मानव तस्करी के खिलाफ इस संस्‍थान ने जलाया उम्मीदों का ‘दीया’

गरीबी और तंगहाली से जूझ रहे झारखंड में मानव तस्करी एक बड़ी समस्या रही है। झारखंड के सुदूर ग्रामीण इलाकों से बच्चों, लड़कियों और महिलाओं को नौकरी दिलाने के नाम पर बड़े शहरों में ले जाकर बेच देने और बंधक बनाकर काम लेने का सिलसिला पुराना है। इनका दलालों से लेकर मालिक तक शोषण करते हैं । गरीबी और तंगहाली से जूझ रहे झारखंड में मानव तस्करी एक बड़ी समस्या रही है। झारखंड के सुदूर ग्रामीण इलाकों से बच्चों, लड़कियों और महिलाओं को नौकरी दिलाने के नाम पर बड़े शहरों में ले जाकर बेच देने और बंधक बनाकर काम लेने का सिलसिला पुराना है। इनका दलालों से लेकर मालिक तक शोषण करते हैं ।     इन शोषितों में बड़ी संख्या नाबालिगों और लड़कियों की होती है। कुछ स्वयंसेवी संगठनों ने मानव तस्करी के खिलाफ मुहिम छेड़कर इस दिशा में सराहनीय काम किए हैं। रांची का दीया सेवा संस्थान भी इन्हीं में एक है। संस्था के लोग अब तक तस्करी कर झारखंड से बाहर ले जाए गए चार हजार से ज्यादा युवक-युवतियों को वापस उनके घर पहुंचा चुके हैं। इनमें ज्‍यादातर लोग हिंसा और यौन शोषण के शिकार थे। सीता स्वांसी दीया सेवा संस्थान की संचालक हैं। संस्‍था ने लंबी कानूनी लड़ाई लड़कर सैंकड़ों पीडि़तों को न्याय और मुआवजा समेत सरकारी योजनाओं का लाभ भी दिलाया।  बाल मजदूरी और शोषण के चंगुल से छुड़ाए गए बच्चों का स्कूल में नामांकन कराया । उनके अभिभावकों को आर्थिक मदद दिलाई गई ताकि फिर दोबारा ये बच्चे गरीबी के कारण दलालों के चंगुल में न फंसें।  अभी यह संस्था 1500 से अधिक पीडि़तों को न्याय दिलाने के लिए मुकदमा लड़ रही है। इतना ही नहीं संस्था के प्रयास से अबतक 100 से अधिक तस्कर जेल भेजे जा चुके हैं, जबकि कई के खिलाफ जांच चल रही है। एक दशक पहले जब संस्थान ने मानव तस्करी, बाल मजदूरी, महिला हिंसा, यौन शोषण और बंधुआ मजदूरी के खिलाफ काम शुरू किया तो लोगों को पहली नजर में भरोसा नहीं हो पाया था ।   राउंडटेबल कॉन्फ्रेंसः रांची को विकसित शहरों में शुमार कराने का लें संकल्प यह भी पढ़ें पूरे राज्य के गांव-गांव में घूम-घूम कर संस्था के लोग ग्रामीणों, पीडि़तों और जिम्मेदारों से मिलकर वास्तविक स्थिति जानने के साथ साथ उन्हें जागरूक भी करने लगे। हेल्पलाइन नंबर जारी कर लोगों को उपलब्ध कराया गया। फिर देखते ही देखते रोज दर्जनों फोन संस्था के पास मानव तस्करी के आने लगे। तस्करी के शिकार बच्चे-बच्चियों को छुड़ाने के लिए पुलिस, सीआइडी, बाल संरक्षण आयोग, महिला आयोग से लेकर मानवाधिकार आयोग तक की मदद ली जाने लगी। टीमों का गठन कर छापेमारी कर-कर के बच्चों का रेस्क्यू कराया जाने लगा। ऐसे में दलाल भी थोड़े सहमे और तस्करी पर थोड़ा अंकुश लग सका।  महिलाओं को सबल बनाने की कोशिश  संस्था की ओर से महिलाओं को महिला हिंसा के खिलाफ जागरूक करने के साथ साथ उन्हें स्वरोजगार का प्रशिक्षण देकर आत्मनिर्भर भी बनाया जा रहा है। 3000 से अधिक महिलाओं को कानून की जानकारी देकर सामाजिक न्याय के प्रति जागरूक किया गया है। डायन कुप्रथा के खिलाफ भी संस्था लंबे समय से काम कर रही है।  किशोर-किशोरियों के लिए विशेष प्रशिक्षण और अभियान  संस्था की ओर से किशोर-किशोरियों और युवाओं को विशेष प्रशिक्षण देकर पढ़ाई के साथ साथ रोजगार से जोड़ा गया है। 2013 में कैलाश सत्यार्थी के बचपन बचाओ आंदोलन के साथ जुड़कर संस्था ने रांची जिले के 284 बच्चों को रेस्क्यू कराया था। 2012 में झारखंड के अलावा असम, उड़ीसा और छत्तीसगढ़ की भी 22 लड़कियों को भी तस्करों के चंगुल से छुड़ाया गया था। 2015 में बेंगलूर की अगरबत्ती फैक्ट्री से छुड़ाकर 22 बाल बंधुआ मजदूरों को वापस झारखंड लाया गया था। इन्हें पुनर्वासित कर इनकी पढ़ाई की व्यवस्था करते हुए सरकारी सुविधाएं दिलाई गईं। संस्था की ओर बाल मानव तस्करी के 350 से अधिक मामले विभिन्न थानों में दर्ज कराए गए हैं, जिनकी लगातार मॉनिटरिंग की जाती है। लापता बच्चों को ढूंढने में भी संस्था अहम भूमिका निभा रही है।  240 प्लेसमेंट एजेंसियों के खिलाफ दर्ज की थी याचिका झारखंड हाईकोर्ट में संस्था ने एक जनहित याचिका दायर की थी, जिसमें कहा गया था कि प्लेसमेंट एजेंसी खोलकर मानव तस्कर नौकरी दिलाने के नाम पर खुलेआम मानव तस्करी कर रहे हैं। इनमें 35 मानव तस्करों के बारे में जानकारी दी गई थी। हाईकोर्ट ने इसपर संज्ञान लेते हुए सरकार से जवाब मांगा था।  मिल चुके हैं कई पुरस्कार और प्रशस्ति पत्र संस्था को सरकार, संवैधानिक संस्थाओं और संगठनों की ओर से दर्जनों पुरस्कार व प्रशस्तिपत्र मिल चुके हैं। 2016 में इस संस्था को झारखंड रत्न का पुरस्कार लोक सेवा समिति ने दिया था। झारखंड पुलिस छह बार इसे प्रशस्ति पत्र दे चुकी है।

इन शोषितों में बड़ी संख्या नाबालिगों और लड़कियों की होती है। कुछ स्वयंसेवी संगठनों ने मानव तस्करी के खिलाफ मुहिम छेड़कर इस दिशा में सराहनीय काम किए हैं। रांची का दीया सेवा संस्थान भी इन्हीं में एक है। संस्था के लोग अब तक तस्करी कर झारखंड से बाहर ले जाए गए चार हजार से ज्यादा युवक-युवतियों को वापस उनके घर पहुंचा चुके हैं। इनमें ज्‍यादातर लोग हिंसा और यौन शोषण के शिकार थे। सीता स्वांसी दीया सेवा संस्थान की संचालक हैं। संस्‍था ने लंबी कानूनी लड़ाई लड़कर सैंकड़ों पीडि़तों को न्याय और मुआवजा समेत सरकारी योजनाओं का लाभ भी दिलाया।

बाल मजदूरी और शोषण के चंगुल से छुड़ाए गए बच्चों का स्कूल में नामांकन कराया । उनके अभिभावकों को आर्थिक मदद दिलाई गई ताकि फिर दोबारा ये बच्चे गरीबी के कारण दलालों के चंगुल में न फंसें। 
अभी यह संस्था 1500 से अधिक पीडि़तों को न्याय दिलाने के लिए मुकदमा लड़ रही है। इतना ही नहीं संस्था के प्रयास से अबतक 100 से अधिक तस्कर जेल भेजे जा चुके हैं, जबकि कई के खिलाफ जांच चल रही है। एक दशक पहले जब संस्थान ने मानव तस्करी, बाल मजदूरी, महिला हिंसा, यौन शोषण और बंधुआ मजदूरी के खिलाफ काम शुरू किया तो लोगों को पहली नजर में भरोसा नहीं हो पाया था ।

पूरे राज्य के गांव-गांव में घूम-घूम कर संस्था के लोग ग्रामीणों, पीडि़तों और जिम्मेदारों से मिलकर वास्तविक स्थिति जानने के साथ साथ उन्हें जागरूक भी करने लगे। हेल्पलाइन नंबर जारी कर लोगों को उपलब्ध कराया गया। फिर देखते ही देखते रोज दर्जनों फोन संस्था के पास मानव तस्करी के आने लगे। तस्करी के शिकार बच्चे-बच्चियों को छुड़ाने के लिए पुलिस, सीआइडी, बाल संरक्षण आयोग, महिला आयोग से लेकर मानवाधिकार आयोग तक की मदद ली जाने लगी। टीमों का गठन कर छापेमारी कर-कर के बच्चों का रेस्क्यू कराया जाने लगा। ऐसे में दलाल भी थोड़े सहमे और तस्करी पर थोड़ा अंकुश लग सका। 
महिलाओं को सबल बनाने की कोशिश 
संस्था की ओर से महिलाओं को महिला हिंसा के खिलाफ जागरूक करने के साथ साथ उन्हें स्वरोजगार का प्रशिक्षण देकर आत्मनिर्भर भी बनाया जा रहा है। 3000 से अधिक महिलाओं को कानून की जानकारी देकर सामाजिक न्याय के प्रति जागरूक किया गया है। डायन कुप्रथा के खिलाफ भी संस्था लंबे समय से काम कर रही है।

किशोर-किशोरियों के लिए विशेष प्रशिक्षण और अभियान 
संस्था की ओर से किशोर-किशोरियों और युवाओं को विशेष प्रशिक्षण देकर पढ़ाई के साथ साथ रोजगार से जोड़ा गया है। 2013 में कैलाश सत्यार्थी के बचपन बचाओ आंदोलन के साथ जुड़कर संस्था ने रांची जिले के 284 बच्चों को रेस्क्यू कराया था। 2012 में झारखंड के अलावा असम, उड़ीसा और छत्तीसगढ़ की भी 22 लड़कियों को भी तस्करों के चंगुल से छुड़ाया गया था। 2015 में बेंगलूर की अगरबत्ती फैक्ट्री से छुड़ाकर 22 बाल बंधुआ मजदूरों को वापस झारखंड लाया गया था। इन्हें पुनर्वासित कर इनकी पढ़ाई की व्यवस्था करते हुए सरकारी सुविधाएं दिलाई गईं। संस्था की ओर बाल मानव तस्करी के 350 से अधिक मामले विभिन्न थानों में दर्ज कराए गए हैं, जिनकी लगातार मॉनिटरिंग की जाती है। लापता बच्चों को ढूंढने में भी संस्था अहम भूमिका निभा रही है।

240 प्लेसमेंट एजेंसियों के खिलाफ दर्ज की थी याचिका
झारखंड हाईकोर्ट में संस्था ने एक जनहित याचिका दायर की थी, जिसमें कहा गया था कि प्लेसमेंट एजेंसी खोलकर मानव तस्कर नौकरी दिलाने के नाम पर खुलेआम मानव तस्करी कर रहे हैं। इनमें 35 मानव तस्करों के बारे में जानकारी दी गई थी। हाईकोर्ट ने इसपर संज्ञान लेते हुए सरकार से जवाब मांगा था।

मिल चुके हैं कई पुरस्कार और प्रशस्ति पत्र
संस्था को सरकार, संवैधानिक संस्थाओं और संगठनों की ओर से दर्जनों पुरस्कार व प्रशस्तिपत्र मिल चुके हैं। 2016 में इस संस्था को झारखंड रत्न का पुरस्कार लोक सेवा समिति ने दिया था। झारखंड पुलिस छह बार इसे प्रशस्ति पत्र दे चुकी है।

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