लॉकडाउन में UP में फंसे हैं पिता, मुखाग्नि देकर मां ने अपने कलेजे के टुकड़े को दी अंतिम विदाई

लॉकडाउन में उत्तरप्रदेश में फंसे हैं पति। बीमार बेटे को लेकर अस्पताल का चक्कर काटती रही मां। अंतत: 13 वर्षीय बेटे की मौत हो गई। इसके बाद शव के करीब बैठे आंसू बहा रही थी। समस्या यह थी कि बेटे का शव लेकर कहां जाए? कैसे होगा अंतिम संस्कार? बेबस मां के बहते आंसू और पास पड़े बेटे के शव पर ’अनोखी सोच’ के एक कार्यकर्ता की नजर पड़ी। आंसू बहा रही महिला के मुंह से बोल नहीं फूट रहे थे। बेटे के शव की ओर इशारा कर उससे कभी लिपट जाती तो कभी छोड़कर चला गया मेरा लाल कहते बेसुध हो जाती। इस ह्दयविदारक घटना को जिसने भी देखा, आंसू नहीं रोक पाया।

अनोखी सोच स्वयंसेवी संस्था के ग्रुप में इसकी सूचना एक कार्यकर्ता ने दी और कुछ ही देर में दो दर्जन से अधिक सदस्य मौके पर पहुंच गए। बच्चे के शव के पास ममता लुटाती मां के आगे ढाल बनकर खड़े अनोखी सोच के कार्यकर्ताओं ने अंतिम संस्कार का जिम्मा खुद पर लिया।

शव को शंकरघाट लाकर विधिवत अंतिम संस्कार कराया गया। चिता के चारों ओर शव लेकर पांच फेरे भी कार्यकर्ताओं ने पुरोहित के मंत्रोच्चार के बीच लगाए। इसके बाद अपने कलेजे के टुकड़े के निर्जीव शरीर के आगे हाथ जोड़ नम आंखों से मुखाग्नि देकर मां ने अपने कलेजे के टुकड़े को अंतिम विदाई दी।

मृतक विमलेश कुमार (13) पिता लक्ष्मण सोनभद्र उत्तरप्रदेश के जामपानी, विंढमगंज का रहने वाला था। बचपन में गिरने से उसे चोट आई थी, जिससे एक हाथ और पैर काम करना बंद कर दिया। इकलौते बेटे की स्थिति देख मजदूरी करने वाले माता-पिता परेशान रहते थे। बच्चे की लाचारी देख उसकी देखभाल में कोई कसर नहीं छोड़ते थे।

इसकी जानकारी अंबिकापुर के बाबूपारा मोहल्ले में रहने वाले रिश्तेदार बसंतलाल चेरवा को मिली और उसने रिश्ते में समधी लक्ष्मण को बच्चे को इलाज के लिए अंबिकापुर लेकर आने के लिए कहा। लगभग चार माह पूर्व लक्ष्मण अपने पुत्र विमलेश को लेकर अंबिकापुर आया और उसका इलाज करा रहा था। इधर विमलेश की मां के बिना मन नही लग रहा था, उसने मां को लेकर आने के लिए अपने पिता से कहा।

बच्चे का मन रखने के लिए वह अपनी बेटी और पत्नी देवंती को लेकर अंबिकापुर आ गया। पत्नी के यहां आने के बाद घर की देखभाल और काम-धंधे के लिए वह गृहग्राम उत्तरप्रदेश चला गया। यहां बच्चों की परवरिश के लिए देवंती रिश्तेदार के यहां किराए के मकान में रहकर मजदूरी करने लगी। लॉक डाउन का प्रभाव कुछ ऐसा पड़ा कि बीमार बच्चे, बेटी के पालन-पोषण में दिक्कतें होने लगी।

बीते 23 मई को बच्चे को बुखार आया, इसका इलाज वह कराई। जिससे बुखार तो उतर गया, लेकिन उसकी स्थिति में सुधार नहीं आया। ऐसे में वह मेडिकल कॉलेज अस्पताल में बच्चे को भर्ती कराकर इलाज करा रही थी। शुक्रवार की रात 11 बजे बच्चे की मौत हो गई। बच्चे के पिता लक्ष्मण लॉकडाउन होने के कारण उत्तरप्रदेश स्थित गृहग्राम से बच्चे के अंतिम संस्कार में नहीं पहुंच पाए।

ऐसे हालात से घिरी मां का सहारा अनोखी सोंच के कार्यकर्ता बने और उन्होंने पुरोहित पवन तिवारी, नाई उदय ठाकुर की मदद से अंतिम संस्कार कराया। इस मौके पर अनोखी सोच संस्था के प्रकाश साहू, अभय साहू, पंकज चौधरी, चंद्रप्रताप सिंह, संदेश पासवान, ओमप्रकाश गुप्ता, भोला, नीरज साहू, प्रकाश खैरवार, गोपी साहू, बिट्टू मिश्रा, सावंत, सत्यम साहू, देवकुमार, निशांत, सुनील साहू, बजरंग साहू, अनिल दास, सतीश साहू सहित अन्य उपस्थित थे।

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