बिकाऊ और बेतहजीब मीडिया के डर से विदेश में शादी रचा रहे भारतीय सेलिब्रिटी

देश के गद्दार हैं.. विदेश में शादी रचा ली… जिस मीडिया ने बनाया उससे बचने के लिए अपने देश में नहीं की शादी..

खासकर पत्रकारों के ऐसे आरोप बिल्कुल बकवास हैं। ये कटु अनुभव रहा है कि जब भारत के बड़े सेलीब्रिटी अपने देश में शादी करते है तो देश की मीडिया चील-कव्वों की तरह नोचने लगती है। फुटेज के लिए दुनिया भर के नाटक शुरू हो जाते हैं। ऐश्वर्या और अभिषेक बच्चन की शादी समारोह के नाटक सब को याद होंगे।

दीपिका और रणवीर की शादी पर मुंह फुलाए पत्रकार कह रहे हैं कि जो मीडिया स्टार बनाती है उससे बचने के लिए इस युगल ने विदेश में शादी करके गद्दारी या एहसानफरामोशी की है। ऐसे पत्रकार बतायें कि किस फिल्म का रिव्यू उन्होंने फाइव स्टार में लंच/डिनर/कॉकटेल पार्टी के बिना लिखा। कितनी बेनाम/स्ट्रेगलर/गरीब/प्रतिभावान दीपिकाओं और रणवीरों का इंटरव्यू छापा।किसी बड़ी फिल्म के प्रचार का करोड़ों का बजट होता होता है। जिसमें आधा विज्ञापनों का तो आधा मीडिया की खातिरदारियों /दावतों/शराब और डग्गों (उपहार) और पेड न्यूज/फीचर/इंटरव्यू का होता है।

बड़ी-बड़ी पीआर एजेंसियों के माध्यम से आगामी फिल्मों के स्टार कलाकारों के पेड इंटरव्यू छपते हैं। फिल्म प्रमोशन के लिए शहरों शहरों स्टार कलाकार प्रेस कांफ्रेंस करते हैं। जिसमें मीडिया के लिये फाइव स्टार होटलों में खाने-पीने के शाही इंतजाम होते हैं। बिना लंच-डिनर/ कॉकटेल/के प्रेस कांफ्रेंस हो तो पत्रकार उसे सूखी कांफ्रेंस बता कर कवरेज को भी सूखा साबित कर देते है। ये आरोप मैं ऐसे ही नहीं लगा रहा हैं। अपवाद को छोड़ दीजिए तो ये हक़ीक़त है। क्योंकि मैंने तकरीबन 25 वर्ष की पत्रकारिता में करीब दस-बारह वर्ष फिल्म/इंटरटेनमेंट /फैशन/कल्चर बीट पर कई बड़े अखबारों में काम किया। और ये सारी चीजें करीब से देखीं। लता मंगेशकर, अमिताभ बच्चन से लेकर दिलीप कुमार और ऐश्वर्या राय जैसे दर्जनों सुपर स्टार के इंटरव्यू किये। सौ से अधिक फिल्मों की समीक्षायें/रिव्यू लिखे। पीआर एजेंसियों की खातिरदारियों के साथ मैंने मुंबई /दिल्ली की हवाई यात्रायें पर (ये तब की बात है जब हवाई जहाज का टिकट बहुत मंहगा होता था) फिल्म और टीवी शो प्रमोशन /फैशन शो जैसे कार्यक्रम कवर करने गया। ऐसे में मेरे जैसा पैदल आदमी भी फाइव स्टार होटल में ठहराया जाता है। खातिरदारियों में थोड़ी भी कमी हो जाये तो ऐसे नाराज होने लगते हैं जैसे बदमाश बाराती दुल्हन के घर वालों पर धौस दिखाते हैं।

तजुरबों का सूरत-ए- हाल सामने है। अब बताइए क्या कभी किसी गरीब और स्ट्रेगलर कलाकार की प्रतिभा को आगे बढ़ाने के नेक मकसद और कला का सम्मान करने के लिए बेनाम प्रतिभावान कलाकार को मीडिया आगे बढ़ाता होगा !

सच ये है कि मीडिया वालों को ये स्वीकार कर लेना चाहिए है कि मीडिया बिकाऊ है। इसमें बुरा भी कुछ नहीं है। वक्त के साथ सब कुछ बदल गया तो पत्रकारिता मिशन क्यों रहेगी। जब पत्रकारिता प्रोफेशन हो गई है। चैनल-अखबार, न्यूज वेबसाइट.. प्रोफेशनल रंग में हैं तो जाहिर है कि सब कुछ पैसे और खरीद-फरोख्त.. गिव एंड टेक पर आधारित है। देश-दुनिया की हर दुकान का माल बिकाऊ है तो मीडिया की दुकान को बिकाऊ स्वीकार कर लेने में क्या हर्ज है।

देश का कोई सेलीब्रिटी शादी रचाये तो उनके करोड़ों प्रशंसकों को अपने स्टार की शादी का हर मंजर देखने की ललक होती है। इसलिए बिन बुलाए मेहमान बन कर बेचारे पत्रकार अपनी नौकरी बचाने के चक्कर में बदहवास हो जाते हैं। छीना-झपटी, उछल फांद, जासूसी… और पत्रकारिता की गरिमा भूलकर बेतहज़ीब हो जाते हैं। सेलिब्रिटी की खुशी के जश्म में ऐसे टूट पड़ते हैं जैसे जंगल में पड़ी लाश पर चील-कव्वे और गिद्ध।

तो भइया ऐसे हालात में देश के सेलिब्रिटी अपनी शादियाँ मजबूरीवश विदेश में रचा रहे हैं तो इसका जिम्मेदार कौन है!

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