आज मालव्य योग में होगा होलिका दहन, रात 8 से 9.06 बजे तक शुभ मुहुर्त

कानपुर। फाल्गुन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि पर गुरुवार को मालव्य योग में होलिका दहन होगा। गुरुवार रात्रि आठ बजे से 9.06 बजे तक होलिका दहन के लिए उत्तम मुहूर्त होगा। इसके बाद भी दहन किया जा सकता है। शुक्रवार को लोग होली खेलेंगे। भारतीय ज्योतिष परिषद के अध्यक्ष केए दुबे पद्मेश के मुताबिक गुरुवार सुबह 8.58 बजे से पूर्णिमा लग जाएगी जो पूरी रात्रि रहेगी।

इस अवधि में पूजन अर्चन से विशेष फल की प्राप्ति होगी। मंत्र सिद्धि के लिए यह विशेष समय होगा।  नगर निगम ने होलिका की आग से सड़क बचाने के लिए मिट्टी बिछा कर उसके ऊपर लकड़ी रखी गई है। लोग होलिका की परिक्रमा करेंगे और गन्ना, जौ, गेहूं, चना आदि की बालियां समर्पित कर सुखमय जीवन की कामना करेंगे। आकर्षण का केंद्र होंगे होलिका के पुतले : एक हजार से अधिक स्थानों पर होलिका का पुतला रखा जाएगा। होलिका की गोद में बैठे विष्णु भक्त प्रहलाद की झांकी आकर्षण का केंद्र होगी। 

अनुदया पूर्णिमा में जलाई जाएगी होलिका

वाराणसी : सनातन धर्म के चार प्रमुख पर्वों में खास होली भी इस बार तिथियों के फेर से अनूठापन लिए होगी। इसकी पूर्व संध्या पर किया जाने वाला होलिका दहन फागुन शुक्ल की अनुदया पूर्णिमा में होगा। कारण यह कि इस बार फागुन शुक्ल पक्ष में पूर्णिमा तिथि का क्षय होने से यह पक्ष 14 दिनों का होगा। अत: एक मार्च को होलिका दाह (भद्रा प्रात: 7.53 से लग रही है जो शाम 6.58 तक है) अर्थात भद्रा के बाद एक मार्च को होलिका दाह शाम 6.58 के बाद ही होगा। फागुन अनुदया पूर्णिमा तिथि एक मार्च को सुबह 7.54 बजे लग रही है जो दो मार्च को प्रात: 6.03 बजे तक रहेगी। इसके बाद 6.04 बजे चैत्र कृष्ण प्रतिपदा तिथि लग रही है। अर्थात दो मार्च को रंगों की होली खेली जाएगी। 
वहीं स्नान दान व्रत की पूर्णिमा एक मार्च की इसी दिन होलाष्टक की समाप्ति, प्रदोष 6.58 के बाद होलिका दहन, ढूंढा राक्षसी पीड़ा परिहारार्थ होलिका पूजन आदि किया जाएगा। दो मार्च को रंगों की होली सर्वत्र खेली जाएगी। इस दिन काशी में चौसठ योगिनी यात्रा व दर्शन पूजन का विधान होता है। इस दिन ही रतिकाम महोत्सव भी मनाया जाता है।

धर्म शास्त्रीय वचन के अनुसार अलग अलग पुराणों का वर्णन -‘प्रदोष व्यापिनी प्रह्लïद  पूर्णिमा फागुनी सदा।, ‘निशागमे पूज्यंते होलिका सर्वतोन्मुखै। अर्थात होलिका दहन में पूर्ण विद्धा प्रदोष व्यापिनी पूर्णिमा ली जाती है। यदि प्रदोष में भद्रा हो तो उसकी मुख घड़ी त्यागकर प्रदोष में दहन करना चाहिए। भद्रा में होलिका दहन करने से जनसमूह का नाश होता है। प्रतिपदा, चतुर्दशी, भद्रा व दिन इनमें होली जलाना सर्वथा त्याज्य है। कुयोगवश यदि जला दी जाए तो वहां के राज्य व मनुष्य भारी उत्पातों से एक ही वर्ष में हीन हो जाते हैं।

सनातन धर्म में चार प्रमुख पर्वों में से अपना प्रमुख स्थान रखने वाला त्योहार होली जो सप्तदीप के राजा हिरण्यकश्यप जो स्वयं को ही ईश्वर मानता था के देव उपासक पुत्र प्रह्लïद की असीम श्रद्धा और उनकी बुआ होलिका द्वारा उसे गोद में लेकर अग्नि में प्रवेश करने पर होलिका का जल जाना (जब कि उसे अग्नि में जलने का वरदान प्राप्त था।) और प्रह्लïद के बच जाने की कथा सभी सनातनी जानते हैं। अर्थात अच्छाई की बुराई पर विजय के प्रतीक स्वरह्लप हर वर्ष होली मनाने की परंपरा युगों पुरानी चली आ रही है। शास्त्र के अनुसार फागुन पूर्णिमा को होलिका दाह तो चैत्र कृष्ण प्रतिपदा को रंगों की होली खेली जाती है।

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