जब श्रुति को डराया मैथ व साइंस के सवालों ने, तो लिख डाली जवाबों की किताब, हुआ प्रकाशन

लखीमपुर खीरी। हाईस्कूल की परीक्षा सामने थी और श्रुति को साइंस व मैथ्स के पाठ्यक्रम में कुछ भी समझ नहीं आ रहा था। लेकिन पढ़ना तो था ही और परीक्षा भी देनी थी, लिहाजा उसने हिम्मत नहीं हारी। उत्तर प्रदेश के लखीमपुर खीरी जिले के छोटे से गांव बोझवा में रहने वाली श्रुति तिवारी भी उन विद्यार्थियों में एक थी, जिन्हें विज्ञान के सूत्रों और गणित के सवालों से डर लगता था। लेकिन इस डर की छुट्टी कैसे की जाती है, यह श्रुति से सीखा जा सकता है।

दसवीं की परीक्षा की तैयारी श्रुति ने जिस तरह से की, जो नोट्स बनाए, वह आज किताब के रूप में सामने हैं। श्रुति की किताब बाजार में आई तो तहलका मच गया कि सोलह साल की इस बेटी ने विज्ञान के बड़े बड़े लेखकों को चुनौती कैसे दे दी। विश्व पुस्तक मेले में तारीफ हासिल कर चुकी यह किताब अब अमेजन और फ्लिपकार्ट पर भी उपलब्ध है। श्रुति के पिता अमित तिवारी पेशे से किसान हैं और मम्मी मनीषा गृहिणी।

फिर सब समझ में आने लगा

श्रुति ने अपने ही तरीके से पढ़ाई शुरूकी। उसने किताब में लिखी चीजों को सहज होकर पढ़ना और समझना शुरू किया। जो-जो समझ में आ रहा था, उसे और बेहतर तरीके से समझने की कोशिश की। चीजें जिस रूप में उसे समझ में आ रही थीं, उसे उसी तरह लिखना शुरू कर दिया। इस तरह किताब में लिखी चीजों को उसने अपनी सहज समझ के मुताबिक और अपने लिखे में तब्दील कर लिया।

किताब में लिखे फार्मूलों और सूत्रों को भी उसने अपनी समझ के मुताबिक सरल बना लिया। इन्हीं नोट्स को पढ़कर और याद कर श्रुति ने हाईस्कूल की परीक्षा में जिले में टॉप रैंक हासिल की। उसके बनाए नोट्स पर आधारित किताब ‘साइंस सेंस’ आज बाजार में उपलब्ध है।

दादी ने दी थी सीख

श्रुति बताती हैं, कक्षा आठ तक मैं अंग्रेजी माध्यम की छात्रा थी, लेकिन नवीं से जब बोर्ड बदला तो साइंस बुक की भाषा और खासकर गणित समझने में कठिनाई हुई। ऐसे में दादी की दी सीख बहुत काम आई। दादी कहती थीं कि जो भी पढ़ो, उसे लिख-लिख कर देखा करो। याद किया करो। ज्यादा से ज्यादा लिखा करो। बस मैंने यही किया। जो भी पढ़ती और जो समझती, उसे बिना किताब देखे अपने शब्दों में लिखने लगी।

2015 में दसवीं की परीक्षा में मैंने अच्छे अंक हासिल किए। इसी बीच टीचर बीडी शुक्ला को मेरे नोट्स के बारे में पता चला। जब उन्होंने नोट्स देखे, तो इसे बुक के रूप में छपवाने की सलाह दी। एक साल तक मैंने अपनी किताब छपवाने के लिए ऑफ लाइन व ऑन लाइन प्रयास किया। तभी हरियाणा की एक पब्लिकेशन कंपनी, जिसका हेड ऑफिस नोएडा में है, इसके लिए राजी हो गई। उसने इसे प्रकाशित किया और नाम दिया ‘साइंस सेंस’। मैं जो भी पढ़ती, उसे अपने शब्दों में लिख कर देखती। यह युक्ति काम आई। मैंने गणित और साइंस के जटिल सूत्रों को भी सहज और सरल रूप में लिखकर अभ्यास किया। बात बन गई।

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