देश की आन-बान-शान रहे पेशावर विद्रोह के नायक अब ‘अतिक्रमणकारी’ घोषित
पेशावर विद्रोह के नायक वीर चंद्र सिंह गढ़वाली के नाम पर उत्तराखंड में कई सरकारी योजनाएं चल रही हैं, उनके नाम पर मेडिकल कॉलेज भी है और सचिवालय में सभागार भी। लेकिन उन्हीं गढ़वाली को सरकार ने अतिक्रमणकारी करार दिया है। उनकी दो विधवा बहुएं और बच्चे बेघर होने की स्थिति में हैं। आइए पहले आपको बताते हैं कौन थे वीर चंद्र सिंह गढ़वाली।
रोमांचित कर देने वाली गौरवगाथा
23 अप्रैल 1930 को हवलदार मेजर चंद्र सिंह भंडारी के नेतृत्व में पेशावर गई गढ़वाली बटालियन को अंग्रेज अफसरों ने वहां खान अब्दुल गफ्फार खान के नेतृत्व में भारत की आजादी के लिए लड़ रहे निहत्थे पठानों पर गोली चलाने का हुक्म दिया। लेकिन चंद्र सिंह ने इसे मानने से इन्कार करते हुए कहा, हम निहत्थों पर गोली नहीं चलाते…। गढ़वाली बटालियन ने विद्रोह कर दिया। इस घटना को इतिहास में पेशावर विद्रोह के नाम से जाना जाता है। बगावत करने के जुर्म में गढ़वाली और उनके 61 साथियों को कठोर कारावास की सजा दी गई। साथ ही अंग्रेजी हुकूमत ने गढ़वाली के पैतृक ग्राम दूधातोली में उनकी भूमि व मकान को भी कुर्क कर दिया।
महात्मा गांधी ने कहा था
चंद्र सिंह भंडारी को ‘गढ़वाली’ उपाधी देने वाले महात्मा गांधी ने कभी कहा था, मेरे पास गढ़वाली जैसे चार आदमी होते तो देश कब का आजाद हो जाता…। वहीं, आजाद हिंद फौज के जनरल मोहन सिंह ने जिनके बारे में कहा था, पेशावर विद्रोह ने हमें आजाद हिंद फौज को संगठित करने की प्रेरणा दी…। 15 अगस्त को उत्तराखंड सरकार के देहरादून स्थित सचिवालय में गढ़वाली के नाम पर भव्य सभागार का उद्घाटन स्वयं मुख्यमंत्री ने किया था। लेकिन इधर खुद सरकार ने उन्हीं गढ़वाली को अतिक्रमणकारी घोषित कर डाला है।
अतिक्रमणकारी का लगा ठप्पा
दरअसल, चार दशक पूर्व उत्तरप्रदेश शासनकाल में गढ़वाली को आवास निर्माण के लिए बिजनौर वन प्रभाग की जो दस एकड़ भूमि दी गई थी, उसकी लीज आज तक जमा नहीं हो पाई है। नतीजा, बिजनौर वन प्रभाग की ओर से गढ़वाली के वंशजों को लीज जमा न करने की दशा में अतिक्रमणकारी घोषित कर भूमि खाली करने के निर्देश दे दिए गए हैं।
तत्कालीन उप्र सरकार ने दिया था भूखंड
आजादी के आंदोलन में गढ़वाली की अहम भूमिका को देखते हुए 21 जनवरी 1975 में उत्तरप्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री हेमवती नंदन बहुगुणा ने उन्हें कोटद्वार-भाबर के ग्राम हल्दूखाता से लगे वन क्षेत्र में करीब दस एकड़ भूमि 90 वर्ष की लीज पर दे दी। इसमें शर्त यह थी कि प्रत्येक 30 वर्ष में इस भूमि की लीज का रिन्यूवल कराना होगा। एक अक्टूबर 1979 को गढ़वाली इस दुनिया को अलविदा कह गए। इसके बाद स्व. गढ़वाली के पुत्र आनंद सिंह व खुशाल सिंह उक्त भूमि की लीज का हस्तांतरण अपने नाम कराने के लिए उत्तरप्रदेश वन विभाग की चौखटें नापते रहे, लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। इस बीच आनंद सिंह व खुशाल सिंह भी दुनिया को अलविदा कह गए। इसके बाद नौ नवंबर 2000 को उत्तराखंड राज्य के अस्तित्व में आने के बाद यह भूमि उत्तरप्रदेश के कब्जे में चली गई।
यह है वर्तमान स्थिति
वर्तमान में आनंद सिंह की पत्नी कपोत्री देवी व खुशाल सिंह की पत्नी विमला देवी अपने पुत्र-पौत्रों के साथ इस वन भूमि में निवास कर रहे हैं। सरकारी अभिलेखों में यह भूमि आज भी वीर चंद्र सिंह गढ़वाली के नाम दर्ज है। लेकिन इस वीर सपूत को बिजनौर वन प्रभाग ने अतिक्रमणकारी घोषित कर दिया है। 30 अगस्त को गढ़वाली की दोनों पुत्रवधुओं को इस बावत नोटिस जारी किया गया है। यह भी कहा गया है कि वर्ष 1989 से 2004 तक लीज रेट का भुगतान सुनिश्चित करने के साथ ही 2005 के बाद प्रथम 30 वर्षों के लिए लीज 50 फीसद बढ़ोतरी के साथ निर्धारित की जाएगी।
कपोत्री देवी (वीर चंद्र सिंह गढ़वाली की पुत्रवधू) का कहना है कि हमारी आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं कि भारी-भरकम लीज जमा करा सकें। बीते कई वर्षों से लीज हस्तांतरण की मांग कर रहे हैं, लेकिन कोई सुनने वाला वाला नहीं। पैतृक भूमि वापस मिल जाती तो उसी भूमि पर बस जाते, लेकिन अंग्रेजों की कुर्क की गई उस भूमि का भी कहीं पता नहीं है।
अखिलेश चंद्र मिश्रा (प्रभागीय वनाधिकारी, बिजनौर वन प्रभाग) का कहना है कि वीर चंद्र सिंह गढ़वाली के वंशजों से लीज संबंधी अभिलेख तलब किए गए हैं। ऐसा न करने की स्थिति में अग्रिम कार्यवाही की जाएगी।
डॉ. हरक सिंह रावत (वन एवं पर्यावरण मंत्री, उत्तराखंड) का कहना है कि मामला संज्ञान में नहीं है। उत्तर प्रदेश शासन से वार्ता कर कोई बेहतर उपाय निकाला जाएगा।