हुमला जुमला के घोड़े हैं जौलजीवी मेले की शान, जानिए आखिर क्‍यों है इनकी डिमांड

तीन देशों की संस्कृति के प्रतीक जौलजीवी मेले में नेपाल के हुमला जुमला के घोड़ों का जलवा बरकरार है। 109 साल के मेले ने बहुत रंग देखे लेकिन हुमला जुमला के घोड़ों का अस्तित्व यथावत रहा। आज जब पर्वतीय क्षेत्रों में सड़कों का जाल बिछ चुका है। दुर्गम क्षेत्र खच्चर और घोड़ा युग से मोटर युग में तब्दील हो चुका है, तब भी हुमला जुमला के घोड़ों की मांग बनी है। पर्वतीय क्षेत्र में सामान ढोने से लेकर चार धाम यात्रा से कैलास मानसरोवर यात्रियों सहित सामान ढोने के लिए हुमला जुमला के घोड़े पहली पसंद बने हैं।  

आज से 109 साल पूर्व जब अस्कोट पाल राजवंश ने भारत, नेपाल और तिब्बत की सीमा से घिरे सीमांत में हिमालय से निकलने वाली दो विशाल नदियों काली गंगा और गोरी गंगा के संगम स्थल पर मेला प्रारंभ किया। इस मेले के माध्यम से पहाड़ और मैदान को तब के दौर में जोड़ने का यह पहला प्रयास था। पाल राजवंश के इस प्रयास से इस क्षेत्र में व्यापार के द्वार खुले। नेपाल और तिब्बत के व्यापारियों और जनता ने भाग लिया। इस मेले में भारत और नेपाल के स्थानीय उत्पाद को बाजार मिला तो बाहर से आने वाले सामान से स्थानीय आपूर्ति हुई। मेले की विशेषता यह रही कि यहां पर जानवरों का भी व्यापार होने लगा।

बर्फीले स्थानों पर चलने में माहिर हैं हुमला जुमला के घोड़े

नेपाल के हुमला जुमला  से घोड़े के व्यापारी घोड़े लेकर यहां पहुंचने लगे। भारत से घोड़ों के खरीदार पहुंचने लगे । पर्वतीय क्षेत्र में बर्फीले स्थानों पर चलने में माहिर हुमला जुमला के घोड़े सभी का ध्यान खींचने लगे। जब पूरा क्षेत्र पैदल था तो इन घोड़ों की मांग काफी अधिक थी। नेपाल में घोड़े खरीद कर काली नदी तैरा कर भारत लाया जाता रहा। यह प्रक्रिया आज भी जारी है। अलबत्ता अब सड़कों की वजह से मांग घट चुकी है परंतु आज भी हुमला जुमला के घोड़ों की मांग काफी अधिक है।

हुमला, जुमला से जौलजीवी पहुंचने में लगते हैं पंद्रह दिन

नेपाल के हुमला , जुमला वर्तमान में करनाली अंचल में आता है। हुमला जिला नेपाल के तिब्बत सीमा से लगा अंतिम जिला है। जहां पर शीतकाल में बर्फ गिरती है। इस वर्ष भी जब केदारनाथ में पहली बर्फबारी हुई उसी दिन हुमला जुमला में भी बर्फ गिर गई थी। इन जिलों में घोड़े का व्यापार सबसे अधिक होता है। इस ऊंचाई में जहां भारत, नेपाल के अन्य क्षेत्रों में भेड़, बकरी पालन होता है वहीं हुमला, जुमला में घोड़ा पालन होता है। बर्फीले क्षेत्र के ये घोड़े पर्वतीय क्षेत्र में दुर्गम चढ़ाई से लेकर किसी  भी मार्ग पर सहजता से सामान और मानवों को पीठ पर ढोते हैं। हुमला,जुमला से घोड़ों को जौलजीवी लाने में 15 दिन का समय लगता है। मेला 14 से प्रारंभ हुआ । हुमला ,जुमला से घोड़ो के व्यापारी चार नवंबर के आसपास चलते हैं और 19 नवंबर तक जौलजीवी पहुंचते हैं।

चार धाम और कैलास मानसरोवर यात्रा के लिए रहती है मांग

उत्तराखंड में होने वाली कैलास मानसरोवर यात्रा, बद्रीनाथ, केदारनाथ,यमुनोत्री और गंगोत्री यात्रा में हुमला, जुमला के घोड़ों की मांग रहती है। बर्फीले क्षेत्र के ये घोड़े इन यात्राओं में यात्रियों से सामान ढोने से लेकर सामान ढो रहे हैं।

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