मुख्यमंत्री और राज्यपाल की मौजूदगी वाली लखनऊ में संसदीय पत्रकारिता संगोष्ठी से पत्रकार नाखुश

पत्रकारिता की भलाई के नाम पर सरकारी की टालू खानापूर्ति से लखनऊ के पत्रकार नाराज हैं। बीते सोमवार को उत्तर प्रदेश विधानसभा के तिलक हाल में संसदीय पत्रकारिता पर संगोष्ठी में आउट डेटेड पत्रकारों की घिसी-पिटी बातों से नाखुश पत्रकार सोशल मीडिया पर जुमले कस रहे हैं-

अतीत के अफसाने कब तक सुनाओगे, वर्तमान की बात करो !

बात तो कुछ और हुई थी। हमने मांग भी कुछ और की थी। लेकिन वैसा कुछ नहीं हुआ जैसा हम लोग चाहते थे। महज वही घिसी-पिटी बातें जो हमेशा होती रहती हैं। एक को छोड़कर वही दो-चार चेहरे जो हमेशा डायस पर नजर आते हैं।जो बेचारे दो-चार लोग तीन दशक से वक्त पर वक्त दे रहे हैं। कहीं भी, किसी भी पत्रकारों के डायस पर बैठ जाते हैं या बैठा दिये जाते हैं। चलिए वही सही, पर वो अपने तीस साल पुराने किस्से सुनाने के बजाय आज की पत्रकारिता खासकर विधानसभा सत्र की रिपोर्टिंग के टिप्स देते तो लगता कि हमारी(पत्रकारों की) मांग वाला कार्यक्रम सरकार ने आयोजित किया।

पुराने दौर की पत्रकारिता के किस्से और संस्मरणों के बजाय आज की कवरेज में क्या अच्छा है.. क्या बुरा है! क्या होना चाहिए.. क्या नहीं होना चाहिए ! इसपर बात होती। वरिष्ठ अपने छोटों/जूनियर्स को गाइड लाइन देते। आपस में वार्तालाप होती।

आज की पीढ़ी के पत्रकारों को क्या सीखना चाहिए है.. क्या सुधार लाना चाहिए है ! ब्रेकिंग कल्चर के दौर में क्या चुनौतियां है.. कभी-कभी जल्दीबाजी में अपुष्ट खबर परोस दी जाती है। इससे कैसे निपटें! सोर्स का हवाला हम किस खबर में दे सकते हैं और किसमें नहीं।

आज की पत्रकारिता पुराने अनुभव से क्या सीख ले सकती है ! वर्तमान रिपोर्टिंग स्टोरी पैकेज के हुनर तक महदूद नहीं रह गयी है। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में ब्रेकिंग, फोनों, बाइट की चुनौतियों के साथ वेब रिपोर्टिंग की संस्कृति आज की पत्रकारिता को क्या दिशा दे रही है !

सोशल मीडिया पर राज्य मुख्यालय मान्यता प्राप्त पत्रकार लिख रहे हैं- बीस-तीस दशक पहले रुटीन रिपोर्टिंग छोड़ें अखबारों के वरिष्ठों (डायस विशेषज्ञों) को जरूर बुलाया जाता। ये सब हम सबके आदरणीय और हर दिल अजीज हैं। किन्तु टीवी मीडिया और वेब मीडिया के सक्रिय पत्रकारों को विशेषकर भी बुलाया जाता।

राज्य मुख्यालय के समस्त पत्रकारों के साथ इन सभी वरिष्ठों /रिपोर्टिंग विशेषज्ञों के साथ चर्चा होती। सवाल और जवाब का राउंड होता। विधानसभा सत्र की रिपोर्टिंग के तकनीकी पहलू और उससे जुड़े नियम-कानून/ प्रोटोकॉल की जानकारी दी जाती।

विधानसभा सत्र कवर करने की शुरुआत कर रहे पत्रकारों को यहां की कवरेज की बारीक जानकारियों से अवगत कराया जाता। विधानसभा सत्र शुरू होने की परंपरा क्या है!
प्रश्नकाल क्या होता है !

यहां ब्रीफिंग कब क्यों और कहां हैती है!
सत्र लिटरेचर /एजेंडा हमें रिपोर्टिंग में कैसे मदद करते है! इत्यादि.. इत्यादि..
ऐसा कुछ नहीं हुआ जैसा युवा पत्रकार चाहते थे। यूपी सरकार द्वारा आयोजित विधानसभा के तिलक हाल में संसदीय पत्रकारिता पर संगोष्ठी के बाद से राज्य मुख्यालय के पत्रकारों के तंज मुसलसल सोशल मीडिया में तैर रहे हैं।

-नवेद शिकोह

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