ऑपरेशन ब्लू स्टार की गोपनीय फाइलों पर ब्रिटिश कोर्ट देगा फैसला

लंदन: ऑपरेशन ब्लू स्टार के जख्म अब भरने लगे हैं. पंजाब अपने इतिहास को पीछे छोड़ प्रगति की राह पर आगे निकल चुका है, लेकिन 5 जून 1984 की उस रात की टीस कई बार अब भी महसूस की जा सकती है. एक बार फिर ऑपरेशन ब्लू स्टार से जुड़ी ब्रिटिश कैबिनेट कार्यालय की गोपनीय फाइलों को प्रकट करने के लिए सूचना की स्वतंत्रता (एफओआई) के तहत आवेदन पर ब्रिटेन का एक न्यायाधिकरण अपनी व्यवस्था देगा.

समझा जाता है कि ब्रिटिश कैबिनेट कार्यालय की गोपनीय फाइलों में, वर्ष 1984 में हुए ऑपरेशन ब्लू स्टार में ब्रिटेन की कथित संलिप्तता के बारे में जानकारी है. फर्स्ट टायर ट्रिब्यूनल (सूचना का अधिकार) की तीन दिन की सुनवाई मंगलवार से लंदन में होगी जिसमें बहस की जाएगी कि क्या ब्रिटेन के सूचना आयुक्त को कैबिनेट कार्यालय का, फाइलों को सार्वजनिक करने की अनुमति न देने का फैसला बरकरार रखने का अधिकार है.

अपील पर फ्रीलांस पत्रकार फिल मिलेर की ओर से केआरडब्ल्यू ला द्वारा पक्ष रखा जा रहा है. फिल मिलेर इस बात की जांच कर रहे हैं कि अमृतसर स्थित स्वर्ण मंदिर में भारतीय सेना द्वारा चलाए गए अभियान में तत्कालीन मार्गरेट थैचर की अगुवाई वाली सरकार ने किस तरह से सहायता की थी.

मिलेर ने बताया कि एफओआई की अनुमति दी जानी चाहिए क्योंकि यह जानना जनहित में है कि 1984 की त्रासदपूर्ण घटनाक्रम में ब्रिटेन की संलिप्तता किस तरह की थी. तीन दशक पुराने दस्तावेजों के खुलासे से कूटनीतिक संबंधों को कोई नुकसान नहीं होगा. ब्रिटेन और भारत में सूचना का अधिकार कानून है जो राष्ट्रीय अभिलेखागारों में लोक पहुंच के महत्व को रेखांकित करता है. साल 2014 में ब्रिटिश सरकार के दस्तावेजों से खुलासा हुआ था कि ऑपरेशन ब्लू स्टार से पहले भारतीय फौजों को ब्रिटिश सेना ने परामर्श दिया था. ये दस्तावेज 30 साल तक गोपनीय रखने के बाद सार्वजनिक करने के नियम के तहत सामने लाए गए थे.

तत्कालीन ब्रिटिश प्रधानमंत्री डेविड कैमरन ने इस खुलासे के बाद इसकी समीक्षा के आदेश दिए थे. इसके बाद संसद में एक बयान दिया गया जिसमें कहा गया कि ब्रिटेन की भूमिका केवल ‘परामर्श’ वाली थी. बहरहाल, मिलेर की लिखी रिपोर्ट ‘‘सैक्रिफाइसिंग सिख्स: द नीड फॉर एन इन्वेस्टिगेशन’’ पिछले साल जारी हुई जिसमें कहा गया है कि घटना से संबंधित कई दस्तावेज गोपनीय हैं और केवल ‘‘पूर्ण पारदर्शी जांच’’ से ही पता चल पाएगा कि ब्रिटेन की संलिप्तता किस प्रकार की थी.

E-Paper