पेरियार की प्रतिमा तोड़ जाने की घटना से PM मोदी नाराज, सख्त एक्शन लेने को कहा

नई दिल्ली. त्रिपुरा में कम्युनिस्ट नेता व्लादिमिर लेनिन की मूर्ति तोड़े जाने के बाद से देशभर में इस तरह की घटनाओं का दोहराव होता दिखाई दे रहा है. त्रिपुरा के बाद तमिलनाडु के वेल्लोर में द्रविड़ आंदोलन के संस्थापक ईवी रामासामी ‘पेरियार’ की मूर्ति को क्षतिग्रस्त किया गया और अब ताजा पश्चिम बंगाल से सामने आया है जहां कोलकाता के कालीघाट में जनसंघ के संस्थापक श्यामा प्रसाद मुखर्जी की प्रतिमा को क्षतिग्रस्त किया गया है. देशभर में बढ़ रही बदले की इन घटनाओं पर पीएम नरेंद्र मोदी ने स्वत: संज्ञान लिया है और इस तरह की घटनाओं को अस्वीकार्य बताया है.

पीएम मोदी ने इस संबंध में गृह मंत्री से भी बात कर ताजा हालात की जानकारी ली है और ऐसी घटनाओं के खिलाफ सख्त एक्शन लेने के लिए कहा है. गृह मंत्रालय ने सभी राज्यों को कहा है कि ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए सभी जरूरी कदम जल्द से जल्द उठाए जाएं. राज्यों के लिए गृह मंत्रालय द्वारा जारी संदेश में कहा गया है कि, ”मूर्ति तोड़ने जैसी घटनाओं में शामिल लोगों के खिलाफ कड़े कानून लगाकर सख्ती से पेश आया जाए”

पश्चिम बंगाल बीजेपी के जनरल सेक्रेट्री सायंतन बसु ने कोलकाता में जनसंघ प्रमुख श्यामा प्रसाद मुखर्जी की प्रतिमा को क्षतिग्रस्त किए जाने की कड़ी निंदा की है. बसु ने कहा कि, ”हम इस घटना की कड़ी निंदा करते हैं और दोषियों के खिलाफ सख्त कार्यवाई की मांग करते हैं”

श्यामा प्रसाद मुखर्जी

कलकत्ता विश्वविद्यालय के वाइस-चांसलर रहे श्यामा प्रसाद मुखर्जी का जन्म 6 जुलाई 1901 को कोलकाता में हुआ था. उनके पिता सर आशुतोष मुखर्जी हाई कोर्ट के जज और शिक्षाविद् थे. डॉ. मुखर्जी ने 1951 में जनसंघ की स्थापना की थी. डॉक्टर मुखर्जी भारतीय जनता पार्टी के वैचारिक प्रमुख हैं. भारतीय जनता पार्टी को भारतीय जनसंघ का उत्तराधिकारी माना जाता है. 1977 में भारतीय जनसंघ का जनता पार्टी में विलय हो गया था.

1980 में जनसंघ के धड़े ने जनता पार्टी से अलग होकर भारतीय जनता पार्टी का गठन किया था. जनसंघ की स्थापना से पहले मुखर्जी हिंदू महासभा के सदस्य थे लेकिन बाद में वो उससे अलग हो गए. अलग विचारधारा होने के बाद भी भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने आजादी के बाद मुखर्जी को अपने मंत्रिमंडल में मंत्री बनाया था. इससे पंडित नेहरू के व्यक्तित्व का अंदाजा तो होता ही है लेकिन ये भी पता चलता है कि डॉक्टर मुखर्जी का चिंतन इतने ऊंचे स्तर का था कि विपक्ष में होने के बाद भी उन्हें मंत्री बनाया गया था. मुखर्जी को उद्योग और आपूर्ति मंत्रालय का कार्यभार सौंपा गया था.

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