खूबसूरती के पर्दे के पीछे छुपा अंडमान का काला इतिहास

आज आप को ले चलते हैं एक भुतहे जजीरे की सैर पर। ये भुतहा द्वीप अंडमान निकोबार द्वीप समूह का हिस्सा है। हिंद महासागर में स्थित अंडमान निकोबार द्वीप समूह में कुल 572 द्वीप हैं। इनमें से केवल 38 में ही लोग रहते हैं। समंदर से नजदीकी की बात करें, तो अंडमान निकोबार के द्वीप भारत के बजाय दक्षिण पूर्व एशिया से ज्यादा करीब हैं।

अंडमान के द्वीप अपने खूबसूरत समुद्र तटों, क़ुदरती दिलकशी, अनछुए जंगलों, दुर्लभ समुद्री जीवों और मूंगे की चट्टानों के लिए मशहूर हैं। इस खूबसूरती के पर्दे के पीछे छुपा है अंडमान का काला इतिहास। अंडमान का एक द्वीप रॉस आइलैंड, जिसे अब नेताजी सुभाष चंद्र बोस आइलैंड के नाम से जाना जाता है, अपने भीतर साम्राज्यवादी इतिहास के काले-घने राज छुपाए हुए है।

यहां पर उन्नीसवीं सदी के ब्रिटिश राज के खंडहर, इस द्वीप और हिंदुस्तान के एक काले अध्याय के गवाह के तौर पर मौजूद हैं। रॉस आइलैंड में शानदार बंगलों, एक विशाल चर्च, बॉलरूम और एक कब्रिस्तान के खंडहर हैं, जिनकी हालत दिन-ब-दिन खराब हो रही है। तेजी से बढ़ रहे जंगल, इन खंडहरों को अपने आगोश में ले रहे हैं।

1857 में भारत की आजादी के पहले संग्राम के बाद ब्रिटिश साम्राज्य ने बागियों को अंडमान के सुदूर द्वीपों पर लाकर कैद रखने की योजना बनाई। 1858 में 200 बागियों को लेकर एक जहाज अंडमान पहुंचा। उस वक्त सारे के सारे द्वीप घने जंगलों से आबाद थे। इंसान के लिए वहां रहना मुश्किल था। महज 0.3 वर्ग किलोमीटर के इलाके वाला रॉस आइलैंड इन कैदियों को रखने के लिए चुना गया पहला जजीरा था। इसकी वजह ये थी कि यहां पर पीने का पानी मौजूद था। लेकिन इस द्वीप के जंगलों को साफ करके इंसानों के रहने लायक बनाने की जिम्मेदारी उन्हीं कैदियों के कंधों पर आई। इस दौरान ब्रिटिश अधिकारी जहाज पर ही रह रहे थे।

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