बैकबैंचर अनुराग ने कैसे पार किया UPSC का सफलता पुर्वक सफर, बन गए IAS ऑफिसर

कटिहार। बिहार के कुमार अनुराग उन स्टूडेंट्स के लिए बड़ी प्रेरणा हैं, जिन्हें लगता है कि आईएएस बनने के लिए बहुत इंटेलीजेंट होना जरूरी है या वही आईएएस बन पाते हैं, जिनका एकेडमिक रिकॉर्ड बहुत खास होता है. अनुराग के जीवन को पास से देखने पर पता चलता है कि एग्जाम में अक्सर बैक लाने वाला और क्लास की सबसे पीछे की सीट पर बैठने वाला स्टूडेंट भी अगर दृढ़ इच्छाशक्ति रखे तो आईएएस बन सकता है, वो भी बहुत कम प्रयासों में. अनुराग ने साल 2018 की यूपीएससी सीएसई परीक्षा में 48वीं रैंक के साथ टॉप किया है. इसके पहले के प्रयास में भी अनुराग का चयन हुआ था पर रैंक आई थी 677. वे अपनी रैंक को लेकर हमेशा से क्लियर थे और उन्हें आईएएस का पद ही पाना था. इसलिए उन्होंने दोबारा परीक्षा दी और दूसरी बार में मनमाफिक पद के लिए चयनित हुए. आज जानते हैं कुमार अनुराग से उनके यूपीएससी के इस सफर के बारे में.

एवरेज लेकिन स्पेशल थे अनुराग–

अनुराग की शुरुआती पढ़ाई, बिहार के ही एक साधारण हिंदी मीडियम स्कूल से हुई फिर उन्हें दसवीं के लिए दूसरे शहर भेज दिया गया जहां एकदम से इंग्लिश मीडियम स्कूल में उनका एडमिशन हुआ. उन्हें समस्या तो बहुत हुई पर अनुराग के अंदर एक चिंगारी थी जो उन्हें हमेशा अच्छा करने के लिए प्रेरित करती थी. यहां भी अनुराग ने दम लगाई और 90 प्रतिशत से ऊपर अंकों से दसवीं पास की. यही हाल बारहवीं का रहा जहां प्री बोर्ड में मैथ्स में फेल होने वाले अनुराग ने फिर 90 प्लस स्कोर किया.

अगर अनुराग के कॉलेज के दिनों की बात करें तो वे हमेशा बैकबैंचर थे. टॉपर्स के नोट्स फोटोकॉपी कराके काम चलाते थे और कितनी बार बैक आने के बाद उनकी डिग्री पूरी हुई. कहने का मतलब यह है कि अनुराग थे तो एवरेज स्टूडेंट पर जब चाह लेते थे तो अपने क्षेत्र में एक्सेल करके ही दम लेते थे.

आईएएस का धुंधला सा ख्याल आया इस स्टेज पर–

अनुराग के मन में कुछ हद तक साफ था कि उन्हें यूपीएससी परीक्षा ही देनी है इसलिए उन्होंने इंजीनियरिंग के क्षेत्र में प्रयास नहीं किया. क्लास 12 के बाद उन्होंने दिल्ली के श्रीराम कॉलेज ऑफ कॉमर्स से ग्रेजुएशन किया और दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से मास्टर्स. ये वो साल थे जब अनुराग को अक्सर बैक पेपर देना पड़ता था ताकि उनका साल न खराब हो. क्लास बंक करके, नोट्स मांगकर काम चलाने वाले अनुराग का कॉलेज का परफॉर्मेंस स्कूल की तुलना में काफी खराब रहा. ऐसे स्टूडेंट का आईएएस का सपना देखना भी अजीब लगता है पर अनुराग को इन बातों से कभी फर्क नहीं पड़ता था न ही यह ख्याल उन्हें कभी डराता था कि उनका कांपटीशन टॉपर्स से है. वे मानते थे कि जिस दिन वे चाह लेंगे, उस दिन मनमाफिक सफलता पा भी लेंगे.

जरूरी है यह पता होना कि आप फेल क्यों हुए–

दिल्ली नॉलेज ट्रैक को दिए इंटरव्यू में अनुराग कहते हैं कि व्यक्ति को पता होना चाहिए कि आखिर वह फेल क्यों हो रहा है. अपने केस में वे जानते थे कि उन्होंने कड़ी मेहनत नहीं की, उनमें जुनून नहीं था साथ ही वे एक अनुशासित जीवन न जीते हुए पढ़ाई में रुचि नहीं ले रहे थे. इन सबके बावजूद अनुराग को खुद पर गहरा विश्वास था. उन्हें पता था कि अगर वे मेहनत करेंगे तो आईएएस जरूर बनेंगे. इसी विचार और बैकग्राउंड के साथ अनुराग ने यूपीएससी की तैयारी आरंभ की.

सबसे जरूरी काम अनुराग ने किया कि उन्होंने अपना एटीट्यूड बदला, नोट्स बनाए, खूब मेहनत की, खूब टेस्ट दिए और बार-बार फेल भी हुए लेकिन हिम्मत नहीं हारी. वे फिर उठ खड़े हुए, फिर कोशिश की और तब तक इंप्रूव करते रहे जब तक मंजिल नहीं मिल गई. साल 2017 में अपने पहले प्रयास में ही सेलेक्ट हो जाने वाले अनुराग को आईएएस पद ही चाहिए था इसलिए उन्होंने फिर तैयारी की और 48वीं रैंक के साथ सफल हुए.

अनुराग का अनुभव–

अनुराग साक्षात्कार में आगे बताते हैं कि यह परीक्षा बाकी कांपटीटिव एग्जाम्स से अलग है क्योंकि इसे देने वाले हर कैंडिडेट के पास यहां आने का खास कारण होता है. एक पैशन होता है जो इस क्षेत्र में उसे लाता है. आपका कांपटीशन ऐसे ही लोगों से हैं इसलिए जरूरी है कि आपके अंदर भी एक पैशन हो जो पूरी जर्नी के दौरान आपको चार्ज रखे. दूसरी जरूरी बात अनुराग मानते हैं सिम्पल प्लानिंग को. वे कहते हैं कि लोगों को लगता होगा कि इतनी कठिन परीक्षा है तो स्ट्रेटजी से लेकर प्लानिंग तक सब स्पेशल होनी चाहिए पर ऐसा नहीं है. उनका मानना है कि जितनी सिंपल आपकी तैयारी होगी उतनी ही सफल होने की उम्मीद ज्यादा होगी. तीसरी जरूरी बात अनुराग के अनुसार है एक सही स्ट्रेटजी का होना. वे कहते हैं कि हमने एक कहानी सुनी थी जिसमें एक व्यक्ति को पेड़ काटने के लिए 6 घंटे दिए गए तो उसमें से चार घंटे उसने अपनी आरी की धार तेज करने में लगाए. ऐसा ही इस परीक्षा के साथ भी है, तैयारी की योजना बनाना और सही दिशा में बनाना बहुत जरूरी है. दिशा तय होने के बाद उसमें आगे बढ़कर सफलता हासिल करनी कठिन नहीं होता.

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