शिअद की सियासी उलझन का लोगोंवाल को मिला फायदा, दोबारा बने एसजीपीसी प्रधान

शिरोमणि अकाली दल में टकसाली नेताओं की नाराजगी का फायदा गोबिंद सिंह लोगोंवाल को मिला। पार्टी में मची सियासी उलझन के बीच सुखबीर सिंह बादल ने एक बार फिर लोगोंवाल पर पर भरोसा जताया। जनरल इजलास में लोगोंवाल को फिर से शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी का प्रधान चुना गया। वहीं, रघुजीत सिंह विर्क को सीनियर वाइस-प्रेजीडेंट, बिकर सिंह चानो को जूनियर प्रेजीडेंट और गुरबचन सिंह करमूवाल को महासचिव चुना गया।

सूत्रों के मुताबिक लोगोंवाल का प्रधान बनना पहले से ही तय था। एसजीपीसी सदस्यों द्वारा सुखबीर बादल को अध्यक्ष चुनने का अधिकार दे दिया गया था। इसके बाद तय माना जा रहा था कि लोगोंवाल के नाम पर मोहर लग जाएगी। इस पद की दौड़ पूर्व मंत्री तोता सिंह और माझा से अरविंदर पाल सिंह पखोके भी शामिल थे, लेकिन बागी टकसाली अकालियों को कमजोर करने के लिए सुखबीर ने फिर से लोगोंवाल पर भरोसा जताया।

अकाली सरकार में मंत्री रह चुके हैं लोंगोवाल

लोंगोवाल चार बार विधायक रह चुके हैं। तीन बार वह शिअद के टिकट पर चुनाव जीते। वह अकाली सरकार में मंत्री भी रहे हैं। वह शिरोमणि अकाली दल के अध्यक्ष सुखबीर सिंह बादल के करीबी व विश्वासपात्र  माने जाते हैं। माना जा रहा है कि इसी कारण उन्हें यह पद दोबारा हासिल हुआ है।

पिछली बार विधानसभा चुनाव हार गए थेगोबिंद सिंह लोंगोवाल अकाली दल के प्रधान रहे संत हरचंद सिंह लोंगोवाल के शिष्य थे। संत हरचंद सिंह लोंगोवाल ने गोबिंद लोंगोवाल को अपना उत्तराधिकारी भी घोषित किया था और श्री गुरुद्वारा कैंबोवाल (लोंगोवाल) की गद्दी सौंपी थी। चार बार विधानसभा पहुंचे संत गोबिंद सिंह लोंगोवाल 1997 की सरकार में सिंचाई राज्यमंत्री रहे हैं।

वह 1985, 1997 व 2002 तीन बार धनौला विधानसभा सीट से जीतने के बाद 2007 में उन्हें शिकस्त खानी पड़ी थी। फिर नई हलकाबंदी के चलते धनौला विधानसभा क्षेत्र भंग होने के कारण अकाली दल ने उन्हें 2012 में धूरी विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ाया, जिसमें उन्हें शिकस्त मिली।

उन्‍होंने 2015 में धूरी से कांग्रेस विधायक अरविंद खन्ना के त्यागपत्र देने के बाद हुए उपचुनाव में उन्होंने विजय हासिल की। फिर 2017 के चुनावों में धूरी से सुखबीर बादल के खासमखास हरी सिंह को टिकट मिलने के चलते लोंगोवाल को तत्कालीन वित्तमंत्री परमिंदर सिंह ढींडसा की सीट सुनाम से चुनाव लड़ाया गया था, जहां उन्हें हार मिली।

एसजीपीसी : सिखों की मिनी पार्लियामेंट

एसजीपीसी सिखों की मिनी पार्लियामेंट मानी जाती है। ऐसे में सभी की नजरें दरबार साहिब परिसर में स्थित इसके मुख्यालय तेजा सिंह समुंदरी हाल में हुए एसजीपीसी के जनरल इजलास पर टिकी थीं। एसजीपीसी की स्थापना लंबे संघर्षों के बाद 15 नवंबर 1920 को हुई थी। सिख धर्मिक स्थानों व गुरुद्वारा साहिबों को महंतों के प्रबंधों से छुड़वाकर एसजीपीसी की मैनेजमेंट के तहत लाने में इसकी विशेष भूमिका रही है।

एसजीपीसी में 175 सदस्य होते हैं जिनका चुनाव सिख कौम मतदान के तहत करती है। इसके अलावा 15 सदस्यों की नियुक्ति की जाती है, जबकि पांच तख्त साहिबों के जत्थेदार भी कमेटी के सदस्य होते हैं, लेकिन उनको हाउस में मत डालने का अधिकार नहीं होता है। स्थापना के इतने वर्षों बाद भी कई पंथक चुनौतियों को हल करने के लिए एसजीपीसी अब भी जूझ रही है।

प्रमुख पदाधिकारी

एसजीपीसी के संविधान के अनुसार एसजीपीसी के अध्यक्ष, सीनियर उपाध्यक्ष, जूनियर उपाध्यक्ष, महासचिव और 11 कार्यकारिणी सदस्यों का चुनाव किया जाता है। एसजीपीसी के कार्यालय में मुख्य सचिव, पर्सनल सचिव, सचिव, अतिरिक्त सचिव, सहायक सचिव और अलग-अलग ब्रांचों के इंचार्ज होते हैं जो अलग-अलग विभागों का काम देखते हैं।

275 से ज्यादा गुरुद्वारा साहिब जुड़े हैं

एसजीपीसी के तहत अलग-अलग श्रेणियों में 275 से अधिक गुरुद्वारा साहिब जुड़े हुए हैं। एसजीपीसी पंजाब, हरियाणा, चंडीगढ़ व हिमाचल में स्थित गुरुद्वारों का भी प्रबंध देखती है। विदेशों में स्थित किसी भी गुरुद्वारा साहिब का कोई प्रबंध इसके पास नहीं है।

कौन कौन रह चुके हैं एसजीपीसी के अध्यक्ष

सिख गुरुद्वारा एक्ट लागू होने से पहले

प्रधान का नाम कब से कब   तक
सुंदर सिंह मजीठिया 12 अक्टूबर 1920 से 14-8-1921 तक
बाबा खड़क सिंह 14-8-1921 से 19-2-1922
सुंदर सिंह रामगडिया 19-2-1922 से 16-7-1922
बहादर मेहताबसिंह 16-7-1922 से 27-4-1925
मंगल सिंह 27-4-1925 से 2-10-1926

गुरुद्वारा एक्ट लागू होने के बाद रहे अध्यक्ष

बाबा खड़क सिंह 2-10-1926 से 12-10-1930
मास्टर तारा सिंह 2-10-1930 से 17-6-1933
गोपाल सिंह 17-6-1933 से 18-6-1933
प्रताप सिंह शंकर 18-6-1933 से 13-6-1936
मास्टर तार सिंह 13-6-1936 से 19-11-1944
मोहन सिंह नागोके 19-11-1944 से 28-6-1948
उधम सिंह नागोके 28-6-1948 से 18-3-1950
चन्न सिंह उराड़ा 8-3-1950 से 26-11-1950
उधम सिंह नागोके 26-11-1950 से 29-6-1952
मास्टर तारा सिंह 29-6-1952 से 5-10-1952
प्रीतम सिंह खुड़ंज 5-10-1952 से 18-1-1954
ईशरसिंह मंझैल 18-1-1954 से 7-2-1955
मास्टर तारा सिंह 7-2-1955 से 21-5-1955
बावा हर किशन सिंह 21-5-1955 से 7-7-1955
ज्ञान सिंह राड़ेवाल 7-7-1955 से 16-10-1955
मास्टर तारा सिंह 16-10-1955 से 16-11-1958
प्रेम सिंह लालपुरा 16-11-1958 से 7-3-1960
मास्टर तारा सिंह 7-3-1960 से 30-4-1960
अजीत सिंह बाला 30-4-1960 से 10-3-1961
मास्टर तार सिंह 10-3-1961 से 11-3-1962
कृपाल सिंह चक्क शेरवाला 11-3-1962 से 2-10-1962
चन्न सिंह 2-10-1962 से 30-11-1972
गुरचरन सिंह टोहड़ा 6-1-1973 से 23-3-1986
काबल सिंह 23-3-1986 से 30-11-1986
गुरचरन सिंह टोहरा 30-11-1986 से 28-11-1990
बलदेव सिंह सिबिया 28-11-1990 से 13-11-1991
गुरचरन सिंह टोहरा 28-11-1991 से 13-10-1996
गुरचरन सिंह टोहरा 20-12-1996 से 16-3-1999
बीबी जगीर कौर 16-3-1999 से 30-11-2000
जगदेव सिंह तलवंडी 30-11-2000 से 27-11-2001
किरपाल सिंह बडूंगर 27-11-2001 से 20-7-2003
गुरचरन सिंह टोहरा 20-7-2003 से 31-3-2004
अलविंदर पाल सिंह 1-4-2004 से 23-9-2004
बीबी जगीर कौर 23-9-2004 से 23-11-2005
अवतार सिंह मक्कड़ 23-11-2005 से  5-11-2016
प्रो. कृपाल सिंह बडूंगर 5-11-2016  से 28-11-2017 
गोबिंद सिंह लोंगोवाल 28-11-2017 से अब तक
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