राज्यसभा के उपसभापति के चुनाव पर भाजपा खेल सकती है ‘अकाली दल’ कार्ड
राज्यसभा के उपसभापति और वरिष्ठ कांग्रेस नेता पीजे कुरियन का कार्यकाल 30 जून को खत्म हो गया है। सभी दलों की निगाहें 18 जुलाई से लेकर 10 अगस्त तक चलने वाले मानसून सत्र में होने वाले राज्यसभा के उपसभापति के चुनाव पर लग गई हैं। 2019 में विपक्षी दल कितने एकजुट होंगे इसका भी अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है।

उपराष्ट्रपति एम वेंकैया नायडू ने रविवार को निवर्तमान उपसभापति पी जे कुरियन के विदाई समारोह के दौरान कहा कि मैं आशा करता हूं कि सत्तारूढ़ और विपक्षी दल सर्वसम्मति से श्री कुरियन के स्थान पर नया उपसभापति चुन लेंगे।
अप्रैल में चुनावों के बाद भाजपा 69 सदस्यों के साथ राज्यसभा में सबसे बड़ी पार्टी बन चुकी है। ऐसे संकेत मिल रहे हैं कि बीजेपी अपने सबसे पुराने सहयोगी अकाली दल के वरिष्ठ सांसद नरेश गुजराल को उम्मीदवार बनाकर गैर एनडीए पार्टियों यहां तक कि टीडीपी जैसी पार्टी को भी अपने पाले में ले सकती है।
खास बात यह है कि पिछले 41 साल के उपसभापति का पद कांग्रेस के पास है। वैसे तो पिछले 66 सालों में से 58 साल तक यह पद उसके पास रहा, लेकिन इस बार उच्च सदन में संख्या का संतुलन ऐसा है कि कांग्रेस जीत का दावा नहीं कर सकती। विपक्ष एकजुट होकर सत्ता पक्ष को मात देने की स्थिति में है, लेकिन इसके लिए कांग्रेस समेत 16 विपक्षी दलों को एकजुट होना होगा। इनमें गैर-यूपीए, गैर-एनडीए वाले बीजद और तृणमूल भी है। मगर दो खेमों में बंटे विपक्ष को ऐसे प्रत्याशी की जरूरत होगी, जिस पर सभी सहमत हों।
वहीं, भाजपा के सामने एनडीए के घटक दलों को एकजुट रखने की चुनौती है। साथ ही उन दलों का समर्थन भी हासिल करना होगा, जो चार साल के दौरान एनडीए और यूपीए दोनों से दूरी बनाते हुए संतुलन साधते रहे हैं। अन्नाद्रमुक सदस्यों को भी अगर भाजपा के खेमे में मान लिया जाए, तब भी उसके पास 113 सदस्य हैं। शिवसेना और अन्नाद्रमुक ने किनारा कर लिया या वोटिंग से दूर रहे, तो एनडीए के लिए अपना उपसभापति बनवाना असंभव हो जाएगा। राज्यसभा में कुछ गैर-एनडीए दल बीच का रास्ता अपनाते रहे हैं। भाजपा की उम्मीद और नाउम्मीदी इन्हीं पर निर्भर करेगी।