जानें क्या होते हैं टेबल टॉप एयरपोर्ट और क्यों मुश्किल होती है यहां पर विमानों की लैंडिंग
केरल के कोझिकोड एयरपोर्ट पर शुक्रवार शाम को एयर इंडिया एक्सप्रेस की फ्लाइट संख्या 1344 के दुर्घटनाग्रस्त हो जाने से हर कोई दुखी है। एयर इंडिया फ्लीट में शामिल ये विमान बोइंग का 737-800 था। कोझिकोड एयरपोर्ट को 13 अप्रैल 1988 को खोला गया था। इसके 18 वर्ष बाद 2006 में इस एयरपोर्ट को अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट में बदल दिया गया। ये एयरपोर्ट केरल का तीसरा और भारत का 11वां सबसे व्यस्त एयरपोर्ट है। केरल के जिस एयरपोर्ट पर ये हादसा हुआ है वो एक टेबल टॉप एयरपोर्ट है। टेबल टॉप एयरपोर्ट विमान को उतारने के लिए काफी खतरनाक माने जाते हैं। यहां पर बड़े विमानों का परिचालन प्रतिबंधित होता है। यहां पर विमानों की सफल लैंडिंग अधिकतर पायलट के अनुभव और उसकी सूझबूझ पर ही टिकी होती है। इसलिए यहां पर लैंडिंग के दौरान किसी भी तरह की गलती की कोई गुंजाइश नहीं होती है। आगे बढ़ने से पहले अब हम आपको टेबल टॉप एयरपोर्ट के बारे में बता देते हैं।
क्या होते हैं टेबल टॉप एयरपोर्ट
टेबल टॉप एयरपोर्ट दरअसल, एक पहाड़ी पर बने होते हैं। इन एयरपोर्ट के चारों तरफ या रनवे के दोनों ही तरफ खाई होती हैं। पहाड़ी पर बने होने की वजह से ही इनका रनवे दूसरे एयरपोर्ट की तुलना में काफी छोटा भी होता है। ऐसा इसलिए भी होता है क्योंकि पहाडि़यां सीमित दायरे में होती हैं। इन्हें समतल कर इस पर रनवे बनाया जा सकता है । ऐसे में यहां पर ज्यादा बड़ा रनवे बनाना भी काफी मुश्किल होता है। पड़ाडी पर होने की ही वजह से इन एयरपोर्ट्स पर रनवे एंड सेफ्टी एरिया भी कम ही होता है। ये एरिया बताता है कि रनवे के बाद विमान को सही सलामत रखने के लिए कितनी दूरी है। ऐसे एयरपोर्ट्स पर रनवे की लंबाई के अलावा उनकी चौड़ाई भी कम ही हुआ करती हैं।
कहांं-कहां पर है टेबल टॉप एयरपोर्ट
पूरी दुनिया में इस तरह के एयरपोर्ट केवल चार देशों में ही हैं। इनमें भारत में केरल का कालीकट इंटरनेशनल एयरपोर्ट, मंगलोर इंटरनेशनल एयरपोर्ट, मिजोरम का लेंगपुई एयरपोर्ट और सिक्किम का पाकयोंग एयरपोर्ट शामिल है। इसके अलावा गोवा, पोर्ट ब्लेयर, लेह के एयरपोर्ट को भी लैंडिंग के लिहाज से खतरनाक माना जाता है। नेपाल का ताल्चा एयरपोर्ट, तेंजिंग एयरपोर्ट, त्रिभुवन इंटरनेशनल एयरपोर्ट, तुमलिंग्तान एयरपोर्ट भी टेबलटॉप एयरपोर्ट हैं। नीदरलैड में कैरेबियना द्वीप पर बना जुआनचो एयरपोर्ट भी एक टेबलटॉप एयरपोर्ट है। इसके अलावा अमेरिका में केलीफॉर्निया का केटलीना एयरपोर्ट, एरिजोना का सेडोना एयरपोट, पश्चिमी वर्जीनिया का यीगर एयरपोर्ट भी इसी तरह के टेबल टॉप एयरपोर्ट हैं।
लैंडिंग में क्या होती है मुश्किल
टेबल टॉप एयरपोर्ट पर विमानों को उतारने के लिए मुश्किलें कहीं ज्यादा होती हैं। यहां का रनवे छोटा होना ही एक बड़ी समस्या नहीं होती है बल्कि इस तरह के एयरपोर्ट पर अक्सर मौसम में होने वाला बदलाव कई बार परेशानी का सबब बनता है। इसके अलावा तेज हवा भी पायलट के लिए बड़ी चुनौती बनती है। इतना ही नहीं मानसून के मौसम में तो ये एयरपोर्ट जानलेवा अधिक हो जाते हैं। रनवे गीला होने की वजह से यहां पर विमान के फिसलने का डर ज्यादा होता है। यहां पर पायलटों को साफतौर पर निर्देश दिए जाते हैं कि यदि वे तय दूरी में टच डाउन करने में नाकामयाब होते हैं तो विमान को दोबारा हवा में ले जाएं और फिर कोशिश करें। ऐसा न करने पर विमान के दुर्घटनाग्रस्त होने के आसार बढ़ जाते हैं। दक्षिण भारत में इस तरह के एयरपोर्ट हर वर्ष जून से सितंबर तक काफी खतरनाक हो जाते हैं।
अपग्रेड किए गए एयरपोर्ट
ऐसा इसलिए क्योंकि उस वक्त दक्षिण पश्चिम मानसून सक्रिय हो जाता है और उसकी वजह से इन इलाकों में काफी तेज बारिश होती है। इसके अलावा मई में यहां पर मौसम साफ होने की वजह से विमानों को उतारने में कोई परेशानी नहीं होती है। लेकिन मानसून में हालात भयंकर हो जाते हैं। मानसून के दौरान बादल अक्सर रनवे के काफी करीब होते हैं जिसकी वजह से पायलट को देखने में काफी दिक्कत होती है। मंगलोर समेत जयपुर और पोर्ट ब्लेयर के एयरपोर्ट पर बोइंग 737-200 विमानों को उतारने के लिए यहां के रनवे को 2450 मीटर का किया गया है। इसके बाद यहां पर एयरबस 320 को भी उतारा जा सकता है। यहां के रेस्क्यू और फायर सेफ्टी सर्विस को भी अपग्रेड कर केटेगरी 7 का किया गया है। यहां के रनवे को रात में सही लैंडिंग के लिहाज से तैयार किया गया है।