चीन का धोखा लद्दाख में भारतीय सैनिकों के खिलाफ, इस्तेमाल किया घातक माइक्रोवेब वेपन
बीजिंग। चीन की राजधानी पेइचिंग की रेनमिन यूनिवर्सिटी में प्रफेसर जिन कानरोंग का कहना है कि चीन ने एक घातक हथियार से माइक्रोवेब किरणों का इस्तेमाल किया। इसकी चपेट में आते ही सैनिकों को भीषण दर्द और टिके रहने में बहुत परेशानी होने लगती है। विश्लेषकों का मानना है कि बंदूक जैसे परंपरागत हथियारों की तरह भी इस हथियार का इस्तेमाल किया जाता है। भारत और चीन के बीच वर्ष 1996 में हुई संधि के मुताबिक इस तरह के घातक हथियारों का इस्तेमाल प्रतिबंधित है। अगर चीनी एक्सपर्ट की मानें तो गलवान में निर्मम हिंसा के बाद भी भारतीय सैनिकों का मनोबल नहीं तोड़ पाने वाली चीनी सेना ने भारतीय जवानों के खिलाफ इस क्रूर हथियार का इस्तेमाल किया।
ब्रिटिश अखबार द टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक प्रफेसर जिन ने एक लेक्चर के दौरान माइक्रोवेब वेपन के इस्तेमाल का दावा किया। उन्होंने दावा किया कि इस हथियार की मदद से चीन ने बिना कोई गोली चलाए दो ऐसी चोटियों पर कब्जा कर लिया जिसपर भारतीय सैनिकों ने कब्जा कर लिया था। जिन ने कहा, ‘हमने इसे बहुत प्रचारित इसलिए नहीं किया क्योंकि हमने बहुत खूबसूरत तरीके से इस समस्या का समाधान कर लिया।’ उन्होंने दावा किया कि भारत को बुरी तरह से हार का सामना करना पड़ा। जिन ने कहा कि चीनी सैनिकों ने पहाड़ी के नीचे से माइक्रोवेब वेपन का इस्तेमाल चोटी के ऊपर बैठे भारतीय सैनिकों पर किया।
जिन ने दावा किया कि माइक्रोवेब गन के इस्तेमाल के 15 मिनट बाद ही भारतीय सैनिक उल्टी करने लगे और उन्हें चोटी को छोड़कर पीछे हटना पड़ गया। द टाइम्स ने कहा कि दुनिया में इस तरह के हथियार का अपने शत्रु सेना पर इस्तेमाल का यह पहला उदाहरण है। चीन के अलावा अमेरिका इलेक्ट्रोमैग्नेटिक रेडियशन वेपन का इस्तेमाल कर चुका है। चीन का यह हथियार न केवल इंसानों को तड़पने के लिए मजबूर कर सकता है, बल्कि इलेक्ट्रानिक और मिसाइल सिस्टम को भी तबाह कर सकता है। इस तरह के हथियारों को डायरेक्ट एनर्जी वेपन भी कहा जाता है। कुछ देश इलेक्ट्रोमैग्नेटिक रेडियशन की बजाय साउंड वेब का इस्तेमाल करते हैं। इससे पहले कई अन्य देशों में इस तरह के हथियार के इस्तेमाल की अटकलें लग चुकी हैं।
वर्ष 2016 में क्यूबा में अमेरिकी दूतावास के अधिकारियों ने शिकायत की थी कि उन्हें उल्टी, नाक से खून और बेचैनी हो रही है। इस मामले के बाद इसे हवाना सिंड्रोम कहा जाने लगा था। कहा जाता है कि अमेरिकी अधिकारियों के खिलाफ छिपकर सोनिक वेपन का इस्तेमाल किया गया था। अमेरिकी अधिकारियों ने इसी तरह की घटनाओं की शिकायत चीन और रूस में भी की है। उन्होंने कहा कि दूतावास की इमारत के कुछ कमरों में उन्हें इस तरह की दिक्कत का सामना करना पड़ा। बता दें कि भारत और चीन के बीच लद्दाख में जारी गतिरोध को खत्म करने के लिए बातचीत का दौर जारी है। सूत्रों के मुताबिक दोनों देशों के बीच सेना को हटाने पर काफी हद तक सहमति हो गई है, हालांकि अभी इसका ऐलान नहीं हुआ है।
द ड्राइव की रिपोर्ट के मुताबिक अभी तक यह स्पष्ट नहीं हुआ है कि इस पहले बेड़े का मुख्यालय कहां पर होगा। अमेरिकी नौसेना सिंगापुर के चांगी नेवल बेस पर वर्ष 1990 के दशक से मौजूद है। इस बेस पर अमेरिका के सातवें बेडे़ के जंगी जहाज मौजूद हैं। ऐसी संभावना जताई जा रही है कि अमेरिका के पहले बेड़े का गठन बहुत तेजी से सिंगापुर में किया जा सकता है। इसके अलावा यह भी कहा जा रहा है कि शुरू में यह पहला बेड़ा सिंगापुर, ऑस्ट्रेलिया और भारत के बेहद करीब स्थित डियागोगार्सिया के बीच गश्त लगाता रहे। इससे अमेरिकी नौसेना की ताकत हिंद महासागर में काफी बढ़ जाएगी।
हिंद महासागर में पैर पसार रही है चीनी नौसेना-
चीन की नौसेना हिंद महासागर में बहुत तेजी से अपने पैर पसार रही है। इस साल मई महीने में ली गई सैटलाइट तस्वीरों से पता चलता है कि अफ्रीका के जिबूती स्थित चीनी नेवल बेस को आधुनिक बनाया गया है। पहले लॉजिस्टिक सपोर्ट के बनाए इस ठिकाने को अब नेवल बेस में तब्दील कर दिया गया है। इस अड्डे पर चीन का विमानवाहक पोत भी खड़ा हो सकता है। चीन मालदीव में भी एक कृत्रिम द्वीप को विकसित करने में लगा हुआ है। कई लोगों का दावा है कि चीन हिंद महासागर में भारत के प्रभाव को कम करने के लिए इस द्वीप को विकसित कर रहा है।
अरुणाचल के नजदीक ब्रह्मपुत्र पर नया बांध बनाने जा रहा चीन, गहरा सकता है भारत से विवाद
चीन ब्रह्मपुत्र नदी पर जिस नए डैम को बनाने की योजना बना रहा है वह उसके थ्री जॉर्ज डैम के बराबर की होगी। हालांकि, अभी तक इस परियोजना को लेकर चीन ने कोई बजट जारी नहीं किया है। विशेषज्ञों के अनुसार, चीन के इस नई परियोजना से भारत के साथ उसका विवाद और भी बढ़ सकता है। चीन अरुणाचल प्रदेश को शुरू से मान्यता देने से इनकार करता रहा है। ऐसे में संभावना है कि चीन इस बांध का उपयोग अपने रणनीतिक फायदे के लिए भी करे।
ब्रह्मपुत्र नदी चीन के कब्जे वाले तिब्बत से निकलकर भारत में अरुणाचल प्रदेश के रास्ते प्रवेश करती है। इसके बाद यह नदी असम से होते हुए बांग्लादेश में चली जाती है। चीन की सरकार पहले ही इस नदी पर लगभग 11 छोटे-बड़े बांध बना चुकी है। इस कारण इस नदी का प्रवाह तंत्र भी काफी असमान हो गया है। आम दिनों में इस नदी में पानी की मात्रा सामान्य रहती है। जबकि, बरसात के मौसम में चीन के बांध भरने के बाद प्रवाह में आई तेजी के कारण असम और बांग्लादेश को हर साल भीषण बाढ़ से जूझना पड़ता है।
चीन की सरकार शुरू से ही तिब्बत को अपने बिजली उत्पादन का एक बड़ा क्षेत्र मानती है। चीन में मौजूद कुल नदियों का एक चौथाई हिस्सा इसी क्षेत्र में स्थित है। ऐसे में चीन की नजर यहां के नदियों के पानी का भरपूर उपयोग करने पर केंद्रित है। वह बड़े बड़े बांध बनाकर नदियों के अपवाह तंत्र को प्रभावित कर रहा है। इसके अलावा चीन इस नदी के पानी को अपने सूखे और वीरान पड़े इलाके को सींचने में भी उपयोग कर रहा है।
पिछले एक दशक से चीन इस नदी के ऊपर कम से कम 11 पनबिजली परियोजनाएं संचालित कर रहा है। इनमें से सबसे बड़ी परियोजना का नाम ज़ंगमू है। यह परियोजना 2015 से अपनी पूरी क्षमता के साथ काम कर रही है इसके अलावा तिब्बत के बायू, जीइशी, लंग्टा, डाकपा, नांग, डेमो, नामचा और मेटोक शहरों में हाइड्रोपावर स्टेशन या तो बनाए जा रहे हैं या फिर प्रस्तावित हैं।
चीन के पाकिस्तान स्थित ग्वादर पोर्ट पर नेवल बेस बनाने की भी खबरें हैं। चीन बांग्लादेश के कॉक्स बाजार में भी एक नौसैनिक ठिकाना विकसित करने में मदद कर रहा है। जिबूती स्थित चीन का नेवल बेस हिंद महासागर में ड्रैगन की महत्वाकांक्षा को दर्शाता है। यह नौसैनिक अड्डा करीब 25000 वर्ग फुट के इलाके में पसरा है। यह अड्डा अपने आप में एक चीनी किले की तरह से है। इसमें करीब 10 हजार चीनी सैनिक रह सकते हैं। विश्लेषकों का मानना है कि इस अड्डे के जरिए चीन इलाके में खुफिया निगरानी करता है। चारों तरफ निगरानी के लिए वॉच टॉवर बनाए गए हैं और सुरक्षा के भारी इंतजाम किए गए हैं।