कभी रामलीला में बेचता था गोल-गप्पे, अब भारत के लिए खेलेगा क्रिकेट

नई दिल्ली. कहते हैं अगर हौसले बुलंद हो तो बड़ी से बड़ी कठिनाईयों को भी दम तोड़ना पड़ता है. ऐसे ही दमदार इरादों के साथ भारत की अंडर 19 टीम में जगह बनाने में कामयाब रहे यशस्वी जायसवाल. यशस्वी का सपना था भारत के लिए क्रिकेट खेलना. ये सपना उसने उस वक्त देखा था जब वो सिर्फ 11 साल का था. आज उसका ये सपना बेशक हकीकत का चोला ओढ़ चुका है लेकिन इस सपने को साकार करने के लिए उसे जिन मुश्किलातों का सामना करना पड़ा, उसे जानकर आपके रोंगटे खड़े हो सकते हैं.

मुंबई में मुश्किल भरे दिन

दो भाइयों में छोटा यशस्वी उत्तर प्रदेश के भदोही का रहने वाला है. उसके पिता वहीं एक छोटी सी दुकान चलाते हैं. यशस्वी कम उम्र में ही क्रिकेट का सपना लेकर मुंबई पहुंच गया था. उनके पिता के लिए परिवार को पालना मुश्किल हो रहा लेकिन फिर भी उन्हें उसके फैसले पर एतराज नहीं था. क्रिकेट के अपने हसीन सपने को जीने के लिए यशस्वी 3 साल तक मुंबई के मुस्लिम यूनाइटेड क्लब के टेंट में रहा. टेंट में रहने से पहले यशस्वी एक डेयरी में काम करता था, वहीं खाता था और सोता भी था. लेकिन जब वहां से उसे ये कहकर भगा दिया गया कि वो उनके किसी काम का नहीं है. यशस्वी ने बताया, “इससे पहले मैं काल्बादेवी डेयरी में काम करता था. पूरा दिन क्रिकेट खेलने के बाद मैं थक जाता था और सो जाता था. एक दिन उन्होंने मुझे ये कहकर वहां से निकाल दिया कि मैं सिर्फ सोता हूं और काम में उनकी कोई मदद नहीं करता.”

मां-बांप को बिना बताए बेचे गोल-गप्पे

वैसे तो मुंबई में यशस्वी के चाचा का घर भी था लेकिन वो इतना बड़ा नहीं था कि वो उसे अपने साथ रख सके. इसलिए डेयरी से निकाले जाने के बाद मुस्लिम यूनाइटेड क्लब से अनरोध करके चाचा ने उसके वहां रहने की व्यवस्था करा दी. अगले तीन साल के लिए वो टेंट ही यशस्वी के लिए घर बन गया. पूरी कोशिश यही होती कि मुंबई में उनकी संघर्ष से भरी ज़िंदगी की बात मां-बाप तक नहीं पहुंचे. अगर उनके परिवार को पता चलता तो क्रिकेट करियर का वहीं अंत हो जाता. उनके पिता कई बार पैसे भेजते लेकिन वो कभी भी काफी नहीं होते. राम लीला के समय आज़ाद मैदान पर यशस्वी ने गोल-गप्पे भी बेचे. लेकिन इसके बावजूद कई रातों को उन्हें भूखा सोना पड़ता था.

‘परिवार को याद कर रोता था’

अपने मुश्किल दिनों को याद करते हुए यशस्वी ने कहा,”राम लीला के समय मेरी अच्छी कमाई हो जाती थी. मैं यही दुआ करता था कि मेरी टीम के खिलाड़ी वहां न आएं. लेकिन कई खिलाड़ी वहां आ जाते थे. मुझे बहुत शर्म आती थी. मैं हमेशा अपनी उम्र के लड़कों को देखता था. वो घर से खाना लाते थे. मुझे तो ख़ुद बनाना था और ख़ुद ही खाना था. दोपहर और रात का खाना टेंट में मिलता था इसके अलावा नाश्ता दूसरों के भरोसे होता था. टेंट में मैं रोटियां बनाता था. वहां बिजली नहीं थी इसलिए हर रात केंडल लाइट डिनर होता था.” उन्होंने कहा, ” मैं दिन में इतना व्यस्त रहता था कि कब शाम हो जाती थी पता ही नहीं चलता था. लेकिन रात काटनी उतनी ही मुश्किल थी. मुझे रात में अपने परिवार की बहुत याद आती थी. कई बार मैं सारी रात रोता था.”

भारत की अंडर-19 टीम में शामिल

बहरहाल, 17 साल के हो चुके यशस्वी उन पलों को अब पीछे छोड़ चुके हैं. अब उनके सामने उनका फ्यूचर है. उन्हें श्रीलंका दौरे के लिए चुनी गई भारत की अंडर 19 टीम में बतौर मिडिल ऑर्डर बल्लेबाज जगह मिल चुकी है और वो वर्ल्ड क्रिकेट के सीने पर अपनी परफॉर्मेन्स की छाप छोड़ने को बेताब हैं. मुंबई के अंडर-19 कोच सतीश समंत के मुताबिक, ” यशस्वी का फोकस और खेल की समझ कमाल की है.”

5 साल, 49 शतक … 

इस बड़ी उपलब्धि से पहले जब मुबई की अंडर 19 टीम में यशस्वी का सलेक्शन नहीं हुआ था तब आज़ाद मैदान में सब जानते थे कि एक युवा होनहार बल्लेबाज़ को मदद की ज़रूरत है. जल्द ही एक लोकल कोच ज्वाला सिंह यशस्वी से मिले और उन्हें कोचिंग देनी शुरू कर दी. ज्वाला ख़ुद कम उम्र में उत्तर प्रदेश से बाहर निकले थे. ज्वाला ने कहा, ‘यशस्वी में मुझे अपना बचपन दिखता है. वो 12 साल का रहा होगा और उसे ‘ए’ लेवल के गेंदबाज़ का सामना करने में कोई परेशानी नहीं आई. जब मैं यूपी से मुंबई आया था तो मेरे पास भी रहने के लिए घर नहीं था. कोई गॉडफादर या बताने वाला नहीं था. यशस्वी प्रतिभावान है. पिछले 5 साल में उसने 49 शतक लगाए हैं.”

कोच ने कहा यशस्वी भव

ज्वाला ने कहा, “मैं मुंबई के सिलेक्टर्स का धन्यवाद करता हूं कि उन्होंने यशस्वी के हुनर को पहचाना. मुझे उम्मीद है कि वो कड़ी महनत करेगा और अंडर 19 टीम में मिले मौके का पूरा फायदा उठाएगा.”

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