एट्रोसिटी एक्ट पर शिवराज के बयान से एससी-एसटी खफा

एससी-एसटी एट्रोसिटी एक्ट का मुद्दा भाजपा के लिए गले की हड्डी बनता जा रहा है। प्रदेश में जोर पकड़ते सामान्य वर्ग के आंदोलन को ठंडा करने के लिए दिए मुख्यमंत्री के इस बयान से एससीएसटी वर्ग नाराज हो गया है। भाजपा को एकसाथ दोनों वर्ग को साधने में भारी दिक्कत हो रही है। लगातार गर्म हो रहा यह मुद्दा विधानसभा चुनाव को भी प्रभावित करेगा। एससी-एसटी वर्ग से जुड़े संगठन 23 सितंबर को भोपाल सम्मेलन में रणनीति का खुलासा करेंगे।एससी-एसटी एट्रोसिटी एक्ट का मुद्दा भाजपा के लिए गले की हड्डी बनता जा रहा है। प्रदेश में जोर पकड़ते सामान्य वर्ग के आंदोलन को ठंडा करने के लिए दिए मुख्यमंत्री के इस बयान से एससीएसटी वर्ग नाराज हो गया है। भाजपा को एकसाथ दोनों वर्ग को साधने में भारी दिक्कत हो रही है। लगातार गर्म हो रहा यह मुद्दा विधानसभा चुनाव को भी प्रभावित करेगा। एससी-एसटी वर्ग से जुड़े संगठन 23 सितंबर को भोपाल सम्मेलन में रणनीति का खुलासा करेंगे।  ADVERTISING   inRead invented by Teads एससी-एसटी वर्ग से जुड़े संगठन अजाक्स के महामंत्री डॉ. एसएल सूर्यवंशी का कहना है कि 86 संगठन यह लड़ाई लड़ रहे हैं। जब संसद ने कानून यथावत कर दिया तो राज्य कैसे बदलाव कर सकता है। सामान्य वर्ग संगठन के संरक्षक और पूर्व अति. पुलिस महानिदेशक विजय वाते के मुताबिक, एक्ट की नई धारा 18 ए के तहत पुलिस को तत्काल बिना किसी जांच या तस्दीक के एफआईआर दर्ज करना होगी। इसके बाद पुलिस के लिए जरूरी होगा कि वह आरोपित को गिरफ्तार करे, अन्यथा इस एक्ट में उस पर भी कार्रवाई किए जाने का प्रावधान है।  गौर बोले-गलत हुआ संशोधन  पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर ने एट्रोसिटी एक्ट में संशोधन को गलत ठहराया है। उन्होंने कहा कि जो विरोध पनप रहा है, वह उन मंत्रियों-सांसदों के खिलाफ है, जो संशोधन के दौरान चुप्पी लगाए बैठे रहे। मुख्यमंत्री का बयान अच्छी बात है।  प्रदेश में भारी दुरुपयोग, 75% आरोपित हो गए बरी जबलपुर  मध्यप्रदेश हाई कोर्ट बार ने एक सर्वे कर दावा किया है कि 2015-16 में 75 प्रतिशत मामलों में कोर्ट ने एससीएसटी एक्ट में आरोपितों को बरी कर दिया है। इस एक्ट का बड़े पैमाने पर दुरुपयोग हो रहा है। बार एसोसिएशन अध्यक्ष आदर्शमुनि त्रिवेदी ने कहा है कि इस तरह के मामलों में 81% आरोपित ओबीसी जाति और 14 प्रतिशत उच्च वर्ग के हैं, शेष 5 प्रतिशत अल्पसंख्यक हैं। रिपोर्ट करने वाले 90 प्रतिशत अजा, 10 प्रतिशत अजजा के हैं। ऐसे आंकड़ों के आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने तत्काल गिरफ्तारी पर रोक लगा दी थी। जिसे केन्द्र सरकार ने संशोधन बिल संसद से पारित कर सुप्रीम कोर्ट के आदेश को बदल दिया था।  एससी-एसटी कानून नहीं बांधता शिवराज के हाथ नई दिल्ली,माला दीक्षित  एससी-एसटी संशोधन कानून के खिलाफ मध्य प्रदेश में चल रहे आंदोलन को थामने के लिए दिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के बयान ने नई बहस को जन्म दे दिया है। उन्होंने कहा है कि कानून का दुरुपयोग नहीं होगा और बिना जांच गिरफ्तारी नहीं होगी। सवाल उठता है कि जिस एससी-एसटी जाति को सुरक्षा और संरक्षण का अहसास कराने के लिए केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट का फैसला निष्प्रभावी कर पुरानी व्यवस्था बहाल की है, कहीं शिवराज का बयान उसे कमजोर या कानून का विरोध करता तो नहीं दिखता।  कानूनविदों की मानें तो बयान में कोई कानूनी खामी नहीं हैं। बयान कानून के विपरीत नहीं  बयान का विश्लेषण करने पर पता चलता है कि उन्होंने ऐसा कुछ नहीं कहा, जिसकी कानून इजाजत न देता हो। इलाहाबाद हाई कोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश एसआर सिंह कहते हैं कि जांच अधिकारी के पास पहले भी गिरफ्तारी का विवेकाधिकार था और अभी भी है। संशोधित कानून यह नहीं कहता कि एफआईआर दर्ज होने के बाद जांच अधिकारी गिरफ्तारी करने के लिए बाध्य है। उसे लगता है कि कोई संज्ञेय अपराध नहीं हुआ तो वह गिरफ्तारी नहीं करेगा। कानून में संज्ञेय अपराध में तुरंत एफआईआर की बात है। उनसे सहमति जताते हुए सुप्रीम कोर्ट के वकील डीके गर्ग कहते हैं कि इस कानून पर लोगों में तुरंत गिरफ्तारी का भ्रम है। अभियुक्त के खिलाफ प्रथमदृष्टया केस बनता है तभी गिरफ्तारी होती है।

एससी-एसटी वर्ग से जुड़े संगठन अजाक्स के महामंत्री डॉ. एसएल सूर्यवंशी का कहना है कि 86 संगठन यह लड़ाई लड़ रहे हैं। जब संसद ने कानून यथावत कर दिया तो राज्य कैसे बदलाव कर सकता है। सामान्य वर्ग संगठन के संरक्षक और पूर्व अति. पुलिस महानिदेशक विजय वाते के मुताबिक, एक्ट की नई धारा 18 ए के तहत पुलिस को तत्काल बिना किसी जांच या तस्दीक के एफआईआर दर्ज करना होगी। इसके बाद पुलिस के लिए जरूरी होगा कि वह आरोपित को गिरफ्तार करे, अन्यथा इस एक्ट में उस पर भी कार्रवाई किए जाने का प्रावधान है।

गौर बोले-गलत हुआ संशोधन

पूर्व मुख्यमंत्री बाबूलाल गौर ने एट्रोसिटी एक्ट में संशोधन को गलत ठहराया है। उन्होंने कहा कि जो विरोध पनप रहा है, वह उन मंत्रियों-सांसदों के खिलाफ है, जो संशोधन के दौरान चुप्पी लगाए बैठे रहे। मुख्यमंत्री का बयान अच्छी बात है।

प्रदेश में भारी दुरुपयोग, 75% आरोपित हो गए बरी जबलपुर

मध्यप्रदेश हाई कोर्ट बार ने एक सर्वे कर दावा किया है कि 2015-16 में 75 प्रतिशत मामलों में कोर्ट ने एससीएसटी एक्ट में आरोपितों को बरी कर दिया है। इस एक्ट का बड़े पैमाने पर दुरुपयोग हो रहा है। बार एसोसिएशन अध्यक्ष आदर्शमुनि त्रिवेदी ने कहा है कि इस तरह के मामलों में 81% आरोपित ओबीसी जाति और 14 प्रतिशत उच्च वर्ग के हैं, शेष 5 प्रतिशत अल्पसंख्यक हैं। रिपोर्ट करने वाले 90 प्रतिशत अजा, 10 प्रतिशत अजजा के हैं। ऐसे आंकड़ों के आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने तत्काल गिरफ्तारी पर रोक लगा दी थी। जिसे केन्द्र सरकार ने संशोधन बिल संसद से पारित कर सुप्रीम कोर्ट के आदेश को बदल दिया था।

एससी-एसटी कानून नहीं बांधता शिवराज के हाथ नई दिल्ली,माला दीक्षित

एससी-एसटी संशोधन कानून के खिलाफ मध्य प्रदेश में चल रहे आंदोलन को थामने के लिए दिए मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के बयान ने नई बहस को जन्म दे दिया है। उन्होंने कहा है कि कानून का दुरुपयोग नहीं होगा और बिना जांच गिरफ्तारी नहीं होगी। सवाल उठता है कि जिस एससी-एसटी जाति को सुरक्षा और संरक्षण का अहसास कराने के लिए केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट का फैसला निष्प्रभावी कर पुरानी व्यवस्था बहाल की है, कहीं शिवराज का बयान उसे कमजोर या कानून का विरोध करता तो नहीं दिखता।

कानूनविदों की मानें तो बयान में कोई कानूनी खामी नहीं हैं। बयान कानून के विपरीत नहीं

बयान का विश्लेषण करने पर पता चलता है कि उन्होंने ऐसा कुछ नहीं कहा, जिसकी कानून इजाजत न देता हो। इलाहाबाद हाई कोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश एसआर सिंह कहते हैं कि जांच अधिकारी के पास पहले भी गिरफ्तारी का विवेकाधिकार था और अभी भी है। संशोधित कानून यह नहीं कहता कि एफआईआर दर्ज होने के बाद जांच अधिकारी गिरफ्तारी करने के लिए बाध्य है। उसे लगता है कि कोई संज्ञेय अपराध नहीं हुआ तो वह गिरफ्तारी नहीं करेगा। कानून में संज्ञेय अपराध में तुरंत एफआईआर की बात है। उनसे सहमति जताते हुए सुप्रीम कोर्ट के वकील डीके गर्ग कहते हैं कि इस कानून पर लोगों में तुरंत गिरफ्तारी का भ्रम है। अभियुक्त के खिलाफ प्रथमदृष्टया केस बनता है तभी गिरफ्तारी होती है।

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