नगर निगम चुनाव के दौरान, एआइएमआइएम के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी के घर में, भाजपा ने एंडीचोटी का लगाया जोर

नई दिल्ली। तेलंगाना के ग्रेटर हैदराबाद नगर निगम (जीएचएमसी) चुनाव में भाजपा ने अपनी पूरी ताकत झोंक दी है। एक नगर निगम चुनाव को भाजपा ने लोकसभा चुनाव का रूप दे दिया है, जिसमें उसके बड़े नेता चुनाव प्रचार में जुटे हैं। भाजपा की कोशिश चुनाव में सबसे बड़ी पार्टी तेलंगाना राष्ट्रीय समिति (टीआरएस) को पछाड़ने से कहीं ज्यादा राष्ट्रीय फलक पर लगातार आगे बढ़ रहे ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसलमीन (एआइएमआइएम) के प्रमुख असद्दुद्दीन ओवैसी से बड़ी रेखा खींचने की है।

अगर ओवैसी की गृह राज्य में सीटें कम होती हैं तो राष्ट्रीय स्तर पर इसका असर पड़ना तय है। बिहार में अपनी सीटों में इजाफा करने वाले ओवैसी को बंगाल चुनाव में भाजपा कोई मौका नहीं देना चाहती है। साथ ही हैदराबाद पहली सीढ़ी है, जिसे पार कर भाजपा की कोशिश तेलंगाना की सत्ता सहित एक साथ कई निशाने साधने की है।

सैद्धांतिक रूप से भी मुफीद:

भाजपा के लिए जीएचएमसी का चुनाव सिर्फ एक चुनाव नहीं है, यह उसके लिए सैद्धांतिक रूप से भी महत्वपूर्ण है। भाजपा हैदराबाद का नाम बदलकर भाग्यनगर रखना चाहती है। ऐसी स्थिति में हैदराबाद का संदेश देश भर में गौर से सुना जाएगा। दूसरी ओर, ओवैसी को भाजपा की बी टीम बताने वालों को भी पार्टी नेताओं के आक्रामक बयानों ने साफ संदेश दे दिया है। हिंदुत्व से जुड़े संगठनों के लिए हैदराबाद महज एक शहर नहीं है बल्कि वे उसे मुस्लिमों के अधिकार वाली एक सभ्यता के रूप में देखते हैं, जो मराठों से ब्रिटिश शासन तक अस्तित्व बचाने में कामयाब रही।

वर्चस्व टूटा, राजनीति चलती रही:

आजादी मिलने और हैदराबाद रियासत के भारत में विलय के बाद हैदराबाद को लेकर यह सोच जरूर क्षीण हुई मगर चालीस साल पहले फिर से एआइएमआइएम ने प्रभुत्व जमाना शुरू किया। अब ओवैसी की पार्टी ने महाराष्ट्र के बाद बिहार में भी अच्छा किया है। ऐसे में ओवैसी को रोकने के लिए उनके घर से बेहतर जगह कोई नहीं हो सकती है। जहां पिछड़ने का मतलब उनके घटते प्रभाव के रूप में देखा जाएगा।

भाजपा के लिए इसलिए जरूरी है हैदराबाद:

ग्रेटर हैदराबाद नगर निगम में 24 विधानसभा सीटे हैं। तेलंगाना की कुल विधानसभा सीटों का यह पांचवां हिस्सा है। वहीं परंपरागत रूप से भाजपा सिकंदराबाद लोकसभा सीट पर काफी मजबूत है। पिछले तीस सालों में पांच बार भाजपा ने यहां जीत हासिल की है। ऐसे में भाजपा की कोशिश अपनी ताकत को और बढ़ाने की है। हैदराबाद में तेलुगु देशम और कांग्रेस की गिरावट ने एक रिक्त स्थान छोड़ा है, जिसे भरने के लिए भाजपा बेताब है। अब उच्च सदन में भाजपा को बिल पास कराने के लिए टीआरएस के सहारे की जरूरत नहीं है। ऐसे में अपना दायरा बढ़ाने के लिए भाजपा तेलंगाना पर दांव खेल रही है।

भाजपा की ओर से बड़े नेता मैदान में:

हैदराबाद चुनाव की योजना तैयार करने की जिम्मेदारी बिहार में पार्टी के चुनाव प्रभारी भूपेंद्र यादव को सौंपी गई है। साथ ही चुनाव में गृहमंत्री अमित शाह, भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सहित पार्टी के कद्दावर नेता चुनाव प्रचार में कोई कसर नहीं रखना चाहते हैं।

यहां से जुड़ी हैं एआइएमआइएम की जड़ें:

पार्टी की जड़ें हैदराबाद रियासत के समय से हैं। इसकी स्थापना नवाब महमूद नवाज खान किलेदार ने हैदराबाद के निजाम नवाब मीर उस्मान अली खान की सलाह पर की थी। 1927 में जब इसकी स्थापना हुई तो नाम मजलिस ए इत्तेहादुल मुसलमीन था। पार्टी ने देश के एकीकरण के बजाय मुसलमानों के प्रभुत्व की वकालत की। 1944 में कासिम रिजवी पार्टी के नेता चुने गए। रजाकारों का नेतृत्व कासिम रिजवी ने ही किया था। रजाकार स्वयंसेवकों के रूप में एक सैन्य बल था, जिसने भारत के साथ विलय के वक्त विरोध किया था। भारतीय सेना के पराक्रम के बाद रजाकारों ने हथियार डाल दिए और कासिम रिजवी को जेल हो गई। बाद में कासिम रिजवी ने अब्दुल वाहिद ओवैसी को जिम्मेदारी सौंपी। जिसने एआइएमआइएम को संगठित किया और फिर उनके बेटे सुल्तान सलाहुद्दीन ओवैसी ने 1975 में एआइएमआइएम की कमान संभाली और अब उन्हीं के बेटे असद्दुद्दीन ओवैसी पार्टी की कमान संभाल रहे हैं।

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