दागी नेताओं के चुनाव लड़ने पर रोक लगाने से SC का इनकार, संसद तय करेगा क्या करना है

सुप्रीम कोर्ट ने दागी नेताओं पर फैसले का अधिकार संसद पर छोड़ दिया है। कोर्ट ने आपराधिक केस के कारण चुनाव लड़ने पर रोक नहीं लगाई है। कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा कि संसद को यह सुनिश्चित करना होगा कि अपराधी राजनीति में नहीं आएं। भ्रष्‍टाचार और आपराधिकारण लोकतंत्र को नुकसान पहुंचा रहे हैं। ऐसे में राजनीतिक पार्टियां अपने उम्मीदवारों की आपराधिक रिकॉर्ड की जानकारी वेबसाइट पर दें।दागी नेताओं के चुनाव लड़ने पर रोक लगाने से SC का इनकार, कहा- संसद तय करेगा क्या करना है

वहीं सांसदों और विधायकों के वकालत करने पर रोक लगाने की मांग पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि बार काउंसिल ऑफ इंडिया के नियम विधायकों को वकील के रूप में अभ्यास करने से नहीं रोकते हैं। भाजपा नेता अश्वनी कुमार उपाध्याय ने यह याचिका दाखिल की थी। इस पर मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा, एएम खानविल्कर और डीवाई चंद्रचूड़ ने गत 9 जुलाई को बहस सुनकर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।

दागियों के चुनाव लड़ने पर रोक यानी जिसके खिलाफ पांच साल से अधिक की सजा के अपराध में अदालत से आरोप तय हो जाएं उनके चुनाव लड़ने पर रोक लगाई जाए। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं लंबित हैं। जिसमें पब्लिक इंटरेस्ट फाउंडेशन, पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त जेएम लिंगदोह और भाजपा नेता अश्वनी कुमार उपाध्याय की जनहित याचिका शामिल है। 

इस मामले में मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा, आरएम नारिमन, एएम खानविल्कर, डीवाई चंद्रचूड़ और जस्टिस इंदू मल्होत्रा की पांच सदस्यीय संविधान पीठ ने बहस सुनकर गत 28 अगस्त को अपना फैसला सुरक्षित रखा था। याचिकाकर्ताओं की दलील थी कि राजनीति का अपराधीकरण रोकने के लिए दागियों के चुनाव लड़ने पर रोक लगनी चाहिए। 

पांच साल से अधिक की सजा के अपराध में अदालत से आरोप तय होने का मतलब होता है कि अदालत ने उस व्यक्ति को प्रथमदृष्टया आरोपी माना है। चुनाव आयोग ने भी इस याचिका का कोर्ट में समर्थन किया था हालांकि केन्द्र सरकार ने याचिका का पुरजोर विरोध करते हुए दलील दी थी कि कानून में आरोप तय होने के बाद चुनाव लड़ने पर रोक नहीं है और न ही इसे अयोग्यता में गिना गया है, ऐसे में कोर्ट अपनी तरफ से कानून में अयोग्यता की शर्त नहीं जोड़ सकता।

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