Illegal Sand Mining : यदि यही स्थिति कायम रही तो नहीं बचेंगे नर्मदा में पाई जाने वाली मछलियां और मेंढक

मध्य प्रदेश की जीवनदायिनी नर्मदा नदी में रेत माफिया के बढ़ते दखल और प्रदूषण ने जलीव जीव-जंतुओं के साथ ही वनस्पतियों के लिए खतरा अब इतना बढ़ गया है कि उनके लुप्तप्राय होने की स्थिति बन चुकी है। यदि यही स्थिति कायम रही तो नर्मदा में पाई जाने वाली मछलियां और मेंढक भी नहीं बचेंगे। नर्मदा किनारे से लगातार हो रहे अवैध रेत उत्खनन, प्रदूषण, बसाहट व जंगलों की कटाई का सिलसिला नहीं थमा तो कई जलीय जीवों का अस्तित्व ही खत्म हो जाएगा। नर्मदा के रिपेरियन जोन पर कई वर्षों से काम कर रहे मप्र जैव विविधता बोर्ड के होशंगाबाद जिला समन्वयक व सेवानिवृत्त वन अधिकारी आरआर सोनी की मानें तो आमतौर पर नर्मदा किनारे दिखने वाले ऊदबिलाव, सेई, जलमानुस, पातल दिखना ही बंद हो गए हैं। कभीकभार मगरमच्छ दिखाई देने की सूचना मिलती है लेकिन वह भी अब धीरे-धीरे लुप्तप्राय जीवों में शामिल होता जा रहा है। छह जनवरी 2020 को होशंगाबाद में पर्यावरणविदों, वन्य जीव शास्त्रियों और जिला प्रशासन के आला अधिकारियों की बैठक में बोर्ड के शोध के परिणाम को रखा गया।

अब इसकी मूल वजह रेत के अवैध उत्खनन पर रोक लगाने के प्रयास की बात कही जा रही है। प्रयास कैसे होंगे, यह तय नहीं है। वनस्पति शास्त्री व शासकीय पीजी कॉलेज पिपरिया के प्रोफेसर डॉ. रवि उपाध्याय के मुताबिक वर्ष 2016-17 में तत्कालीन प्रशासनिक अधिकारियों ने नर्मदा किनारे रिपेरियन जोन क्षेत्र का निर्धारण करने के लिए जानकारी एकत्र कराई थी। इसी दौरान जब नर्मदा किनारे कई क्षेत्रों का भ्रमण किया तब सामने आया कि नदी के किनारे मानवीय हस्तक्षेप बेहद बढ़ गया है। लगातार हो रहे रेत के उत्खनन से नदी का कटाव क्षेत्र भी बढ़ गया है जिसके चलते नर्मदा का आंतरिक संतुलन गड़बड़ाया है।

इन पर मंडरा रहा खतरा : सोनी के मुताबिक विशेषज्ञों ने नर्मदा घाटी में 2312 विभिन्ना प्रजातियों की उपस्थिति को चिह्नित किया है। इसमें 624 कशेरूकीय (रीढ़ वाले), 1757 अकशेरूकीय प्राणी (बिना रीढ़) वाले हैं। ये सभी कुल 40 प्रकार के प्राणी समूहों का प्रतिनिधित्व करते हैं। इसमें 155 प्रकार की मछलियां, 115 प्रकार के मेंढक, 62 प्रकार के उभयचर, 345 तरह के पक्षी और 88 प्रकार के स्तनधारी जीव हैं। इनमें से 200 से ज्यादा प्रजातियां विलुप्ति की कगार पर पहुंच चुकी हैं।

रिपेरियन जोन आर-वन तक माफिया का कब्जा : विशेषज्ञों के मुताबिक होशंगाबाद व आसपास के इलाकों में आर-वन तक रेत माफिया पहुंच चुका है। नदी के किनारे से भी रेत निकाली जा रही है। जबकि नर्मदा के आर-टू में रेत माफिया पूरी तरह से कब्जा जमा चुका है। सोनी के मुताबिक आरटू का क्षेत्र इन जीवों का आवासीय क्षेत्र माना जाता है। बेतहाशा अवैध उत्खनन के कारण जीव-जंतुओं का आवासीय क्षेत्र समाप्त हो चुका है। साथ ही यह इलाका इन जीवों के प्रजनन के लिए अनुकूल होता था लेकिन अब जो हालात हैं उनमें इन जीवों के लिए जगह ही नहीं बची है। नर्मदा किनारे ये जीव इतनी अधिक संख्या में होते थे कि हमेशा दिख जाते थे, लेकिन पिछले कुछ सालों में तो ये दिखना ही बंद हो गए हैं। यह बहुत पुरानी बात नहीं है। वर्ष 2010 यानी दस साल पहले तक नर्मदा किनारे के हाल ऐसे नहीं थे जैसे अब दिख रहे है।

नर्मदा परिवार से जुड़ीं ग्राम पंचायतें

रिपेरियन जोन बनाए जाने के दौरान इलाके में पाया गया कि कई वनस्पतियां तो औषधीय महत्व की हैं। नर्मदापुरम संभाग के तत्कालीन कमिश्नर उमाकांत उमराव ने नर्मदा परिवार अभियान की शुरुआत की। 15 मई 2017 को तो एक साथ 22 हजार लोगों को इस अभियान में जुड़ने के लिए प्रेरित किया गया। इस तरह दो हजार नर्मदा परिवार बनाए गए और वर्तमान में 58 हजार लोगों का नेटवर्क बन चुका है। सर्वे के दौरान 418 प्रकार की वनस्पतियां एवं 139 प्रकार के जीव-जंतुओं की सूची तैयार कर करीब दो करोड़ बीज भी एकत्र किए गए थे।

पीबीआर में रखा जाता है रिकॉर्ड

आरआर सोनी के मुताबिक मप्र जैव विविधता बोर्ड द्वारा जिला स्तर पर पीबीआर (पीपुल्स बायोडायवर्सिटी रिकॉर्ड) तैयार किया जाता है। इस रिकॉर्ड को तैयार करने के लिए कई जगहों पर जाना पड़ता है। वैज्ञानिक जो परिस्थितियां पहले देख चुके हैं और वर्तमान में जो हालात हैं उनका उल्लेख पीबीआर में किया जाता है। इससे अध्ययन में आसानी होती है। इसी तरह वनस्पति शास्त्री डॉ. रवि उपाध्याय व उनकी टीम ने नर्मदा किनारे अपना शोध कार्य किया, वनस्पतियों से जुड़े अहम तथ्य जुटाए और प्रशासन के लिए रिपोर्ट तैयार की।

पानी को संतुलित रखने वाले, प्रदूषण खत्म करने वाले जीव भी हो रहे खत्म

पानी का संतुलन बनाए रखने वाले, उसे साफ करने वाले बेनथोस जीवों पर भी संकट बना हुआ है। नर्मदा में प्रदूषण को लेकर शोध करने वाले जबलपुर के युवा विज्ञानी अर्जुन शुक्ला का दावा है कि रेत उत्खनन और प्रदूषण की वजह से ये भी विलुप्त होते जा रहे हैं। जलीय संरचना में गहराई यानी तल पर पाए जाने वाले बेनथोस जीव एक स्तर पर पानी के प्रदूषण को खत्म करने का प्रयास करते हैं। बेनथोस जीवों को वैज्ञानिकों व शोधकर्ताओं ने तीन श्रेणियों में बांटा है इसमें एनालिडा,अर्थोपोडा तथा मोलस्का शामिल हैं। तीनों में कुल मिलाकर 45 प्रजातियां हैं जो पानी की अलग-अलग सतह पर रहकर शुद्धिकरण का काम करती हैं। अर्जुन ने वर्ष 2015- 2018 के बीच नर्मदा के विभिन्न् तटों पर प्रदूषण की स्थिति पर रिपोर्ट तैयार की है। उन्होंने बताया कि बड़े पैमाने पर रेत उत्खनन से नर्मदा के तलीय तथा सतही स्तर पर जीवों का काफी असंतुलन बन गया है।

शुद्धिकरण अभियान चलाने की योजना तैयार की है। स्थानीय लोगों की भागीदारी के लिए प्रयास किए जा रहे हैं। नदी में मिलने वाले नालों को बंद करने पर काम किया जा रहा है। औद्योगिक क्षेत्र से दूषित जल नर्मदा में मिल रहा होगा तो तत्काल कार्रवाई होगी। अवैध रेत खनन रोकने के भी प्रयास किए जाएंगे। – रजनीश श्रीवास्तव, कमिश्नर, नर्मदापुरम संभाग

शहर का गंदा पानी जो नालों के माध्यम से नर्मदा में मिल रहा है, उससे प्रदूषण हो रहा है और पानी में ऑक्सीजन स्तर कम हो रहा है। इसी कारण नर्मदा में जलीय जीवजंतु नष्ट होते जा रहे हैं। नर्मदा के उद्गम स्थल जबलपुर के अमरकंटक से लेकर होशंगाबाद तक प्रदूषण रोकने के लिए प्रयास किए जा रहे हैं। – रविंद्र मिश्रा, कमिश्नर, जबलपुर संभाग

इन जीव- जंतुओं की संख्या घट रही

ऊदबिलाव : नर्मदा किनारे बड़ी संख्या में ऊदबिलाव मिलते थे। कभी भी दिखाई दे जाने वाला यह जंतु अब लुप्तप्राय हो चुका है। वन्यजीव शास्त्रियों का कहना है कि ऊदबिलाव ल्यूतिनाई नामक परिवार की एक शाखा में मांसाहारी स्तनधारी है।

मगरमच्छ : नर्मदा किनारे के इलाकों में मगरमच्छ भी अकसर दिख जाते थे, लेकिन अब वे भी बहुत कम दिखाई दे रहे हैं।

महाशीर : नर्मदा नदी में प्रदूषण के चलते महाशीर मछलियां नजर नहीं आती हैं। राज्य मछली का दर्जा पा चुकी महाशीर मछलियां साफ पानी में रहती हैं। होशंगाबाद डीएफओ एके पांडे ने बताया कि नर्मदा में जिस तरह से प्रदूषण बढ़ा है उससे महाशीर मछलियां तटों पर दिखना ही बंद हो गई हैं।

यह होता है रिपेरियन जोन

नर्मदा नदी की स्थितियों में सुधार के लिए पारिस्थिकी के हिसाब से क्षेत्र का बंटवारा किया गया है। हर क्षेत्र में सुधार के लिए अलग-अलग काम किए जाने की जरूरत होती है। वैज्ञानिकों से चर्चा के बाद नदी को रिपेरियन जोन में बांटने की योजना वर्ष 2016 में तैयार की गई। चार रिपेरियन जोन ये हैं।

आर-वन : नर्मदा का वह तटीय क्षेत्र जो पानी से कुछ ही दूरी पर हो।

आर-टू : नर्मदा किनारे वह क्षेत्र जहां पानी के बाद रेत या मिट्टी हो।

आर-थ्री : नर्मदा के आर वन व आर टू के बाद का क्षेत्र जहां ढलान हो।

आर-फोर : नर्मदा नदी से करीब सौ मीटर दूर का क्षेत्र।

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