हिंदी दिवस के अवसर पर कार्यक्रम का आयोजन

सिधौली/सीतापुर। आज दुनिया का कोई ऐसा कोना नहीं है जहाँ भारतीयों का अस्तित्व न हो। दुनिया के डेढ सौ से अधिक देशों में दो करोड़ से ज्यादा भारतीयों का बोलबाला कायम है । अधिकांश प्रवासी भारतीय अन्य भाषाओं के साथ-साथ विदेश की सरजमीं पर विलक्षण प्रतिभाओं के वजह से हिन्दी भाषा का परचम लहरा रहे है । यह बात हिंदी दिवस के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम के दौरान स्तंभकार चंद्रशेखर प्रजापति ने स्वामी विवेकानंद संस्थान सिधौली में प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी कर रहे छात्र-छात्राओं को संबोधित करते हुए कही

आगे उन्होंने बताया 14 सितम्बर को हिंदी दिवस के रूप में मनाने की शुरुआत वर्ष 1949 से हुई थी। इस दिन भारत की संविधान सभा ने हिंदी भाषा को राजभाषा का दर्जा प्रदान किया था ।

हिन्दी भाषा का वर्तमान समय में सृजनात्मक माध्यम में भले ही यह आरोप लगाया जा रहा है कि भारत भाषा के प्रति जो गर्व का भाव होना चाहिए उसे देश खो रहा है। लेकिन हिन्दी भाषा और हिन्दी भाषी प्रदेश , भारत तथा विदेश में हिन्दी साहित्य लेखन का एक माध्यम रही है । इसे हमें हिन्दी साहित्य की गहराई में जाकर दीदार करना चाहिए और हिन्दी भाषा का विस्तार समझना चाहिए। भारतीय उपमहाद्वीप, यूरोप तथा अफ्रीका इत्यादि देशों में रह रहे प्रवासी भारतीय हिन्दी भाषा के माध्यम से साहित्य सृजन कर रहे हैं । साहित्य के प्रति उनकी जागरुकता कहीं ना कहीं हिन्दी भाषा के प्रति झुकाव को दिखा रही है । हमारी अस्मिता भारतीय केंद्रीय पहचान है , यह अस्मिता संस्कृति से जुड़ी हुई है कहीं ना कहीं उस भारतीय संस्कृति से दूर हो रहे हैं और हम ऐसी जगह पर रह रहे हैं जहां की अपनी निजी संस्कृति प्रवासी लेखन की यह स्थिति विदेश में हिन्दी भाषा और साहित्य लेखन के प्रति झुकाव को दिखाता है।

और यह भी दिखाता है कि आज दुनिया के किसी भी हिस्से में रह रहा व्यक्ति हिंदी भाषा में अपनी अभिव्यक्ति कर सकता है । इस दौरान स्वामी विवेकानंद शिक्षण संस्थान के संस्थापक शिक्षाविद आर डी वर्मा संस्था में मौजूद सभी छात्र छात्राओं को हिंदी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं दी ।

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