IIT खड़गपुर की ‘कोवीरैप’ से सिर्फ एक घंटे में चलेगा संक्रामक बीमारियों का पता

 आईआईटी खड़गपुर के शोधकर्ताओं ने कोरोना की जांच के लिए ‘कोवीरैप’ तकनीक विकसित की है। इसकी मदद से एक घंटे में सटीक नतीजे प्राप्त किए जा सकते हैं। यही नहीं, इस टेस्ट की कीमत भी उपयुक्त होगी। कोरोना के परीक्षण के लिए कोवीरैप को भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) की मंजूरी मिल गई है। शोधकर्ताओं का कहना है कि इस तकनीक का फायदा आम लोगों को सबसे अधिक होगा।

केंद्रीय शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल निशंक का कहना है कि नई मशीन में जांच प्रक्रिया एक घंटे के अंदर पूरी हो जाएगी। उन्होंने कहा कि यह उपकरण ग्रामीण भारत में काफी संख्या में लोगों को लाभान्वित करेगा, क्योंकि इस उपकरण को कहीं भी आसानी से ले जाया जा सकता है और बहुत कम बिजली आपूर्ति के साथ इसे संचालित किया जा सकता है। कम प्रशिक्षित ग्रामीण युवा भी इसे संचालित कर सकते हैं।

आईआईटी खड़गपुर के निदेशक वीके तिवारी ने बताया कि यह मशीन काफी हद तक पीसीआर-आधारित जांच की जगह लेने वाली है। संस्थान एक सीमा तक जांच किट का उत्पादन करेगा। लेकिन इसके पेटेंट लाइसेंस से मेडिकल प्रौद्योगिकी कंपनियों को इसके वाणिज्यीकरण में मदद मिलेगी।

ऐसे करता है काम और खासियत

प्रोफेसर सुमन चक्रवर्ती ने बताया कि कोविरैप में तापमान नियंत्रित करने की यूनिट, जीनोमिक एनालिसिस के लिए स्पेशल डिटेक्शन यूनिट और एक अनुकूलित स्मार्टफोन एप लगे होते हैं। सार्स कोविड-2 की मौजूदगी का पता लगाने के लिए कोविरैप में तीन मास्टर मिक्स काम करते हैं। सैंपल्स इन मिक्सेस के साथ रिएक्ट करते हैं। जब पेपर स्ट्रिप्स को रिएक्शन प्रोडक्स में डाला जाता है तो वायरस की उपस्थिति होने पर रंगीन लाइन दिखने लगती है। प्रोफेसर सुमन चक्रवर्ती ने बताया कि इन्फ्लूएंजा, मलेरिया, डेंगू, जापानी एन्सेफलाइटिस, तपेदिक और कई अन्य संक्रामणों के साथ ही वेक्टर-जनित रोगों का परीक्षण भी एक ही मशीन के जरिए किया जा सकता है।

ये हैं फायदे

– टेस्ट का परिणाम जल्द आ सकेगा।

-संक्रमण के बहुत शुरुआती चरणों का पता लगाया जा सकता है, जिससे रोगी को अलग रहने के लिए कहा जा सकता है।

-यह पोर्टेबल और कम लागत वाली मशीन है।

-अन्य पद्धतियों की तुलना में अत्यधिक कम संख्या में विषाणुओं की मौजूदगी रहने पर भी उसका पता लगा सकता है। 

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