इस वजह से बदलते मौसम में आता है आलस, इसलिए बीमार होते हैं बच्चे

इस समय सभी लोग भारत में सर्दी के जाने का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं. सर्दी जाने के नाम नहीं ले रही है जबकि फरवरी के मौसम में तो सर्दी के लौटने का प्रोग्राम भी शुरु हो जाता है. हफ्ते दस दिन में ठंड के धीमे होने का सिलसिला शुरु हो जाएगा. ऐसे में लोगों में बदलते मौसम के हमारी सेहत पर पड़ते प्रभाव को लेकर चिंताएं होने लगी हैं. ठंड का मौसम जाने से लोगों को ठंड से राहत तो मिलती है, लेकिन कई दूसरी तरह की समस्याएं शुरू हो जाती हैं. इनमें दिन में आलस्य आना, बच्चों को सर्दी जुखाम बुखार जैसे इंफैक्शन होना शामिल हैं.

रंजना दो छोटे बच्चों की मां हैं और अपने बच्चों की सेहत के प्रति काफी संवेदनशील भी हैं. उनका एक लड़का छह साल का है जबकि लड़की केवल तीन साल की है. उन्हें शिकायत रहती है कि हर बार, जब भी मौसम में बदलाव आता है तो उनके बच्चों की तबियत बिगड़ जाती है और उन्हें डॉक्टर के पास ले जाना पड़ता है. रंजना अकेली ऐसी महिला नहीं हैं. वास्तव में ज्यादातर लोग यही मानते हैं कि मौसम में बदलाव कई तरह की बीमारियां लाता है. मजाक में तो लोग यहां तक भी कहते हैं यह मौसम डॉक्टरों की कमाई का मौसम होता है. सवाल यह है कि इसमें कितनी सच्चाई है और अगर है तो क्या बच्चों को इस मौसम में इंफैक्शन और बीमारियों से बचाया जा सकता है?

मौसम से कैसे निपटता है हमारा शरीर
तो पहले बात करें मौसम की. हमारे शरीर में खुद को मौसम के मुताबिक खुद को ढालने की नैसर्गिक आदत होती है. इसे ऐसे समझें कि जब भी हमारे आसपास के मौसम में बदलाव होता है तो हमारा शरीर खुद को उसके प्रभाव से बचने की तैयारी तुरंत शुरू कर देता है. उदाहरण के लिए जब शरीर को ज्यादा तापमान का सामना करना पड़ता है तो हमारी त्वचा से पानी निकलने लगता है, जिसे हम पसीना कहते हैं, वह हमें ठंडक देता है. जब हमें ज्यादा ठंड लगती है तो हमारा शरीर कांपने लगता है जिससे शरीर में थोड़ी गर्मी आ सके और हम ठंड के असर से बच सकें. ऐसा केवल खास मौकों पर ही नहीं होता. शरीर हर मौसम में अंदर ही अंदर अपनी प्रतिरोधक क्षमता का प्रयोग करता रहता है. जैसे ठंड के मौसम में वह शरीर में ज्यादा गर्मी पैदा करता है जिसका हमें पता नहीं चलता, इस मौसम में ज्यादा भूख लगने की यही वजह होती है.

कई दिन तक एक सा मौसम रहे तो यह होता है
जब एक ही मौसम लगातार कई दिनों तक रहता है तब शरीर उससे लड़ने और उससे बचने के तरीके में खुद को एक खास लेकिन नियमित दिनचर्या में ढाल लेता है. लेकिन मौसम के बदलने पर शरीर को एक तरह से अपनी पूरी दिनचर्या में ही बदलाव लाना पड़ता है. ऐसा करने में उसे अतिरिक्त ऊर्जा की जरूरत होती है. यह ऊर्जा उसे लगातार चाहिए रहती है. यह कोई एक बार का मामला नहीं होता. वह ऐसा लगातार करता है और उसका ऊर्जा प्रबंधन एक दिनचर्या बन जाता है.

जब मौसम बदल जाए तो
मौसम बदलने पर शरीर को दिनचर्या बदलने की जरूररत महसूस होने लगती है. उसे अपनी दिनचर्चा में बदलाव करने में काफी ऊर्जा लगानी पड़ती है. ऐसे में लोगों के शरीर में वह उत्साह और चुस्ती नहीं रहती जो बाकी के दिनों में रहती है. वहीं हमारा दिमाग और मन उसी तरह से काम करने की कोशिश करता रहता है. इसी का नतीजा यह होता की हमारे शरीर को थकान जल्दी महसूस होती है और शरीर दिन के समय भी नींद की मांग करता है.

नींद आने के अलावा यह होता है
शरीर की ऊर्जा ज्यादा खर्च होने का असर हमारी प्रतिरोधी क्षमता पर भी पड़ने लगता है. अगर हमने अपनी खुद की ऊर्जा का प्रबंधन का भी ध्यान रखना होता है. वहीं कमजोर शरीर वाले लोगों को समस्याएं होने लगती हैं. प्रतिरोधी क्षमता कमजोर होने से वे आसानी से बीमार पड़ सकते हैं. बच्चों में प्रतिरोधी क्षमता उतनी ज्यादा नहीं होती. यही वजह है कि ऐसे मौसम में बच्चे कुछ-कुछ सुस्त भी नजर आते हैं.

ठंडा-गरम और इंफैक्शन की संभावना
बदलते मौसम में बच्चों की जरूरतें भी तेजी से बदलती हैं. ठंड कम होते ही उन्हें गर्मी जल्दी लगने लगती है, वे जल्दी ही स्वेटर उतार फेंकना चाहते हैं या ठंडा पानी पी लेते हैं. इसी को हम ठंडा-गरम का मामला कहते हैं. कहा जाता है कि ठंडा-गरम बच्चों में बीमारी या इंफैक्शन होते हैं. जैसे ही ठंड कम होती है तो वातावरण में तापमान बढ़ता है. बढ़ा हुआ तापमान बैक्टीरिया और वायरस के पनपने के लिए अनुकूल होता है अगर वातावरण में नमी हो तो वह सोने पर सुहागा हो जाता है. बैक्टीरिया और वायरस फल फूल रहे हों तो इस मौसम में बच्चे उनके प्रभाव में आसानी से और जल्दी ही आ जाते हैं. ऐसा केवल ठंडा-गरम के कारण ही नहीं होता है.

क्या हैं उपाय
पहले तो अपने शरीर को ऊर्जावान रखें. मौसमी फल खाएं, खाना समय पर खाएं और ज्यादा खाना की चिंता न करें. (हां बहुत ज्यादा न खाएं). मौसमी फल खास तौर पर रसीले फल इस मौसम में आने लगते हैं तो उन्हें अपने भोजन में शामिल करने में देर न करें. इस मौसम में ज्यादा ठंडा या ज्यादा गर्म के सेवन से भी बचें. जबकि ऐसा करने से हमेशा ही बचें तो अच्छा है. बच्चे अगर ज्यादा ठंडे पानी की मांग करें उसे टालें थोड़ा रुककर उन्हें समान्य़ पानी दें. इसके अलावा हल्दी वाला दूध और रोटी में घी के साथ ही हल्दी लगाकर देने से शरीर को फायदा मिलता है.

बदलता मौसम को खतरा नहीं
जी हां बदलता मौसम से किसी भी तरह से डरने की जरूरत नहीं है. हां थोड़ी सी सावधानी हमारी परेशानी जरूर कम कर सकती है. अगर हम अपनी और बच्चों की प्रतिरोधी क्षमता को ठीक करने के लिए खान पान ठीक रखें तो हम यह समय बिना किसी परेशानी के निकाल भी सकते हैं. उससे भी अच्छी बात यह है कि ऐसा मौसम लंबे समय तक नहीं रहता है. एक और बात जो अच्छी होती है वह यह का अगर समस्या गंभीर न होते बच्चे मौसमी बीमारियों से जल्दी उबर जाते हैं और जल्दी ठीक भी हो जाते हैं

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