किसानों को कीमत नहीं, आय चाहिए

किसानों के बकाया कृषि ऋण की माफी और सिंचाई नेटवर्क के विस्तार के जरिये किसी राज्य में कृषि की समृद्धि सुनिश्चित की जा सकती है। लेकिन पंजाब में ये सहूलियतें तो पहले से ही हैं। यहां के 98 फीसदी खेतों में सिंचाई की व्यवस्था है और गेहूं, धान तथा मक्के की उत्पादकता में यह दुनिया में सबसे अव्वल है। फिर यहां के सैकड़ों किसान प्रतिवर्ष आत्महत्या क्यों कर रहे हैं? अगर उत्पादकता और सिंचाई मौजूदा कृषि संकट का जवाब है, तो पंजाब के किसानों के मरने का कोई कारण नहीं है। इससे यही साबित होता है कि भीषण कृषि संकट का कारण उत्पादकता और सिंचाईं से परे है।
 और सबसे बड़ी बात यह कि पंजाब में खाद्यान्न की खरीद की एक व्यापक और विस्तृत प्रणाली है। एपीएमसी मंडियों और खरीद केंद्रों के साथ पंजाब में फसलों की खरीद के लिए देश भर में सबसे अच्छा बुनियादी ढांचा है। यहां गांवों को मंडियों से जोड़ने के लिए ग्रामीण सड़कों का विशाल नेटवर्क भी है। किसानों द्वारा मंडियों में लाए गए 98 फीसदी खाद्यान्न तय मूल्य पर खरीद लिए जाते हैं। सरकार द्वारा घोषित न्यूनतम समर्थन मूल्य पर अपने उत्पाद बेचने में किसान सक्षम हैं, जो मौजूदा बाजार कीमत से ज्यादा होता है।

इसके अलावा पंजाब ने हर छोटे एवं सीमांत किसान के अधिकतम दो लाख रुपये का कर्ज माफ करने की घोषणा की है। हालांकि चुनावी वायदा तो हर तरह के कर्ज (सहकारी, निजी एवं राष्ट्रीयकृत बैंकों से लिए कर्ज) माफ करने का था, लेकिन राज्य ने अब तक छोटे और सीमांत किसानों के लगभग 9,000 करोड़ रुपये के कर्ज माफ करने का वायदा किया है। इनमें से अब तक एक हजार करोड़ रुपये का कर्ज माफ भी किया गया है। इसके विपरीत महाराष्ट्र में शुरू में 34 लाख करोड़ रुपये का कृषि ऋण माफ करने का अनुमान लगाया गया था, पर अब 14 लाख करोड़ रुपये के कर्ज को माफ करने की योजना बनाई गई है। ऐसे ही उत्तर प्रदेश, कर्नाटक, तमिलनाडु और राजस्थान में भी वायदे के विपरीत कर्ज के एक छोटे अंश को ही वास्तव में माफ किया जा रहा है। मुश्किल यह है कि राज्य सरकारों के पास उतने संसाधन नहीं हैं कि वे सभी कृषि ऋण माफ कर सकें। पंजाब में हर किसान की विधवा पर दो से 12 लाख रुपये तक का कर्ज है, जो उसके पति छोड़ गए थे। मैं यह जानकर हैरान रह गया कि बेहतर ग्रामीण बुनियादी ढांचा, सिंचाई और उन्नत प्रौद्योगिकी के बावजूद पंजाब की आर्थिक स्थिति इतनी बदतर कैसे हो गई!
 
ऐसे में, कृषि सुधारों को समझने, पुनः रणनीति बनाने और उसका सूत्र तैयार करने के लिए पंजाब एक बेहतर केस स्टडी बन सकता है। बयानबाजी से परे सुधारों की रणनीति तैयार करने के लिए भविष्य की ऐसी रूपरेखा बनानी होगी, जहां समाज छोटे और सीमांत किसानों को राष्ट्रीय बोझ न समझे। उन्हें परित्यक्त व्यक्ति के रूप में पेश करने के बजाय यह सुनिश्चित करने की चुनौती होनी चाहिए कि ग्रामीणों को कैसे लाभ हो सकता है और वे आर्थिक विकास का हिस्सा किस तरह बन सकते हैं।

फसलों की कीमत निर्धारित करने की नीति से अब हमें किसानों की आय निर्धारित करने की नीति की तरफ बढ़ना चाहिए। किसानों को निश्चित मासिक आय देने की जरूरत है, जो न केवल विश्व व्यापार संगठन के अनुसार हो, बल्कि उन्हें आर्थिक सुरक्षा भी प्रदान करे। कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (सीएसीपी) को किसान आय एवं कल्याण आयोग के रूप में परिणत करने की मांग होनी चाहिए, जिसके पास प्रति किसान परिवार को कम से कम 18,000 रुपये प्रति महीने निश्चित आय देने का अधिकार हो। सबका साथ सबका विकास की शुरुआत इसी से होगी। 

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