लखनऊ विश्वविद्यालय के ज्योतिर्विज्ञान विभाग में स्थापित वेधशाला में लगे यंत्र सक्रिय हो गए

लखनऊ विश्वविद्यालय के ज्योतिर्विज्ञान विभाग में स्थापित वेधशाला में लगे यंत्र सक्रिय हो गए हैं। इनसे खगोलीय घटनाओं की ही नहीं, ग्रहों की चाल और स्थिति के जरिये काल की गणना हो सकेगी। विभाग के प्रोफेसरों ने लंबे शोध के बाद यह सफलता पाई है।

लखनऊ विश्वविद्यालय में साल 2002 में ज्योतिर्विज्ञान विभाग अस्तित्व में आया था। वर्ष 2004 में यहां वेधशाला की स्थापना हुई। वेधशाला को महामहोपाध्याय पंडित कल्याण दत्त शर्मा का नाम दिया गया। वेधशाला में कई अनूठे यंत्र लगाए गए। इनमें सम्राट, यामोत्तरतुरीय, शंकु , षष्टस्य, पलभा व वलय जैसे यंत्र हैं। शुरुआत में दिन में सूर्य को आधार मानकर फिर आकाशीय तारों के जरिए ग्रहों की स्थिति की सटीक जानकारी हासिल की गई। विभाग के प्रो. विपिन पांडेय ने बताया कि ग्रहों की स्पष्ट स्थिति समझने के लिए वेधशाला स्थापित की गई थी। ग्रहों की चाल व स्थिति से ही काल की सही गणना की जा सकेगी।

क्या कहते हैं अफसर ?

लविवि संयोजक ज्योतिर्विज्ञान विभाग पद्मश्री प्रो. ब्रजेश कुमार शुक्ल का कहना है कि प्राचीन भारतीय ज्योतिष के सिद्धांत ग्रंथों को अच्छी तरह अध्ययन-अध्यापन के लिए वेधशाला अब प्रमुख माध्यम होगी। इसके माध्यम से पंचांग की गणित में संशोधन किए जाने और काल की सटीक गणना हासिल करने में हमने सफलता अर्जित की है।

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