इस मामले को लेकर बिजली सचिव आलोक कुमार ने उत्तराखंड के प्रमुख सचिव एस एस संधु को लिखा पत्र… 

जोशीमठ के एक बड़े हिस्से में आए दरार के मामले में जिस तरह से सरकारी बिजली कंपनी एनटीपीसी (NTPC) की तपोवन-विष्णुगढ़ पनबिजली परियोजना को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है उसके बचाव में अब केंद्र सरकार भी आ गई है। अब जबकि यह मामला राष्ट्रीय मुद्दा का रूप ले चुका है तब केंद्रीय बिजली सचिव आलोक कुमार ने 11 जनवरी, 2022 को उत्तराखंड के प्रमुख सचिव एस एस संधु को एक पत्र लिखकर एनटीपीसी की उक्त परियोजना के सदंर्भ में जानकारी उपलब्ध कराई है। इसमें केंद्र सरकार ने एनटीपीसी की निर्माणाधीन परियोजना का परोक्ष तौर पर बचाव करते हुए कहा है कि जोशीमठ की जमीन में दरार का मामला 46 वर्ष पुराना है। इस संदर्भ में तत्कालीन उत्तर प्रदेश सरकार की तरफ से गठित एम सी मिश्रा समिति की रिपोर्ट को भी सहारा बनाया गया है।

जोशीमठ में दरार का मुद्दा पुराना

इस पत्र में बिजली सचिव कुमार ने लिखा है कि जोशीमठ में जमीन की स्थिति को लेकर जो घटनाएं सामने आई हैं इसके संदर्भ में बिजली मंत्रालय में कुछ सूचनाएं हैं जिन्हें मैं साझा कर रहा हूं। उन्होंने लिखा कि जोशीमठ की जमीन में दरार का मुद्दा काफी पुराना है। वर्ष 1976 में तत्कालीन यूपी सरकार ने गढ़वाल के आयुक्त एम सी मिश्रा की अध्यक्षता में एक समिति बनाई थी।

मलवों के ढेर पर बसा है जोशीमठ

मिश्रा समित ने बताया था कि जोशीमठ ठोस चट्टान पर स्थित नहीं है, यह एक बहुत ही पुराने भूस्खलन से आए मलवों के ढेर पर बसा है। यहां की जमीन भूरभूरा व रेतीला पत्थरों पर स्थित है। यहां का भूस्खलन का क्षेत्र पूर्व में परसारी के पास बड़े नाला से लेकर पश्चिम में रिज और उत्तर में गौख से दक्षिण में नदी की पाट तक फैला हुआ है। इसका विस्तार हाथी पर्वत और औली से आगे तक का है। समिति ने यह भी कहा है कि दरार की वजह से रिसाव और भूमि कटाव है। इसके अलावा समिति ने तभी खुले जल निकासी व्यवस्था को बंद करने, रिसाव को बंद करने, मल निकासी के लिए पक्के सीवेज लाइन के निर्माण का सुझाव दिया गया था। बिजली सचिव ने आगे लिखा है कि तपोवन विष्णुगढ़ परियोजना का निर्माण नवंबर, 2006 में शुरु किया गया था। इसमें कंक्रीट बैराज का निर्माण भी शामिल था, जो जोशीमठ शहर से 15 किलोमीटर दूर है।

चमोली के डीएम ने एक समिति का किया था गठन

हेड रेस टनल के बारे में बताया गया है कि यह जोशीमठ शहर के नीचे नहीं है। यह शहर से 1.1 किलोमीटर की दूरी पर और भूमिस्तर से 1.1 किलोमीटर नीचे है। इसका निर्माण बोरिंग मशीन से किया गया है जो जमीन के नीचे के पत्थरों की प्रकृति में कोई छेड़छाड़ नहीं करती। निर्माण के समय ही कुछ नागरिकों की चिंताओं पर चमोली के डीएम ने एक समिति गठित की थी जिसमें आईआईटी रुड़की के निदेशक, वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन ज्यूलोजी के निदेशक और नेशनल इंवायरमेंटल इंजीनियरिंग इंस्टीट्यूट, नागपुर के निदेशक शामिल थे। समिति ने अगस्त, 2010 में रिपोर्ट दी थी जिसमें कहा था कि टनल बोरिंग मशीन से की जाने वाली खुदाई से कोई अस्थिरता पैदा नहीं हुई है। यह भी कहा है कि टनल निर्माण से वहां की जमीन के धंसने की कोई संकेत नहीं मिले थे।

इन वजहों से कमजोर हुई जोशीमठ की जमीन

अंत में बिजली सचिव कुमार ने यह भी बताया है कि अगस्त, 2022 में भी चमोली के डीएम ने एक विशेष समिति बनाई थी जिसने अपनी रिपोर्ट में वहां जमीन के धंसने के कारणों को गिनाया था। इसमें वहां खराब सीवेज व्यवस्था होने की वजह से लगातार उपर से पानी के रिसाव को एक कारण बताया था। बारिश की पानी के साथ ही घरेलू जल भी लगातार जमीन के अंदर जाने को कारण बताया गया था जिसकी वजह से जोशीमठ की जमीन कमजोर हो रही है। पूर्व में अलकनंदा नदी में बाढ़ आने की वजह से जिस जगह पर जोशीमठ स्थित है उस पर असर पड़ने को भी एक अन्य कारण बताया गया है। साथ ही रह-रहकर भूकंप आने और निर्माण गतिविधियों को भी वजह बताया गया था।  
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