यूपी की प्रथम अल्पसंख्यक यूनिवर्सिटी इंटीग्रल यूनीवर्सिटी में शिक्षकों का हो रहा जम कर शोषण
संविधान प्रदत्त मूल अधिकारों का खुला हनन
यूजीसी मानक के विपरीत अपने बनाए कानून पर कार्य कर रहे हैं वसीम अख्तर
लखनऊ।NKB:-इन्ट्रीगल यूनिवर्सिटी की बुनियाद एक बुलंद शख्सिय अली मियां नदवी ने रखी थी।वर्ष 2004 में शासन ने अल्पसंख्यकों के सामाजिक व शैक्षिक कल्याण हेतु विधान सभा से बिल पारित करके इंटीग्रल यूनिवर्सिटी को प्रदेश की पहली माइनॉरिटी यूनिवर्सिटी होने का गौरव प्रदान किया।
गुज़रते समय के साथ अल्पसंख्यक समुदाय की तरक़्क़ी तो दूर की बात है, जिस तरह से इस संस्था पर एक ही परिवार के लोगों का वर्चस्व बढ़ता जा रहा है। जिससे प्रतीत होता है कि यूनिवर्सिटी पर वसीम अख़्तर औऱ उनके परिवारवाद का कब्ज़ा होना निश्चित हो गया है।
पूर्व में अवैध रुप से खुद को तीसरी बार वाइस चांसलर बनने पर माननीय उच्च न्यायालय द्वारा सैय्यद वसीम अख्तर को पद से हटा कर जल्द से जल्द परमानेंट वाइस चांसलर की नियुक्ति करने का आदेश दिया गया। हटाये गए वाइस चांसलर ने खुद को कुछ ही दिनों के अंदर चांसलर की पोस्ट पर स्वयं स्थापित कर लिया। सवाल यह उठता है कि क्या सैय्यद वसीम अख़्तर ने अपने पद, हैसियत एवं प्रभाव का दुरुपयोग किया ?
मालूम चला कि पूर्व में चांसलर रहे नदवा के प्रिंसिपल सैदुर्रहमान आज़मी इंटीग्रल यूनिवर्सिटी से कोई भी वेतन नहीं लेते थे जबकि सैय्यद वसीम अख्तर ने अपने आपको चांसलर बनाते ही ऑनरेरियम के रूप में 2,50,000/- प्रति माह चैक से लेना शुरू कर दिया।चांसलर साहब के पुत्र सैय्यद नदीम अख्तर इस यूनिवर्सिटी में मेकैनिकल इंजीनियरिंग विभाग में प्रोफेसर हैं और इंजीनियरिंग फैकल्टी के डीन एवं डायरेक्टर, प्लानिंग एन्ड रिसर्च भी हैं, इनके बारे में महत्त्वपूर्ण बात यह है कि इन्होंने आज की तारीख तक एक भी क्लास नहीं पढ़ाई है मगर इनका यूनिवर्सिटी में कभी एक क्लास नही पढ़ाया होगा.?
मिली जानकारी के अनुसार दिनाँक 28/08/2018 को इन्टीग्रल यूनिवर्सिटी के रजिस्ट्रार की तरफ से डिपार्टमेंट ऑफ़ बायो इंजीनियरिंग एवं डिपार्टमेंट ऑफ़ बायो साइंस के फैकल्टी मेंबर को एक मेल आया जिसमें लिखा था कि उपर्युक्त विभाग के सभी शिक्षक एडहॉक हैं। इसके परिणाम स्वरुप शिक्षकों में रोष की लहर दौड़ गई। दिनाँक 4/09/2018 दिन मंगलवार को कुलाधिपति के सलाहकार प्रोफेसर बशीर अहमद ने अचानक 15 मिनट में डिजिटल नोटिफिकेशन के द्वारा विभाग में मीटिंग की। इस मीटिंग में उन्होंने स्पष्ट किया की विश्वविद्यालय में उपस्थित रिकॉर्ड के अनुसार समस्त कर्मचारी जो कि पहले कई वर्षों से (3 वर्ष, 5 वर्ष एवं 15 वर्ष) कार्य कर रहे हैं, वे सभी एडहॉक पे हैं और सभी को पुनः एक नई चयन प्रक्रिया से गुजरना होगा। जबकि सच्चाई यह है कि वर्ष 2015 में NAAC को जो रिकॉर्ड भेजा गया था, उसमें लगभग 400 से अधिक कर्मचारी स्थायी/ रैगुलर दिखाए गए थे, तो क्या डेटा झूठा था ?
इससे पूर्व में यहाँ के बहुत सारे शिक्षकों को यूनिवर्सिटी प्रशासन ने जबरन या तो हटा दिया था या मजबूर करके आधे वेतन पे काम करने को बाध्य कर दिया था।
शोषण के इसी घटनाक्रम के विरोध में अब इस विश्वविद्यालय के विभिन्न विभागों के 200 से ज़्यादा शिक्षकों ने कुलाधिपति को ज्ञापन देकर इस बात का स्पष्ट संकेत दे दिया कि अब भविष्य में विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा शिक्षक वर्ग के प्रति शोषण की कोई भी कार्यवाही अथवा किसी भी अनैतिक गतिविधि का ज़ोरदार विरोध किया जाएगा दिनाँक 5/09/2018 को जब सभी शिक्षक गण पुनः कुलाधिपति के पास ज्ञापन देने गए कि उनके साथ अन्याय हो रहा है तो कुलाधिपति के द्वारा स्थायी एवं रैगुलर की एक नई परिभाषा दी गयी। उनके अनुसार “जो कर्मचारी प्रतिदिन विश्वविद्यालय आता और जाता है उसी को रैगुलर कहते हैं।अतः आप सभी को चयन प्रक्रिया जो कि 7/09/2018 से प्रारम्भ हो रही है उससे गुजरना पड़ेगा।” कुलाधिपति के द्वारा दिया गया उक्त वक्तव्य स्वयं में हास्यास्पद है। उनके द्वारा दी गयी रैगुलर की परिभाषा एक भद्दा मज़ाक है, उपहास है एवं शिक्षक वर्ग को संविधान द्वारा दिए गए मूल अधिकारों का खुला हनन है। अतः अब विश्वविद्यालय के सभी शिक्षक शोषण की इस कार्यवाही के विरोध में मजबूरन लामबंद हो गए हैं। उनका कहना है कि वे इस विक्टोरियन कार्यवाही का हर हाल में विरोध करेंगे।
यूपी की इस प्रथम माइनॉरिटी विश्वविद्यालय को भाई भतीजावाद, वर्चस्व, राजनीति एवं शोषण से बचाने के लिए मीडिया एवं शासन को संज्ञान लेना अति आवश्यक होगा। जिससे पीड़ित शिक्षक वर्ग को न्याय मिल सके।