बीजेपी के दुर्ग में दी मात, सपा-बसपा का अगला टेस्ट कैराना में

गोरखपुर और फूलपुर लोकसभा उपचुनाव में बसपा के समर्थन से बड़ी जीत हासिल करने वाली सपा के हौसले बुलंद हैं, तो बीजेपी खेमे में मायूसी. 23 साल पुरानी दुश्मनी को भुलाकर साथ आए सपा-बसपा की अब नजर कैराना लोकसभा सीट पर है, जो बीजेपी सांसद हुकुम सिंह के निधन के चलते रिक्त हुई है.

बता दें कि गोरखपुर और फूलपुर में जीत के बाद सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने बसपा सुप्रीमो मायावती को बधाई देने घर पहुंचे थे. दोनों प्रमुख नेताओं के साथ करीब 40 मिनट तक बातचीत हुई. 2017 विधानसभा चुनाव के बाद सपा के लिए ये पहली जीत मिली है. ऐसे में सपा को बसपा के साथ मिलकर बीजेपी को हराने का फॉर्मूला मिल गया है.

सपा-बसपा में बराबर सीट का फॉर्मूला

2019 लोकसभा चुनाव के लिए सपा और बसपा ने भले ही औपचारिक रूप से गठबंधन न किया हो, लेकिन दोनों के बीच भविष्य में एक साथ चुनावी समर में उतरने का मन बना लिया है. सूत्रों की माने तो सपा और बसपा बराबर सीट के साथ लोकसभा चुनाव में उतरने के लिए सहमत हैं.

ऐसे में सूबे की कुल 80 लोकसभा सीटों में से 40-40 दोनों के खाते में आएंगी.

दोनों का साथ आते हैं ऐसा होगा नतीजा

आगामी लोकसभा चुनाव में दोनों एक साथ उतरते हैं, तो ऐसे में 2017 विधानसभा चुनाव के नतीजों के हिसाब से 57 सीटें सपा और बसपा के खाते में जाएगी. वहीं बीजेपी को महज 23 सीटें मिलेगी. हालांकि 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने 71 सीटें यूपी से जीती थी, जो अब घटकर 68 हो गई हैं. कैरान लोकसभा सीट पर उपचुनाव होना है.

कैरान में बसपा को सपा कर सकती है समर्थन

सपा-बसपा के साथ आने का अगला टेस्ट कैरान लोकसभा सीट है. इसी साल फरवरी में बीजेपी सांसद, हुकम सिंह के निधन से रिक्त हुई है. फुलपुर-गोरखपुर में सपा के पास आने के बाद अब कैराना में माना जा रहा है कि बसपा अपना उम्मीदवार उतार सकती है. ऐसे में बसपा उम्मीदवार को सपा समर्थन कर सकती है. जिस प्रकार फूलपुर और गोरखपुर में बसपा ने सपा उम्मीदवार को समर्थन किया था.

बसपा के फूंक-फूंककर बढ़ते कदम

बसपा इस बार कोई जल्दबाजी के मूड में नहीं है. वो फूंक-फूंककर गठबंधन के लिए कदम बढ़ा रही है. इसीलिए यूपी दोनों सीटों के उपचुनाव में समर्थन देकर टेस्ट किया है. सपा की ओर से सकारात्मक कदम दिख रहे हैं. अखिलेश यादव ने जिस तरह से जीत का श्रेय बसपा को दिया है. इससे मायावती का दिल पसीजा है और उन्होंने पुराने जख्मों पर मरहम लगाकर भविष्य में आगे साथ चलने का रास्ता साफ कर दिया है.

अखिलेश-मायावती की जोड़ी ने पहला टेस्ट किया पास

1993 में मुलायम-कांशीराम ने गठबंधन करके राममंदिर लहर को रोककर बीजेपी के सत्ता में आने नहीं दिया था. उसी तरह मोदी लहर को रोकने में अखिलेश और मायावती सफल हुए हैं. बता दें कि दोनों दलों के पास बीजेपी को सूबे में रोकने के लिए पर्याप्त अंक गणित है. दोनों दलों के पास मजबूत वोट बैंक है, जिसके बूते पर बीजेपी को 2014 जैसा इतिहास दोहराने से रोक सकते हैं.

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