चतुर्थ केदार रुद्रनाथ धाम के कपाट शीतकाल के लिए बंद, यहां जानें कहां स्थित हैं पंच केदार और क्या है मान्यता

चतुर्थ केदार रुद्रनाथ धाम के कपाट शीतकाल के लिए बंद कर दिए गए हैं। पुजारी महादेव भट्ट ने  परंपरा के अनुसार धाम के कपाट बंद किए। अब रुद्रनाथ भगवान की उत्सव डोली शाम तक गोपेश्वर पहुंचेगी। आपको बता दें कि रुद्रनाथ धाम पंच केदार में शामिल है। यहां भगवान शिव के मुख के दर्शन होते हैं। पंच केदार शिव मंदिरों का सामूहिक नाम है।

चमोली जिले में समुद्रतल से 11808 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है चतुर्थ केदार रुद्रनाथ धाम। 18 मई को ब्रह्ममुहूर्त में मंदिर के कपाट खोले गए थे। कोरोना संक्रमण के चलते इस बार पंचकेदार पहुंचने वाले श्रद्धालुओं की संख्या भी ना के बराबर रही, लेकिन रुद्रनाथ धाम में लगातार श्रद्धालु की आवाजाही बनी रही। शुक्रवार शाम तक धाम में 9176 श्रद्धालु बाबा के दर्शनों को पहुंच चुके थे। इन श्रद्धालुओं से वन विभाग को 50 हजार रुपये का राजस्व प्राप्त हुआ। रुद्रनाथ धाम के पुजारी महादेव भट्ट ने बताया कि कपाटबंदी के बाद बाबा की उत्सव डोली सीधे गोपेश्वर स्थित गोपीनाथ मंदिर के लिए प्रस्थान कर जाएगी। यहीं अगले छह माह बाबा रुद्रनाथ अपने भक्तों को दर्शन देंगे।

रुद्रनाथ दर्शनों को पहुंचे श्रद्धालु

माह, श्रद्धालुओं की संख्या

मई, 226

जून, 958

जुलाई, 4553

अगस्त, 2250

सितंबर, 879

16 अक्टूबर तक, 310

आपको बता दें कि रुद्रनाथ पंच केदारों में से एक है। पंचकेदार यानि पांच केदार पांच शिव मंदिरों का सामूहिक नाम है। ये मंदिर उत्तराखंड में स्थित हैं। इन मंदिरों से जुड़ी कुछ मान्यताएं भी हैं। कहा जाता है कि हैं इनका निर्माण पांडवों ने किया था।

ये हैं पंच केदार 

केदारनाथ धाम

रुद्रप्रयाग जिले में समुद्रतल से 3553 मीटर (11654 फीट) की ऊंचाई पर मंदाकिनी और सरस्वती नदियों के संगम पर स्थित केदारनाथ धाम बारह ज्योतिर्लिंगों में सम्मिलित होने के साथ ही हिमालय के चार धाम और पंच केदार में से भी एक है। कहा जाता है कि भूरे रंग के विशालकाय पत्थरों से निर्मित कत्यूरी शैली के इस मंदिर का निर्माण पांडव वंश के जन्मेजय ने कराया था। मंदिर के गर्भगृह में स्वयंभू शिवलिंग विराजमान है।

द्वितीय केदार मध्यमहेश्वर

समुद्रतल से 11470 फीट की ऊंचाई पर स्थित है द्वितीय केदार भगवान मध्यमेश्वर धाम। यहां भगवान शिव के मध्य भाग के दर्शन होते है। केदारनाथ की तरह यहां भी भगवान शिव के स्वयंभू लिंग के रूप में विराजमान हैं। इस मंदिर में आद्य शंकराचार्य द्वारा स्थापित परंपरा के तहत दक्षिण भारतीय लिंगायत समुदाय के पुजारी को ही पूजा का अधिकार है।

तृतीय केदार तुंगनाथ

पंचकेदारों में द्वितीय केदार के नाम से प्रसिद्ध है तुंगनाथ, जो रुद्रप्रयाग जिले के चोपता में स्थित है। बता दें चोपता समुद्रतल से बारह हजार फुट की ऊंचाई पर स्थित है। यहां से तीन किमी की पैदल यात्रा के बाद तेरह हजार फुट की ऊंचाई पर स्थित है तुंगनाथ मंदिर है। चोपता से तुंगनाथ तक तीन किलोमीटर का पैदल मार्ग बुग्यालों से और भी खूबसूरत नजर आता है। यहां पर प्राचीन शिव मंदिर है। इस प्राचीन शिव मंदिर से डेढ़ किमी की ऊंचाई चढ़ने के बाद चौदह हज़ार फीट पर चंद्रशिला नामक चोटी है। यहां का सौंदर्य सभी को मंत्रमुग्ध कर देता है।

चतुर्थ केदार रुद्रनाथ  

चमोली जिले में समुद्रतल से 11808 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है चतुर्थ केदार रुद्रनाथ धाम। यहां भगवान शिव के मुख के दर्शन होते हैं।

जानिए क्या है मान्यता 

मान्यता है कि महाभारत के युद्ध के बाद पांडव अपनों को मारने के बाद व्याकुल थे। इस व्याकुलता को दूर करने के लिए वे महर्षि व्यास के पास गए। व्यास ने उन्हें बताया कि अपने भाईयों और गुरुओं को मारने के बाद वे ब्रह्म हत्या के कोप में आ चुके हैं। उन्हें सिर्फ महादेव शिव ही बचा सकते हैं। व्यास ऋषि की सलाह पर वे सभी शिव से मिलने हिमालय पहुंचे, लेकिन शिव महाभारत के युद्ध के चलते नाराज थे। इसलिए उन सभी को भ्रमित करके भैंसों के झुंड के बीच भैंसा (इसीलिए शिव को महेश के नाम से भी जाना जाता है) का रुप धारण कर वहां से निकल गए। पर पांडव नहीं माने और भीम ने भैंसे का पीछा किया। इस तरह शिव के अपने शरीर के हिस्से पांच जगहों पर छोड़े। ये स्थान केदारधाम यानि पंच केदार कहलाए।

E-Paper