85 साल बाद बिहार में क्यों हुई CWC की बैठक, विधानसभा चुनाव से पहले

बिहार चुनाव के एलान से ऐन पहले कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक बुधवार को पटना में हुई। बैठक में मल्लिकार्जुन खरगे, राहुल गांधी, सोनिया गांधी समेत पार्टी के तमाम बड़े नेता शामिल हुए। 85 साल बाद बिहार में इस तरह की बैठक हुई है। बिहार विधानसभा चुनाव से ठीक पहले हुई इस बैठक के सियासी जानकार कई मायने निकाल रहे हैं। दशकों बाद कांग्रेस बिहार में सक्रिय दिख रही है। राहुल गांधी के दौरे हो रहे हैं। राहुल राज्य में वोटर अधिकार यात्रा भी निकाल चुके हैं। बिहार में कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक के क्या मायने हैं? 1940 के बाद ये पहला मौका था जब बिहार में कांग्रेस की कार्यसमिति की बैठक हुई है। महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू, राजेंद्र प्रसाद ने आजादी की लड़ाई के दौरान कई आंदोलनों की शुरुआत यहीं से की थी। इस बैठक का आयोजन राज्य कांग्रेस कार्यालय सदाकत आश्रम में हुआ। सदाकत आश्रम कभी बिहार में सत्ता केंद्र रहा है। आजादी की लड़ाई के वक्त कई आंदोलनों की नींव यहीं से पड़ी थी। जानकार कहते हैं कि इस जगह बैठक करके अतीत के संघर्ष को वर्तमान से जोड़ने की कोशिश की जा रही है। किसी चुनावी राज्य में इस तरह की बैठक का कांग्रेस का यह पहला प्रयोग भी नहीं है। साल 2023 में तेलंगाना विधानसभा चुनाव के वक्त कांग्रेस ने वहां CWC की बड़ी बैठक की थी। इसके बाद हुए चुनाव के नतीजे कांग्रेस के पक्ष में रहे थे। पार्टी एक बार फिर इसी तरह के चमत्कार की उम्मीद कर रही है। 2020 के बिहार चुनाव में कांग्रेस का प्रदर्शन कैसा था? पिछले चुनाव की बात करें तो कांग्रेस ने राजद के साथ मिलकर कुल 70 सीटों पर चुनाव लड़ा था। इन 70 सीटों में से कांग्रेस केवल 19 सीटों पर ही सफल हो पाई थी। इस चुनाव में कांग्रेस का स्ट्राइक रेट करीब 27 फीसदी का रहा। यह गठबंधन के अन्य दलों में से सबसे कम था। इस बार कितनी सीटों पर चुनाव लड़ सकती है कांग्रेस? पिछली बार की तरह एक बार फिर कांग्रेस इस बार राजद के साथ मिलकर चुनाव लड़ रही है। हालांकि, सीट बंटवारे को लेकर खींचतान जारी है। कांग्रेस फिर से 70 सीटों पर ही चुनाव लड़ना चाहती है। हालांकि, राजद इस बार कांग्रेस को इतनी सीटें देनें के मूड में नहीं है। लालू और तेजस्वी नए सहयोगियों और पिछले पदर्शन का हवाला देकर कांग्रेस को 50 से 55 सीट देने की बात कर रहे हैं। 2020 के बिहार चुनाव में कांग्रेस ने 70 में से 19 सीटें जीतीं। यानी उसका स्ट्राइक रेट करीब 27 फीसदी का रहा, जो कि सहयोगी दलों- राजद (स्ट्राइक रेट- 52%) और भाकपा माले (63.15), भाकपा (33.33) और माकपा (50%) से कम रहा था। ऐसे में महागठबंधन के सामने कांग्रेस को ज्यादा सीटें देना बड़ी चुनौती होगी। इस गठबंधन में इस बार झामुमो, वीआईपी और पशुपति पारस की रालोजपा भी जुड़ गए हैं। उनके लिए भी सीटें कौन छोड़ेगा यह देखना होगा। राहुल ने जो वोटर अधिकार यात्रा निकाली उसका क्या? राहुल गांधी की बिहार में 16 दिन तक चली वोटर अधिकार 16 अगस्त से शुरू हुई थी। राहुल ने इस यात्रा से 25 जिलों की 183 सीटों को कवर करने की कोशिश की। रोहतास के सासाराम से शुरू हुई यह यात्र औरंगाबाद, नालंदा, गया, नवादा, जमुई, लखीसराय, शेखपुरा, मुंगेर, भागलपुर, कटिहार, पूर्णिया, अररिया, सुपौल, मधुबनी, दरभंगा, मुजफ्फरपुर, सीतामढ़ी, पूर्वी चंपारण (मोतिहारी), पश्चिम चंपारण, गोपालगंज, सीवान, सारण, भोजपुर और पटना जैसे शहरों से होकर गुजरी। राहुल गांधी की यात्रा में अलग-अलग दलों के नेताओं ने हिस्सा लिया। इनमें बिहार में महागठबंधन के साथी- राजद के तेजस्वी यादव और वीआईपी के मुकेश सहनी शामिल रहे। दूसरी तरफ राज्य के बाहर की भी कई पार्टियों ने यात्रा में राहुल का साथ दिया। इनमें द्रमुक के मुखिया और तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन से लेकर उद्धव शिवसेना के संजय राउत तक शामिल रहे। भाजपा पर वोट चोरी का आरोप के साथ निकाली गई यात्रा में पार्टी ने ‘वोट चोर गद्दी छोड़’ का नारा दिया। वोट चोरी का नाम पर हुई यात्रा के जरिए राहुल ने अपने कार्यकर्ताओं में चुनाव से पहले जोश भरने की कोशिश की। हालांकि, यह यात्रा कई मौकों पर विवादों में भी घिरी। इनमें पीएम मोदी की मां को अपशब्द कहने का मुद्दा सबसे ज्यादा चर्चित रहा।
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