भारत और आस्‍ट्रेलिया के बीच टू प्‍लस टू मंत्रिस्‍तरीय वार्ता पर चीन की है पैनी नजर, टू प्‍लस टू संवाद से आस्‍ट्रेलिया के साथ संबंधों में आई मिठास

भारत और आस्‍ट्रेलिया के बीच टू प्‍लस टू मंत्रिस्‍तरीय वार्ता पर चीन की पैनी नजर है। टू प्‍लस टू वार्ता के क्‍या निहितार्थ हैं। दोनों देशों के बीच इस वार्ता में चीन की क्‍या दिलचस्‍पी होगी। दरअसल, दक्षिण एशिया में अफगानिस्‍तान में अमेरिकी सैनिकों की वापसी के बाद काबुल पर तालिबान का कब्‍जा, अफगानिस्‍तान में चीन और पाकिस्‍तान की बढ़ती दिलचस्‍पी। हिंद प्रशांत क्षेत्र में चीन का बढ़ता दखल और भारत-चीन संबंधों में उत्‍पन्‍न हुई कटुता को देखते हुए दोनों देशों के बीच यह वार्ता काफी अहम मानी जा रही है। आइए जानते हैं विशेषज्ञों की राय कि बदलते अंतरराष्‍ट्रीय परिदृष्‍य में यह वार्ता कितनी कारगर और सार्थक होगी।

एक नए परिवेश में सार्थक रही दोनों देशों के बीच संवाद

  • प्रो. हर्ष पंत का कहना है कि भारत और आस्‍ट्रेलिया के बीच टू प्‍लस टू वार्ता ऐसे वक्‍त में हो रही है, जब कोरोना जैसे खतरनाक महामारी से पूरी दुनिया जूझ रही हैं। इसके साथ दक्षिण एशिया की राजनीतिक घटनाक्रम में तेजी से बदलाव हो रहे हैं। आस-पास का भू-राजनीतिक वातावरण बहुत तेजी से बदल रहा है। अफगानिस्‍तान संकट का प्रभाव भारत पर सीधे तौर पर है। अफगानिस्‍तान से अमेरिकी सैनिकों की वापसी से तालिबान एवं आतंकी संगठनों के हौसले बुलंद है। इसकी आंच जम्‍मू कश्‍मीर तक पहुंचने के आसार हैं।
  • इसके अलावा हिंद प्रशांत क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभुत्‍व ने अमेरिका और पश्चिम देशों को एक नई चुनौती दी है। ऐसे में भारत-आस्‍ट्रेलिया के बीच वार्ता को एक सकारात्‍मक कड़ी के रूप में देखा जाना चाहिए। दोनों देशों के लिए प्लस टू प्लस संवाद द्विपक्षीय रक्षा व रणनीतिक संबंधों को और मजबूत करने के लिहाज से सार्थक रही। खासकर तब जब हिंद प्रशांत क्षेत्र में चीन की बढ़ती आक्रामकता को देखते हुए इस क्षेत्र में सहयोग को और बढ़ावा देने पर चर्चा हुई। हाल में जिस तरह से चीन और भारत के बीच संबंधों में तनाव बढ़ा है, उससे यह संवाद सार्थक है।
  • उन्‍होंने कहा कि चीन, पाकिस्‍तान और तालिबान के त्रिकोणात्‍मक संबंधों ने भारत के समक्ष एक बड़ी चुनौती पेश की है। भारत को अब एक नई रणनीति के साथ इससे निपटना होगा। अफगानिस्‍तान में अमेरिकी सैनिकों की वापसी और तालिबान का काबुल पर कब्‍जे के बाद एक विचित्र स्थिति उत्‍पन्‍न हुई। इस घटना ने महाशिक्‍त अमेरिका की क्षमता पर भी सवाल उठाया है। उसकी वापसी को लेकर चीन ने भी मजा लिया था। ऐसे कई मौके आए जब चीन ने अमेरिका पर खुलेतौर पर तंज कसा और तालिबान के साथ खड़ा होने का वादा किया।
  • प्रो. पंत ने कहा कि ऐसी स्थिति में क्वाड की प्रासंगिकता पर सवाल उठने लगे। आस्ट्रेलिया और भारत क्वाड या क्वाड्रिलेट्रल गठबंधन का हिस्सा हैं। क्वाड के अन्य दो सदस्य अमेरिका और जापान हैं। इस संगठन का एक अन्‍य मकसद हिंद प्रशांत क्षेत्र में बढ़ रहे चीन के प्रभुत्‍व को सीमित करना है। अफगानिस्‍तान से अमेरिका की वापसी ने कहीं न कहीं क्वाड के लक्ष्‍यों पर भी सवाल खड़े कर दिए। क्वाड का एक बड़ा लक्ष्‍य हिंद-प्रशांत क्षेत्र को एक स्वतंत्र, खुला और समावेशी सुनिश्चित करने की दिशा में काम करने का है। अमेरिका के इस स्‍टैंड से क्वाड के संकल्प पर प्रश्‍न चिन्‍ह खड़े हो गए हैं। उन्‍होंने कहा कि पिछले कुछ वर्षों में भारत और आस्ट्रेलिया के बीच समुद्री सुरक्षा, रक्षा और सैन्य सहयोग बढ़ा है।

मोदी की ऐक्ट ईस्ट नीति से भारत को बेहद फायदा

1- प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ऐक्ट ईस्ट नीति से भारत को बेहद फायदा हुआ है। पीएम मोदी और आस्‍ट्रेलियाई प्रधानमंत्री स्काट मारिसन के बीच दोस्ती ने इन संबंधों में काफी मिठास घोली है। अगर क्वाड के चारों देशों के बीच अलग-अलग द्विपक्षीय संबंधों पर गौर किया जाए तो साफ दिखता है कि इन तमाम समीकरणों में भारत और आस्‍ट्रेलिया के संबंध सबसे कमजोर नजर आते रहे हैं।

2- यह आस्‍ट्रेलिया ही था जिसने एक दशक से ज्यादा पहले क्वाड से यह कहकर हाथ जोड़ लिए थे कि वह चीन को नाराज नहीं करना चाहता। आस्‍ट्रेलिया के अमेरिका और जापान के साथ पहले से ही सैन्य और परमाणु सुरक्षा से जुड़े समझौते थे। साफ है कि सवाल सिर्फ भारत का था और भारत और चीन के बीच तब आस्‍ट्रलिया ने चीन को चुना था।

3- 1998 का भारत का परमाणु परीक्षण के बाद आस्‍ट्रेलिया का व्यवहार सबसे रूखा और गैरजरूरी था। हालांकि, जापान और अमेरिका ने अपनी प्रतिक्रिया में कूटनीतिक शिष्टाचार दिखाया था। आस्‍ट्रेलिया तब कुछ ज्यादा ही परेशान हो उठा था और उसने स्टाफ कोर्स कर रहे भारतीय सेना के अफसरों को वापस भेजने का बेजा कदम उठाया था। इस लिहाज से पिछले कुछ साल से भारत और आस्‍ट्रलिया के बीच संबंध काफी अच्छे रहे हैं।

आखिर क्‍या है एक्‍ट ईस्‍ट पालिसी

वर्ष 2014 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भारत की एक्‍ट ईस्‍ट पालिसी एशिया-प्रशांत क्षेत्र में मौजूद देशों के भी सहभागिता को बढ़ावा देने के मकसद से लाई थी। इस नीति ने पूर्व सरकारों की ओर से लुक ईस्‍ट की नीति को एक कदम आगे बढ़ाया था। इस नीति को जब शुरू किया गया तो इसे एक आर्थिक पहल के तौर पर देखा गया था, लेकिन अब इस नीति ने एक राजनीतिक, रणनीतिक और सांस्‍कृतिक अहमियत भी हासिल कर ली है। इसके तहत देशों कें बीच बातचीत और आपसी सहयोग को बढ़ाने के लिए एक तंत्र की शुरुआत भी कर दी गई है। भारत ने इस नीति के तहत इंडोनेशिया, विएतनाम, मलेशिया, जापान, रिपब्लिक अाफ कोरिया, आस्‍ट्रेलिया, सिंगापुर और आसियान देशों के साथ ही एशियाई-प्रशांत क्षेत्र में मौजूद देशों के साथ संपर्क को बढ़ाया है।

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