स्वर्गलोक से उतरकर काशी में दीवाली क्यों मनाते हैं देव, जानें शुभ दिन का पौराणिक महत्व

एक बार पृथ्वी पर त्रिपुरासुर राक्षस का आतंक फैल गया था. जिससे हर कोई त्राहि त्राहि कर रहा था. तब देव गणों ने भगवान शिव से एक राक्षस के संहार का निवेदन किया. जिसे स्वीकार करते हुए शिव शंकर ने त्रिपुरासुर राक्षस का वध कर दिया.

कार्तिक मास की अमावस्या पर प्रभु श्री राम लंकापति रावण का निधन कर और 14 वर्ष का वनवास काटकर अयोध्या वापस लौटे थे जिसकी खुशी आज इतने युगों बाद भी इस दिन को उसी खुशी के साथ मनाया जाता है जिसे दिवाली कहा जाता है. लेकिन कार्तिक मास की पूर्णिमा को भी एक दीवाली मनाई जाती है जिसे देव दिवाली के नाम से जाना जाता है. आइए जानते हैं क्यों खास है ये दिवाली और क्य़ा है इससे जुड़ा पौराणिक महत्व.

भगवान शिव ने किया था राक्षस का संहार-

एक बार पृथ्वी पर त्रिपुरासुर राक्षस का आतंक फैल गया था. जिससे हर कोई त्राहि त्राहि कर रहा था. तब देव गणों ने भगवान शिव से एक राक्षस के संहार का निवेदन किया. जिसे स्वीकार करते हुए शिव शंकर ने त्रिपुरासुर राक्षस का वध कर दिया. इससे देवता अत्यंत प्रसन्न हुए और शिव का आभार व्यक्त करने के लिए काशी आए थे. जिस दिन इस अत्याचारी राक्षस का वध हुआ और देवता काशी में उतरे उस दिन कार्तिक मास की पूर्णिमा थी. और देवताओं ने काशी में अनेकों दीए जलाकर दिवाली मनाई थी. यही कारण है कि हर साल कार्तिक मास की पूर्णिमा पर आज भी काशी में दिवाली मनाई जाती है और चूंकि ये दीवाली देवों ने मनाई थी इसीलिए इसे देव दिवाली कहा जाता है.

देव दिवाली का मुहूर्त-

इस बार कार्तिक मास की पूर्णिमा तिथि 29 नवंबर को दोपहर 12.47 बजे से शुरु होकर 30 नवंबर तक दोपहर 2.59 बजे तक रहेगी. चूंकि दिवाली रात का पर्व है इसीलिए 29 नवंबर की रात काशी में दीए जलाकर देव दिवाली मनाई जाएगी.

30 नवंबर को होगा पवित्र नदियों में स्नान-

वहीं कार्तिक पूर्णिमा पर पवित्र नदियों व तालाब में स्नान का विशेष महत्व होता है. चूंकि इस बार दिवाली दो दिन है इसीलिए देव दिवाली 29 नवंबर को होगी जबकि 30 नवंबर को सुबह लोग गंगा, यमुना जैसी पवित्र नदियों में आस्था की डुबकी लगाएंगे. ऐसे करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है. वही स्नान के बाद दान का भी विशेष महत्व बताया गया है. इस दिन ज़रुरतमंदों को दान अवश्य करें.

E-Paper