दिल्ली में कोरोना वायरस का कहर, अस्पतालों में अतिरिक्त बेड बढ़ाने के तलाश रहे हैं विकल्प

प्रदूषण को कारण बता दिया गया, बहुत हद तक त्योहारों की भीड़ भी संक्रमण बढ़ने की दोषी बन गई। लेकिन क्या किसी जिम्मेदार, व्यवस्था निर्धारित कर रहे सिस्टम को जरा भी यह अंदाजा नहीं था कि प्रदूषण जिस तरह की परेशानियां बढ़ाता है वह कोरोना संक्रमण बढ़ने के लिए और मुफीद होती हैं। क्या यह भी नहीं पता था कि त्योहार आ रहे हैं और लोग बाहर निकलेंगे नियमों का पालन नहीं करेंगे तो बीमारी बढ़ेगी ही। जो सख्ती बाद में दिखाई जा रही है, वह सक्रियता पहले बरत ली जाती तो शायद आज ऐसे हालात नहीं होते। यह तो हमें मानना ही पड़ेगा पूर्व आकलन करने में हम चूके हैं। इस चुनौती के लिए हमारे अस्पताल तैयार नहीं थे।

इसी का खामियाजा देखने को मिल रहा है, बहरहाल अभी भी वक्त है। कोविड केयर सेंटर्स को अस्थायी अस्पताल में तब्दील कर व अस्पतालों में आइसीयू बेड बढ़ाकर हालात पर नियंत्रण पाया जा सकता है। सीओपीडी के मरीजों की हालत बिगड़ने पर घर में उन्हें संभाल पाना मुश्किल होता है। अस्पतालों में भर्ती कर आक्सीजन देने की जरूरत पड़ती है। इसलिए अस्पतालों में सीओपीडी, अस्थमा, दिल की बीमारियों के मरीजों का दबाव भी बढ़ा है। इस वजह से अस्पतालों में बेड कम पड़ने लगे हैं।

पूर्व आकलन करते, तो नहीं चूकते : दिल्ली के अस्पतालों में पहले से करीब 58 हजार बेड उपलब्ध हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के तय मानक के अनुसार 10 हजार की आबादी पर पांच बेड उपलब्ध होने चाहिए। दिल्ली में पहले से 10 हजार की आबादी पर तीन बेड ही उपलब्ध हैं। यह आज की स्थिति नहीं है, सामान्य दिनों में भी यही फीसद रहता था और आज महामारी के दौर में भी स्वास्थ्य सुविधा के ढांचे को मजबूत नहीं बना पाए हैं। जो कमजोर बुनियाद थी वह अब भी नहीं भर पाई है। अस्पतालों में डाक्टर व नर्सिंग कर्मचारियों की भी कमी बनी हुई है। अभी दिल्ली में प्रतिदिन कोरोना के छह हजार से अधिक मामले आ रहे हैं। करीब 40 हजार सक्रिय मरीज हैं। ऐसे में अस्पतालों में बेड की कमी होना लाजमी है। होम आइसोलेशन की व्यवस्था से थोड़ी राहत है।

लाकडाउन में अस्पतालों में सामान्य बेड, आइसीयू बेड व कर्मचारियों की संख्या बढ़ाने का पूरा मौका था। अस्पतालों में सुविधाएं बढ़ाने के लिए ही लाकडाउन किया गया था। अस्पतालों में कोरोना के इलाज के लिए बेड की व्यवस्था भी की गई लेकिन तैयारी उस तरह की नहीं हुई जैसी होनी चाहिए थी। जून के बाद कोरोना के मामले कम होने पर तैयारियों में सुस्ती आ गई। उसी वक्त यह सोचना चाहिए था कि दिल्ली एनसीआर में नवंबर में प्रदूषण बढ़ने पर हालात बिगड़ सकते हैं। इसलिए उस वक्त ही मौजूदा चुनौतियों के लिए तैयारी कर लेनी चाहिए थी।

नियमित सर्जरी रोकनी होंगी : जुलाई के बाद अस्पतालों में धीरे-धीरे रूटीन ओपीडी व रूटीन सर्जरी भी शुरू हो गई। इसलिए अस्पतालों ने रूटीन में मरीजों को भर्ती लेना शुरू कर दिया। अभी कुछ दिनों के लिए अस्पतालों में नियमित हो रही सर्जरी बिल्कुल बंद करनी होंगी, ताकि कोरोना मरीजों के इलाज के लिए अतिरिक्त बेड उपलब्ध कराए जा सकें। दिल्ली में कई कोविड केयर सेंटर बनाए गए हैं। जिसमें हल्के संक्रमण वाले लोगों के इलाज की व्यवस्था है। होम आइसोलेशन की सुविधा के कारण अब उन कोविड केयर सेंटर्स में अधिक मरीज नहीं है। इस वजह से कोविड केयर सेंटर्स में हजारों बेड खाली पड़े हैं। उन कोविड केयर सेंटर्स को अस्थायी अस्पताल के रूप में विकसित कर कम गंभीर मरीजों के इलाज की सुविधा उपलब्ध कराई जा सकती है। इसके अलावा अस्पतालों में अतिरिक्त बेड बढ़ाए जा सकते हैं। अभी तक पुराने अस्पतालों में अतिरिक्त बेड नहीं बढ़ाए गए हैं। बल्कि उनमें पहले से मौजूद बेड को ही कोरोना के लिए आरक्षित कर इस्तेमाल किया जा रहा है। कुछ अस्पतालों में बेड बढ़ाए जा सकते हैं।

मौजूदा समय में कोरोना के मरीजों के लिए सामान्य बेड की तुलना में आइसीयू व आक्सीजन बेड की ज्यादा कमी है। सरकारी एजेंसियों को सभी अस्पतालों के प्रबंधन के साथ बैठकर यह समीक्षा करनी चाहिए कि आइसीयू बेड कैसे बढ़ाए जाएं? अस्पतालों में ऐसे वार्ड की तलाश करनी चाहिए जिसे आइसीयू में तब्दील किया जा सके। नगर निगम के कई अस्पताल हैं जहां कोरोना के इलाज के लिए व्यवस्था की जा सकती है। हिंदू राव अस्पताल में कोरोना के इलाज की व्यवस्था भी थी अभी वहां कोरोना का इलाज नहीं हो रहा है, इससे 350 बेड घट गए। सरकारी एजेंसियों के बीच आपसी तालमेल बढ़ाना होगा। आगे के दो से तीन सप्ताह ही चुनौतीपूर्ण हैं। 

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