चाणक्य नीति के अनुसार, इन 4 तरह के लोगों का साथ देने वाले होते हैं बर्बाद

महान राजनीतिज्ञ माने जाने वाले आचार्य चाणक्य ने अपनी चाणक्य नीति में मनुष्य के जीवन में काम आने वाली नीतियों का वर्णन किया है.

चाणक्य नीति: महान राजनीतिज्ञ माने जाने वाले आचार्य चाणक्य ने अपनी चाणक्य नीति में मनुष्य के जीवन में काम आने वाली नीतियों का वर्णन किया है. एक श्लोक के माध्यम से वो बताते हैं कि व्यक्ति कैसे और किसी स्थिति में नष्ट हो जाता है. साथ ही उन्होंने ऐसे व्यक्ति के बारे में भी बताया है जो सांप से भी ज्यादा खतरनाक होते हैं. आइए जानते हैं इन नीतियों के बारे में…

दुराचारी च दुर्दृष्टिर्दुरावासी च दुर्जनः। 
यन्मैत्री क्रियते पुम्भिर्नरः शीघ्रं विनश्यति।। 

आचार्य चाणक्य दुष्कर्म के प्रति सचेत होते हुए कहते हैं कि दुराचारी व्यक्ति, दुष्टस्वभाव वाला मनुष्य, बिना किसी कारण दूसरों को नुकसान पहुंचाने वाला और दुष्ट व्यक्ति से मित्रता रखने वाला श्रेष्ठ पुरुष भी शीघ्र ही नष्ट हो जाता है, क्योंकि संगति का प्रभाव अवश्य पड़ता है. यानी विद्या से अलंकृत होने पर भी दुर्जन से दूर ही रहना चाहिए, क्योंकि मणि से भूषित होने पर भी सांप खतरनाक ही  होता है.

दुर्जनेषु च सर्पेषु वरं सर्पो न दुर्जनः। 
सर्पो दंशति कालेन दुर्जनस्तु पदे-पदे।।

आचार्य चाणक्य यहां दुष्टता की दृष्टि से तुलना करते हुए उस पक्ष को रख रहे हैं, जहां दुष्टता का दुष्प्रभाव कम से कम पड़े. उनका मानना है कि दुष्ट और सांप, इन दोनों में सांप अच्छा है न कि दुष्ट. सांप तो एक ही बार डंसता है लेकिन दुष्ट हर समय नुकसान पहुंचाने के लिए तैयार रहता है.

यही कारण है कि दुष्ट व्यक्ति से सबको बचकर चलना चाहिए. दुर्जन व्यक्ति के चेहरे पर प्रसन्नता होती है, उसकी वाणी चंदन के जैसे ठंडी होती है लेकिन उसके मन में दुर्भावनाएं होती हैं.

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