आखिर क्यों जीत के बाद स्वर्ण पदक को रखा जाता है दांतों तले, आइये हम बताते है इसका राज
देश-दुनिया में ऐसी कई रिवाज हैं जिन्हें हम निभाते हैं, लेकिन उनको करने के पीछे का कारण नहीं जानते हैं। ऐसा ही एक रिवाज है स्वर्ण पदक जीतने के बाद उसे दांतों तले रखना। जी हाँ, आपने कई खिलाडियों को ऐसा करते हुए देखा होगा। लेकिन क्या आप इसके पीछे का राज जानते है कि ऐसा क्यों किया जाता हैं। तो आइये आज हम बताते हैं आपको इसका राज।
दरअसल अपना पदक अपने दांतों तले दबाने कि शुरुआत हुयी एथेंस में हुए पहले ओलंपिक्स से, जहाँ पहली बार खिलाड़ियों को ऐसा करते देखा गया था।
हालांकि ये प्रसिद्द प्रथा 1912 में स्टॉकहोल्म में हुए ओलंपिक्स में बंद हो गयी थी। 1912 ओलंपिक्स से पहले इन प्रतिष्ठित मेडल्स में इस्तेमाल हुआ सोना 100 प्रतिशत खरा होता था। जी हाँ आपने बिलकुल सही पढ़ा 100 प्रतिशत खरा, लेकीन अब मिलावट के इस दौर में अब 2016 ओलंपिक्स के स्वर्ण पदक में इस्तेमाल हुआ सोना होता है सिर्फ 1।34 प्रतिशत खरा होता है।
दरअसल असली सोने की पहचान करने का एक पारंपरिक तरीका उस पर दांत लगाने से उस पर पड़े निशान से हो जाता है इसी बात के चलते खिलाड़ी अपने स्वर्ण पदक को दांतों तले दबाते हैं। कहा जाता है कि खिलाड़ी जीत के बाद स्वर्ण पदक तुरंत अपने दांतों तले दबाते हैं, जिससे उन्हे सोने के असली नकली होनी का पता चल सके।