्टफोन की लत से ……

आजकल की भागदौड़ भरी ज़िन्दगी में स्मार्टफोन जीवन के अहम पहलू से कम नहीं है। जिसके चलते लोग मोबाइल फ़ोन के इतने आदी हो गए हैं कि अगर फ़ोन आस पास न हो तो असहज होने लगते हैं। दुनियाभर के शोध से पता चलता है कि यदि कोई लगातार स्मार्टफोन का इस्तेमाल करता है तो वह ‘नोमोफोबिया’ बीमारी से पीड़ित हो सकता हैं। इस बीमारी के कारण पीड़ितों की संख्या दिन प्रति दिन बढ़ती जा रही है।

विशेषज्ञों का मानना है कि इस बीमारी के बढ़ते हुए खतरे से अभिभावक अभी अनजान हैं और उन्हे अपने बच्चों के भविष्य और स्वास्थ्य को लेकर गंभीरता से सोचना शुरू कर देना चाहिए। विशेषज्ञों के मुताबिक, मोबाइल की लत उनके बच्चों को भयंकर शारीरिक तकलीफ दे सकती है। स्मार्टफोन की लत को नोमोफोबिया कहते हैं जिसमे व्यक्ति को हमेशा ये डर रहता है कि कही उसका फ़ोन खो न जाए या कहीं उसके बिना रहना न पड़े। इस बीमारी से ग्रस्त व्यक्ति को ‘नोमोफोब’ कहा जाता है। स्मार्टफोन की लत यानि नोमोफोबिया न सिर्फ हमारे शरीर को बल्कि हमारे दिमागी सेहत को भी प्रभावित करता है।

एक सर्वे के अनुसार 84 फीसदी स्मार्टफोन उपभोक्ताओं ने यह स्वीकार किया कि वे एक दिन भी अपने फोन के बिना नहीं रह सकते हैं। अमेरिका की विजन काउंसिल के सर्वे से पता चला है कि 70 फीसदी लोग मोबाइल स्क्रीन को देखते समय अपनी आंखें सिकोड़ते है जोकि आगे चलकर कंप्यूटर विजन सिंड्रोम बीमारी में तब्दील हो सकता है। इसमें पीड़ित को आंखें सूखने और धुंधला दिखने की समस्या हो जाती है। युनाइटेड कायरोप्रेक्टिक एसोसिएशन का कहना है कि यदि आप लगातार फोन का उपयोग करते है तो इसका सीधा असर कंधे और गर्दन पर पड़ता है। झुके कंधे और गर्दन की वजह से रीढ़ की हड्डी प्रभावित होने लगती है।

झुकी गर्दन की वजह से शरीर सही मात्रा में सांस लेने में समस्या होती है, जिसका सीधा असर फेफड़ो पर पड़ता है। मोबाइल स्क्रीन पर नजरें गड़ाए रखने की वजह से लोगों को गर्दन के दर्द की शिकायत आम हो चली है। इसे ‘टेक्स्ट नेक’ का नाम दे दिया गया है। यह समस्या को ज़्यदातर टेक्स्ट मैसेज भेजने वालों और वेब ब्राउजिंग करने वालों में देखा जाता है। 75 फीसदी लोग बाथरूम में अपने सेलफोन ले जाते हैं, जिससे हर 6 में से 1 फोन पर ई-कोलाई नामक बैक्टीरिया के पाए जाने की आशंका बढ़ जाती है। इस बैक्टीरिया की वजह से डायरिया और किडनी फेल होने की आशंका होती है। दो घंटे से अधिक चेहरे पर मोबाइल की रौशनी पड़ने से 22 फीसदी तक मेलाटोनिन कम हो जाता है। इससे नींद आने में मुश्किल होती जाती है। यानी ज्यादा देर तक मोबाइल देखने से नींद नहीं आने की समस्या हो सकती है।

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