तकदीर की शह को मात दे रहा शतरंज का खिलाड़ी

बेहतरीन एथलीट, चेस के प्रमंडलीय चैंपियन, कैरम के कुशल खिलाड़ी और अब अंक ज्योतिष विद्या के जानकार। यह हालात से जूझते उस शख्स की कहानी है जो तनिक कठिनाइयों से निराश हो जाने वालों के लिए प्रेरणा बन सकती है। संजय रोड, एसएनपी एरिया साकची निवासी दिलीप कुमार शर्मा 66 साल के हो चुके हैं। किडनी, फेफड़े की बीमारियां जब-तब डराती रहती हैं, लेकिन जूझारूपन ऐसा कि उदासी-निराशा को कभी पास नहीं फटकने देते। यह जुझारूपन उनमें हालात से जूझते हुए उत्पन्न हुआ है।बेहतरीन एथलीट, चेस के प्रमंडलीय चैंपियन, कैरम के कुशल खिलाड़ी और अब अंक ज्योतिष विद्या के जानकार। यह हालात से जूझते उस शख्स की कहानी है जो तनिक कठिनाइयों से निराश हो जाने वालों के लिए प्रेरणा बन सकती है। संजय रोड, एसएनपी एरिया साकची निवासी दिलीप कुमार शर्मा 66 साल के हो चुके हैं। किडनी, फेफड़े की बीमारियां जब-तब डराती रहती हैं, लेकिन जूझारूपन ऐसा कि उदासी-निराशा को कभी पास नहीं फटकने देते। यह जुझारूपन उनमें हालात से जूझते हुए उत्पन्न हुआ है।  सत्तर के दशक में स्कूली जीवन में एथलेटिक्स में नाम था। ऑल एचइसी स्कूल एथलेटिक प्रतियोगिता के सौ मीटर स्पर्धा में 12.2 सेकेंड का समय निकाल सभी को अचरज में डाल दिया। बाद में शतरंज का शौच चढ़ा तो प्रमंडलीय स्पर्धा में चैंपियन बन गए। नेशनल भी खेला। जीवन के झंझावात ऐसे आए कि खेलों में आगे नहीं बढ़ सके। हालांकि शौक आज भी है। वर्ष 2017 में जमशेदपुर में ओपन चेस चैंपियनशिप में भाग लिया।  नहीं मानी हार, खींच रहे जीवन की गाड़ी अतीत को टटोलते हुए दिलीप कुमार शर्मा बताते हैं कि पिता दीनानाथ शर्मा टिस्को में नौकरी करते थे। बाद में उन्होंने नौकरी छोड़ धुर्वा में दूसरी नौकरी पकड़ ली। उनके रिटायर होने के बाद वे यहां चले आए और ठेकेदा री फर्म की छोटी-मोटी नौकरियां कीं। पिता के निधन के बाद पारिवारिक विवादों में घिर गए। इसी बीच, किसी वजह से घर की बिजली काट दी गई। पत्नी बीमार पड़ी और 2013 में चल बसी। खुद किडनी व फेफड़े की बीमारियों ने जकड़ लिया। आध्यात्म की ओर उन्मुख हुए। कई बार गंभीर बीमार पड़े और लगा कि अब जान नहीं बचेगी लेकिन जिजिविषा और प्रार्थना ने बचा लिया।   केयू के विवादों में रहे शिक्षकों का हुआ तबादला यह भी पढ़ें अंक ज्योतिष विद्या से चला रहे जीविका उम्र बढ़ने के साथ अन्य खेल तो पीछे छूटते गए लेकिन शतरंज में जब कभी मौका मिलता है, हाथ जरूर आजमाते हैं। अचानक ज्योतिष की ओर रुझान बढ़ा। ज्योतिष के जानकारों के साथ रहे और किताबों का अध्ययन कर अंक ज्योतिष में पारंगत हो गए। अब इसी के सहारे अपनी जीविका चला रहे हैं। शरीर कमजोर हो चला है कि हौसला बुलंद बना हुआ है।

सत्तर के दशक में स्कूली जीवन में एथलेटिक्स में नाम था। ऑल एचइसी स्कूल एथलेटिक प्रतियोगिता के सौ मीटर स्पर्धा में 12.2 सेकेंड का समय निकाल सभी को अचरज में डाल दिया। बाद में शतरंज का शौच चढ़ा तो प्रमंडलीय स्पर्धा में चैंपियन बन गए। नेशनल भी खेला। जीवन के झंझावात ऐसे आए कि खेलों में आगे नहीं बढ़ सके। हालांकि शौक आज भी है। वर्ष 2017 में जमशेदपुर में ओपन चेस चैंपियनशिप में भाग लिया।

नहीं मानी हार, खींच रहे जीवन की गाड़ी अतीत को टटोलते हुए दिलीप कुमार शर्मा बताते हैं कि पिता दीनानाथ शर्मा टिस्को में नौकरी करते थे। बाद में उन्होंने नौकरी छोड़ धुर्वा में दूसरी नौकरी पकड़ ली। उनके रिटायर होने के बाद वे यहां चले आए और ठेकेदा री फर्म की छोटी-मोटी नौकरियां कीं। पिता के निधन के बाद पारिवारिक विवादों में घिर गए। इसी बीच, किसी वजह से घर की बिजली काट दी गई। पत्नी बीमार पड़ी और 2013 में चल बसी। खुद किडनी व फेफड़े की बीमारियों ने जकड़ लिया। आध्यात्म की ओर उन्मुख हुए। कई बार गंभीर बीमार पड़े और लगा कि अब जान नहीं बचेगी लेकिन जिजिविषा और प्रार्थना ने बचा लिया।

अंक ज्योतिष विद्या से चला रहे जीविका उम्र बढ़ने के साथ अन्य खेल तो पीछे छूटते गए लेकिन शतरंज में जब कभी मौका मिलता है, हाथ जरूर आजमाते हैं। अचानक ज्योतिष की ओर रुझान बढ़ा। ज्योतिष के जानकारों के साथ रहे और किताबों का अध्ययन कर अंक ज्योतिष में पारंगत हो गए। अब इसी के सहारे अपनी जीविका चला रहे हैं। शरीर कमजोर हो चला है कि हौसला बुलंद बना हुआ है।

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