CM योगी की सख्‍ती के बाद माने निजी लैब व अस्पताल, अब 1600 में करेंगे जाँच

सरकार के निर्देश के बावजूद 1600 रुपये में कोरोना जांच नहीं कर पाने की जिद पर अड़े निजी लैब व अस्पतालों को दैनिक जागरण के अभियान के आगे झुकना पड़ा है। शनिवार के अंक में दैनिक जागरण ने 1600 रुपये में निजी लैब व अस्पतालों में कोविड जांच नहीं होने की पड़ताल कर खबर को प्रमुखता से छापा था। जिसमें ज्यादातर लैब ने जांच ना करने के पीछे मशीनों के खराब होने व अन्य तकनीकी खामियों का बहाना किया था, लेकिन चरक अस्पताल व मेहरोत्रा लैब ने स्पष्ट कहा था कि इतने कम रुपये में उनकी लागत भी नहीं निकल रही। इसलिए वह जांच नहीं कर पाएंगे। इस बाबत उनकी तरफ से सरकार को पत्र भी लिखा गया था, लेकिन उसके अगले ही दिन जिला अधिकारी ने स्पष्ट कहा की जांच 1600 रुपये में ही करनी होगी। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की ओर से भी निर्देश आया कि सरकार अपने फैसले में कोई बदलाव नहीं करेगी। इसके बाद सोमवार को निजी लैब व अस्पतालों के सामने निर्धारित दर पर जांच करने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचा। लिहाजा वह सभी 1600 रुपये में ही कोरोना जांच करने को राजी हो गए।

चरक अस्पताल के निदेशक डॉ अश्वनी सिंह ने कहा कि हम लोगों ने सरकार को पत्र लिखा था, जिसे लेकर हमारी वार्ता हुई। उसके बाद हमने यह फैसला किया कि सरकार के निर्देशों का पूरा सम्मान करेंगे। आरटीपीसीआर जांच 1600 रुपये में ही करेंगे। लेकिन ट्रूनेट से 2000 रुपये में कोरोना जांच करने पर सहमति बनी है। उन्होंने कहा कि जांच करने के लिए किट से लेकर अन्य सभी उपकरण हमारी तरफ से ही लगाया जाता है। इसमें सरकार की तरफ से कोई सब्सिडी नहीं मिलती है।

वहीं आरएमएल मेहरोत्रा लैब की डायरेक्टर डॉ वंदना सिंह ने कहा कि हमने सरकार को पत्र लिखा था कि 2200 रुपये हमारी लागत ही आ रही है। ऐसे में सस्ती किट इत्यादि की व्यवस्था की जाए तभी सोलह सौ रुपए में जांच संभव हो पाएगी, लेकिन इस बीच देखा कि मरीजों को काफी मुश्किलें झेलनी पड़ रही हैं। फिर मानवीयता के आधार पर हमने 1600 रुपये में ही जांच शुरू कर दी है। हालांकि यह शुल्क सिर्फ आरटीपीसीआर जांच के लिए है। राजधानी के 13 निजी केंद्रों पर कोरोना की जांच हो रही थी। सरकार ने पहले 2500 रुपये जांच की कीमत तय की थी। पिछले सप्ताह जांच की कीमत घटाकर 1600 रुपये कर दी गई। इसके बाद से निजी लैब व अस्पतालों ने घटी दर पर जांच ठप कर दी थी। इससे मरीजों की मुश्किलें बढ़ गई थीं। रोजाना लगभग 200 से 300 लोग निजी केंद्रों पर औसतन कोरोना जांच करा रहे थे।

 

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