शिया लीडरशिप इतनी कमज़ोर तो नहीं थी !

अज़ादारी शिया मुसलमानों का सरमाया है। दरगाह, कर्बला और इमामबाड़े अज़ादारी का मरकज़ हैं। ये तमाम धार्मिक स्थल वक्फ की सम्पत्ति हैं। शिया अवकाफ की रक्षा-सुरक्षा और निगरानी शिया वक्फ बोर्ड करता है।शिया लीडरशिप इतनी कमज़ोर तो नहीं थी !

मजहबी रहनुमा कह रहे है कि शिया वक्फ बोर्ड शिया धार्मिक स्थलों को खत्म किये दे रहा है। क्योंकि बोर्ड के चेयरमैन बेईमान हैं। सरकार अपना जायज़ तर्क देते हुए कह रही है कि हम वक्फ बोर्ड के चेयरमैन को नहीं हटा सकते। क्योंकि शिया वक्फ बोर्ड एक इलेक्टेड बाडी है। इसका चेयरमैन भी बोर्ड के सदस्यों ने ही चुना है। इसके सदस्य शिया ही होते हैं। शिया मुतावल्ली, शिया वकील और विधानसभा के शिया सदस्य ही शिया वक्फ बोर्ड के सदस्य होते हैं। ये जब चाहें बोर्ड के चेयरमैन को हटा दें।
बाकी सरकार वक्फ बोर्ड की शिकायतों और कथित अनियमितताओं की जांच कर ही रही है।
गौरतलब बात ये है कि शिया वक्फ बोर्ड को बचाने के लिए शिया रहनुमा नौ-दस साल से बोर्ड के चेयरमैन को हटाने की कोशिश में कामयाब क्यों नहीं हो पा रहे हैं। बोर्ड के सारे सदस्य जो चैयरमेन को हटा सकते हैं वो अपने मजहबी रहनुमा की क्यों नहीं सुन रहे। जब मुतावल्ली मजहबी रहनुमा की बात नहीं मान रहे तो कैसे माना जाये कि आम शिया अपनी कौम के रहनुमा पर विश्वास करते होंगे।

बोर्ड के चेयरमैन के खिलाफ लड़ाई में कल एक छोटी सी कामयाबी मिली, लेकिन उसमें भी किसी मजहबी लीडर को श्रेय नहीं जाता। बतौर एम एल सी शिया वक्फ बोर्ड के सदस्य बुक्कल नवाब साहब ने बोर्ड की सदस्यता से इस्तीफा देते हुए बोर्ड के चेयरमैन के खिलाफ बयान दिया। नवाब साहब ने ये कदम शिया होने के नाते शियों के किसी रहनुमा के कहने पर नहीं उठाया। अपने सियासी रहबर के इशारे पर उन्होंने ये फैसला किया।
ये बात शिया लीडरशिप के दावेदार खेमे ने खुद कही है कि शिया धार्मिक नेता के आग्रह पर माननीय मुख्यमंत्री जी ने नवाब साहब पर बोर्ड से इस्तीफा देने का दबाव बनाया। और फिर बुक्कल नवाब साहब ने बोर्ड की सदस्यता से इस्तीफा देते हुए बोर्ड को भंग करने की सिफारिश की।

तो क्या शिया रहनुमाओं को वाया हुकूमत शियों को अपने काबू में करना पड़ेगा !
ये बड़ा सवाल है।
-नवेद शिकोह
9918223245

E-Paper