श्रीकृष्ण का नाम ही है अनंत माधुर्य, जरूर जानें इस खजाने को प्राप्त करने का तरीका

भगवान्  श्रीकृष्ण का नाम अनंत माधुर्य, ऐश्वर्य और आनंद का ख़जाना है. सभी शास्त्रोंनें नाम की महान  महिमा का गुणगान किया है. वैसे नाम की महानतम महिमा का संपूर्ण रूपसे विवेचन तो स्वयं ब्रह्माजी भी नहीं कर सकते, फिर साधारण मनुष्य की तो बात ही क्या. वस्तुतः हरिनाम अद्भुत, अमोघ, अनिर्वचनीय और  अनुपम है.

इस अनेकों आधि व्याधि से ग्रस्त कलिकाल मे जबकि अधिकतर मंत्र कीलित हो गए है, ऐसे में केवल हरिनाम जप (कीर्तन) ही संसार समुद्र से पार होने का एकमात्र और उत्तम साधन है. भगवान वेदव्यासजी बृहन्नारदीय पुराण में कहते हैं कि “कलियुग में केवल हरिनाम ही जीव का एकमात्र आधार है, हरिनाम के अतिरिक्त अन्य और कोई गति है ही नहीं.” 

वेदव्यासजी आगे कहते हैं कि “सतयुग मे भगवान विष्णु के ध्यान से, त्रेता युग में यज्ञसे और द्वापरयुगमें भगवान विष्णु की पूजा अर्चना से जो फल प्राप्त होता है, वह सब इस कलियुग में भगवान श्रीकृष्ण के नाम कीर्तन मात्र से ही प्राप्त हो जाता है.”  ब्रम्हाजी अपने पुत्र श्री नारद को इस नाम का उपदेश करते हुए कहते हैं कि वह नाम है…. 


“हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे. हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे.” (कलिसंवरणोपनिषद)  भगवान कृष्ण चैतन्य महाप्रभु कहते हैं कि ‘कलियुग में यह महामंत्र ही सर्वोत्तम जपनीय साधन है. इसके अलावा साध्य परमात्मा को प्राप्त करने का सरलतम साधन दूसरा और कोई नहीं.’  किसी भी स्थान, समय और स्थिति में इसका जप कीर्तन किया जा सकता है.  अतः कैसी भी अवस्था हो, शुद्ध या अशुद्ध, राह चलते हुए, उठते बैठते, खाते पीते, सभी स्थितियों मे यह महामंत्र ही सर्वोत्तम जपनीय साधन है. 

श्रीरामचरितमानस में गोस्वामी तुलसीदासजी भगवन्नाम जपयोग के आध्यात्मिक एवम लौकिक पक्ष का सुंदर समन्वय करते हुए कहते हैं कि ब्रह्माजी के बनाये हुए इस प्रपंचात्मक दृश्यजगत से भलीभांति छुटे हुए वैराग्यवान मुक्त योगी पुरुष इस नाम को ही जीभ से जपते हुए तत्वज्ञानरूप दिन में जागते हैं और नाम एवम रूप से रहित अनुपम,अनिर्वचनीय, अनामय ब्रह्मसुख का अनुभव करते हैं. और जो परमात्मा के गूढ़ रहस्य को जानना चाहते हैं , वे जीव्हा द्वारा भगवन्नाम का जप करके उसे जान लेते हैं.   

यथा….”नाम जीहँ जपि जागहिं जोगी, बिरति बिरंचि प्रपंच बियोगी.  ब्रह्म सुखहि अनुभवहि अनूपा,  अकथ अनामय नाम न रूपा. जाना चहहिं गूढ़ गति जेऊ , नाम जीहँ जपि जानहिं तेऊ.” गोस्वामी तुलसीदास जी आगे और भी कहते हैं कि कल्पवृक्ष स्वरूप भगवन्नाम का स्मरण  मात्र ही  संसार के सब जंजालों को नष्ट कर देने वाला है.  यथा  ” नाम कामतरू काल कराला,  सुमिरत समन सकल जंजाला.”  

संत तुकाराम महाराज कहते है कि नाम जप से बढ़कर कोई भी साधना नहीं है इस हेतु निष्ठा पूर्वक नाम जपते रहो.”  वस्तुतः नाम की महिमा अपार है और इसका संपूर्ण रूप से बखान तो स्वयं ब्रह्मा भी नहीं कर सकते तब  मनुष्यों की आखिर सामर्थ्य ही क्या है?   किंतु यह भी सत्य है कि शिवादि, ब्रह्मादिक, शुकादिक, सनकादिक और भक्तो,  सिद्धमुनिगणों संतों ने इसे गाया और प्रभु मे नित्य स्थिति को प्राप्त कर लिया. 

आज हमें  इस कलिकाल के अत्यंत  कठिनतम दौर मे यदि मनुष्य जीवन को सफँल बनाना है तो हमे नाम महामंत्र का सहारा लेना ही होगा.   श्रीकृष्ण चरणारविन्दों में हमसबों की प्रीति है और हम उन्हें ही पाना भी चाहते हैं. तो ध्येय है  भगवान श्रीकृष्ण और साधन है यह नाम महामंत्र.  जय जय श्री राधे.

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