आज जरूर पढ़नी और सुननी चाहिए श्री गोगा नवमी की कथा

हर साल भाद्रपद माह में कृष्ण पक्ष की नवमी को श्री गोगा नवमी मनाई जाती है. ऐसे में आज हम आपको बताने जा रहे हैं इसकी कथा जिसे आपको जरूर पढ़ना चाहिए. आइए बताते हैं.

कथा- गोगाजी की मां बाछल देवी को संतान नहीं हुई थी वो निःसंतान थीं. संतान प्राप्त के लिए बाछल देवी ने हर तरह के यत्न कर लिए थे. लेकिन उन्हें किसी भी तरह से संतान सुख नहीं मिला. गुरु गोरखनाथ ‘गोगामेडी’ के टीले पर तपस्या में लीन थे. तभी बाछल देवी उनकी शरण में पहुंच गईं. उन्होंने उन्हें अपनी सभी परेशानी बताईं. तभी गुरु गोरखनाथ ने उन्हें पुत्र प्राप्ति का वरदान दिया. गोरखनाथ ने बाछल देवी को प्रसाद के तौर पर एक गुगल नामक दिया. यह प्रसाद खाकर बाछल देवी गर्भवती हो गई. इसके बाद गोगा देव (जाहरवीर) का जन्म हुआ. गुगल फल के नाम से ही इनका नाम गोगाजी पड़ गया. जी दरअसल गोगा देव गुरु गोरखनाथ के परम शिष्य माना जाते थे और इनका जन्म चुरू जिले के ददरेवा गांव में हुआ था.

कहते हैं मुस्लिम समाज के लोग गोगा बाबा को जाहर पीर के नाम से बुलाते हैं. जी दरअसल इस स्थान को हिंदू और मुस्लिम की एकता का प्रतीक माना जाता है. लोकमान्यता व लोककथाओं के अनुसार गोगा जी को सांपों के देवता के रूप में भी पूजते हैं. वहीं इन्हें गुग्गा वीर, राजा मण्डलीक व जाहर पीर के नाम से पुकारते हैं. जी दरअसल यहाँ गोगा भक्त कीर्तन करते हुए आते हैं. इसके अलावा उनके जन्म स्थान पर बने मंदिर पर सभी माथा भी टेकते हैं और इसी के साथ ही मन्नत भी मांगते हैं.

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