माता पार्वती का स्वरूप हैं मां अन्नपूर्णा, जब भगवान शिव ने ली थी भिक्षा

मार्गशीर्ष मास की पूर्णिमा तिथि को अन्नपूर्णा जयंती मनाई जाती है। इस वर्ष अन्नपूर्णा जयंती 12 दिसंबर दिन गुरुवार को है। मार्गशीर्ष मास की पूर्णिमा तिथि को माता पार्वती ने मां अन्नपूर्णा का अवतार लिया था। इस दिन भगवान शिव ने पृथ्वी वासियों के कल्याण के लिए भिक्षुक का रूप धारण किया था। अन्नपूर्णा जयंती को मां अन्नपूर्णा की विधि विधान से पूजा अर्चना की जाती है, जिससे सभी मनोकामनाओं की पूर्ति होती है। व्रत रखने से भक्तों के घर अन्न, खाने-पीने की वस्तुओं और धन्य-धान से भर जाता है।

व्रत एवं पूजा मुहूर्त

मार्गशीर्ष मास की पूर्णिमा तिथि का प्रारंभ 11 दिसंबर को दिन में 10 बजकर 59 मिनट से हो रहा है, जो 12 दिसंबर को सुबह 10 बजकर 42 मिनट तक रहेगा। 12 दिसंबर दिन बुधवार को अन्नपूर्णा जयंती मनाई जाएगी।

एक बार किसी कारण से पृथ्वी बंजर हो गई। फसलें, फलों आदि की पैदावार नहीं हुई। पृथ्वी पर जीवों के सामने प्राणों का संकट आ गया। तब भगवान शिव ने पृथ्वीवासियों के कल्याण के लिए भिक्षुक का स्वरूप धारण किया और माता पार्वती ने मां अन्नपूर्णा का अवतार लिया।

इसके बाद भगवान शिव ने मां अन्नपूर्णा से भिक्षा स्वरूप अन्न मांगे। उस अन्न को लेकर पृथ्वी लोक पर गए और उसे सभी प्राणियों में बांट दिए। इससे धरती एक बार फिर धन-धान्य से परिपूर्ण हो गई। इसके बाद से ही मार्गशीर्ष मास की पूर्णिमा तिथि को अन्नपूर्णा जयंती मनाई जाने लगी।

अन्नपूर्णा जयंती पर पूजन

सुबह स्नान आदि से निवृत होने के बाद किचन की साफ सफाई करें। फिर गंगाजल से पूरे घर को पवित्र करें। इसके पश्चात गैस चूल्हे, स्टोव आदि की पूजा करें और मां अन्नपूर्णा की आराधना करें। इस दौरान भगवान शिव और मां अन्नपूर्णा से कामना करें कि आपके यहां कभी अन्न, धन-धान्य की कमी न रहे। इसके पश्चात माता के मंत्र पाठ करें तथा कथा सुनें। फिर आरती से पूजा का समापन करें।

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