सात दशक से विलुप्त हो रहे चीतों को, फिर से बसाने की तैयारी, मध्यप्रदेश के चार स्थानों का लिया जायजा

भोपाल। दुनिया भर में विलुप्त प्रजातियों को बचाने के लिए के लिए लगातार काम जारी है। देश में करीब सात दशक पहले विलुप्त हुए चीतों को फिर से बसाने के लिए सबसे बेहतर स्थान का पता लगाने के वास्ते देहरादून के भारतीय वन्यजीव संस्थान के विशेषज्ञों ने हाल ही में मध्यप्रदेश के चार स्थानों का दौरा किया। एक अधिकारी ने रविवार को यह जानकारी दी।

देश में अंतिम धब्बेदार चीता को वर्ष 1947 में देखा गया था और बाद में वर्ष 1952 में दुनिया के सबसे तेज दौड़ने वाले स्तनधारी इस जानवर को देश में विलुप्त घोषित कर दिया गया था। 
भारतीय वन्यजीव संस्थान ने कुछ वर्षों पहले चीते को फिर से बसाने की एक महत्वाकांक्षी योजना तैयार की थी। उच्चतम न्यायालय ने इस साल जनवरी में अफ्रीकी चीते को प्रायोगिक तौर पर भारत में सबसे अधिक उपयुक्त जगह पर लाने की इजाजत दी है।

अपर प्रधान मुख्य वन संरक्षक (वन्यप्राणी) जे.एस. चौहान ने रविवार को बताया कि चीते को फिर से बसाने के लिए देश में सबसे बेहतर पर्यावास का पता लगाने के वास्ते भारतीय वन्यजीव संस्थान के विशेषज्ञों के एक दल ने कुछ दिन पहले मध्यप्रदेश के चार स्थानों का दौरा किया। इनमें सागर का नौरादेही वन्यजीव अभयारण्य, श्योपुर जिले का कूनो-पालपुर अभयारण्य, नीचम एवं मंदसौर जिले की उत्तरी सीमा पर स्थित गांधी सागर अभयारण्य तथा शिवपुरी जिले का माधव राष्ट्रीय उद्यान शामिल हैं।

उन्होंने कहा कि भारतीय वन्यजीव संस्थान के ‘वन्यजीव पारिस्थितिकी एवं संरक्षण जीव विज्ञान विभाग’ के डीन डॉ. यादवेन्द्र झाला एवं दो अन्य वैज्ञानिकों ने यह देखने के लिए इन चार स्थानों का निरीक्षण किया कि ये स्थान चीतों के लिए उपयुक्त है या नहीं।

चौहान ने पन्ना बाघ अभयारण्य में बाघों को फिर से बसाने करने की ओर इशारा करते हुए कहा कि मध्यप्रदेश में पहले भी चीते रहते थे। राज्य में लंबे समय तक इनके संरक्षण का इतिहास रहा है। हमारे पास इनको बसाने के लिए बेहतर जगह है। चौहान ने कहा कि चीते को फिर से बसाने के लिए हमारे पक्ष में कई चीजें हैं। हम पहले की केंद्र सरकार को लिख चुके हैं कि इस योजना में हमारी बहुत अधिक रुचि है।

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