क्या परमाणु-हमला करने वाली पनडुब्बियों के मामले में भारत आत्मनिर्भर नहीं है? जानें सारी बात

पूर्वी लद्दाख में चीन से गहराए तनाव के बीच भारतीय सेना हर चुनौती से लड़ने की तैयारी में है. रक्षा विशेषज्ञ यहां तक मान रहे हैं कि चीन की दादागिरी ज्यादा बढ़ने पर देश उसे हिंद महासागर के रास्ते घेर सकता है. अंडमान में इसकी भी तैयारियां हो रही हैं. हालांकि थल सेना के मामले में बेहद शक्तिशाली होने के बाद भी हमारे पास अपनी खुद की पनडुब्बी नहीं, बल्कि काफी ऊंची कीमत पर इसे रूस से लीज पर लेते रहे हैं.

देश परमाणु ताकत से संपन्न होने और लंबी-चौड़ी सेना रखने के बाद भी नेवी के मामले में कुछ कमजोर पड़ जाता है. खासकर बात अगर रक्षा उपकरणों की हो. असल में देश अपने कुल रक्षा बजट का सबसे बड़ा हिस्सा सैनिकों की सैलरी और पेंशन पर लगा देता है इसलिए उसके पास दूसरे मदों में लगाने के लिए ज्यादा पैसे नहीं बचते. यही वजह है कि रक्षा उपकरणों की खरीदी पर सबसे कम पैसे खर्च हो रहे हैं.

नौसेना रूस से 10 सालों के लिए पट्टी पर पनडुब्बी लेती रही-

एक अनुमान के मुताबिक भारत अपने कुल बजट का 25 प्रतिशत सैन्य उपकरणों के निर्माण और खरीदी पर लगा रहा है. वहीं ब्रिटेन, चीन और अमेरिका इस मामले में आगे हैं. वे सैनिकों की भर्ती के साथ खुद को हथियारों से संपन्न करने और सेना की तीनों शाखाओं पर खर्च करने पर जोर दे रहे हैं. दूसरी ओर भारत में थल सेना पर ज्यादा फोकस है.

यही वजह है कि नेवी के मामले में हम अभी तक परमाणु हथियार चलाने वाली पनडुब्बियां तैयार नहीं कर सके हैं. इसकी जगह नौसेना रूस से 10 सालों के लिए पट्टी पर पनडुब्बी ले रही है. इस पर करोड़ों रुपये खर्च हो रहे हैं.

पहली रूसी परमाणु संचालित पनडुब्बी आईएनएस चक्र को तीन साल की लीज पर 1988 में लेने की बात चली. ये चार्ली क्लास पनडुब्बी थी. हालांकि पहली न्यूक्लियर सबमरीन की ये डील जल्दी ही ट्रांसफर से जुड़ी जटिलताओं के कारण रद्द हो गई थी. दूसरी आईएनएस चक्र को लीज पर दस सालों की अवधि के लिए 2012 में हासिल किया गया था. इसके बाद देश से इंजीनियर और नाविकों को रूस भेजा गया ताकि वे सबमरीन को संचालित करने की ट्रेनिंग ले सकें.

साल 2019 में भारतीय रक्षा विभाग ने रूस से अकुला क्लास 1 पनडुब्बी 10 सालों के लिए उधार ली. यूरेशियन टाइम्स के मुताबिक ये सौदा लगभग 3 बिलियन का था. रूस इस पनडुब्बी को, जिसे चक्र 3 के नाम से जाना जा रहा है, भारतीय नौसेना का साल 2025 तक दे सकेगा.

बता दें कि इसी साल की शुरुआत में डिफेंस एक्वेजिशन प्रोसिजर (DAP) के तहत भारत सरकार ने सेना की तीनों ही शाखाएं, थल, जल और एयरफोर्स को रक्षा उपकरण लीज पर लेने की अनुमति दी, बजाए एक बार में खरीदने के. माना जा रहा है कि इससे सेना उस उपकरण के संचालन में न केवल माहिर हो जाएगी, बल्कि उस उपकरण की उपयोगिता भी साबित हो सकेगी. विशेषज्ञों का मानना है कि ये सौदा बड़े उपकरणों की एक बार में खरीदी से ज्यादा सस्ता है.

वैसे नौसेना अपने रक्षा उपकरण खुद बनाने की ओर कदम बढ़ा चुकी है. यूरेशियन टाइम्स की रिपोर्ट में इस बारे में सिलसिलेवार तरीके से बताया गया है. इसके अनुसार नौसेना अपने लिए परमाणु पनडुब्बियों का लगभग 60 प्रतिशत हिस्सा खुद बना रही है.

अरिहंत भार की स्वदेशी पनडुब्बी है, जिसे बनाने में रूस का सहयोग मिला-

अरिहंत को ही लें तो भारत की ये स्वदेशी पनडुब्बी है, जिसे बनाने में रूस ने लगभग 40 प्रतिशत योगदान ही दिया. आईएनएस अरिहंत बेहद एडवांस पनडुब्‍बी है और यह 700 किमी तक की रेंज में हमला कर सकती है. ये न केवल पानी से पानी में वार कर सकती है, बल्कि पानी के अंदर से किसी भी एयरक्राफ्ट को निशाना बनाने में सक्षम है.

अरिहंत के निर्माण के साथ ही भारत भी दुनिया के उन देशों में शामिल हो गया, जो जमीन, हवा और पानी से भी परमाणु हमला कर सकते हैं. इससे पहले अमेरिका, यूके, फ्रांस, रूस और चीन के पास ही ये ताकत रही. दूसरी ओर लीज पर पनडुब्बी लेने का तरीका अकेले भारत की पहल नहीं, बल्कि कई देश ऐसा करते आए हैं.

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