जश्न इमाम सादिक़ मनाया गया

जश्न ए विलादत हज़रत इमाम जाफ़र सादिक़ पर बज़्म ए मैकश पर आगरा, ताजनगरी की अदबी तंज़ीम बज़्म ए मैकश की जानिब से जश्न ए विलादत हज़रत इमाम जाफ़र सादिक़ का आयोजन ख़ानक़ाह आलिया कादरिया मेवा कटरा आगरा में सज्जादानशीन हज़रत मुहम्मद अजमल अली शाह के सरपरस्ती में हुआ । इस मौके पर नातिया क़लाम पेश किए गए । इस मौके पर अपने ख़िताब में हज़रत अजमल अली शाह ने कहा कि हज़रत ईमाम जाफर ए सादिक अ.स.आईम्मा ए अहलेबेत के 12 ईमामों मे से छठे ईमाम हैं आप की विलादत मदीना मुनव्वरा मे 17 रब्बी उल् अव्वल 83 हिजरी मुताबिक 20 अप्रेल 702 ईसवी बरोज जुमेरात हुई आप के वालिद हज़रत ईमाम मोहम्मद बाकिर अलेह सलाम और वालदा फरदा बिन्ते कासिम रजि• बिन्ते इब्ने मोहम्मद रजि• बिन हज़रत अबूबक्र सिद्दिक रज़ि• थीं

आप का इल्म कमालत, माहारत, शर्क से गर्ब तक मशहुर है सब का इत्तेफाक है के आप के इल्म से तमाम उलेमा तक कासिर थे

सुन्नियों के सब से बड़े ईमाम फिकह हज़रत ईमाम अबू हनीफा नोमानी रजि• आप के शागीर्द थे और अकीदत भी रखते थे

हज़रत ईमाम अबू हनीफा व गरज हूसूल फैज़ ज़ाहीरी और बातिनी दो साल ईमाम ज़ाफर ए सादिक अ.स. की ख़िदमत मे रहे

इनका सुलूक बातिनी ईमाम की ख़िदमत मे ही मुकम्मल हुआ और जब रुख्सत हुए तो हमेशा फरमाते थे अगर दो साल खिदमत के ना मिलते तो नोमान हलाक हो जाता

नकशबंदी सिलसिले के बड़े बुजूर्ग सुलतान उल अरीफींन हज़रत बायज़िद बिस्तामी रज़ि• अरसे तक सिक्का (पानी भरने वाले ) दरगाह ए ईमाम जाफर ए सादिक अ.स. रहे हज़रत बायज़िद बिस्तामी रज़ि• का काम और मरतबा आप ही की निगाह ए करम से तकमील को पहूँचा!

वोह कारमात ओ तसर्रूफात जो आपके आबा ओ अजदाद के वक़्त से परदे मे थे आप से बिला तकल्लूफ ज़ाहिर हुए वोह अजीब तरीन इल्म जो वारिसतन सरकार ए दो आलम सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम से सिना ब सिना चले आ रहे थे आप ने ज़ाहिर किये

“आप फरमाते थे पुछ लो जो कुछ पूछना है हमारे बाद कोई ऐसी बातें बताने वाला नही होगा”

आप से बहुत सी करामात ज़ाहीर हुई

एक दिन हज़रत ईमाम जाफर ए सादिक अलेह सलाम एक गली में से गुजर रहे थे देखा एक औरत अपने बाल बच्चों के साथ बेठी

रो रही है आप ने उस से दरयाफत किया क्यूँ रो रही हो ?

उसने कहा मेरे पास एक गाय थी जिसके दूध पर मेरा और मेरे बच्चों का गुजारा था अब वोह गाय मर गयी हेरान हूँ क्या करूँ

ईमाम अलेह सलाम ने दुआ की और अपना पांव गाय पर मारा गायी खडी हुई और चलने लगी !

मुसन्नीफ – मोलाई व मूर्शीदी मेहबूब उल् अरीफींन हज़रत सय्यद मेहबूब उर् रहमान कादरी ,चिश्ती नियाजी र.अ.विडंबना रही कि दुनिया ने इमाम जफ़र अल सादिक की खोजों को हमेशा दबाने की कोशिश की. इसके पीछे उस दौर के अरबी शासकों का काफी हाथ रहा जो अपनी ईर्ष्यालू प्रकृति के कारण इनकी खोजों को दुनिया से छुपाने की कोशिश करते रहे.

इसके पीछे उनका डर भी एक कारण था. इमाम की लोकप्रियता में उन्हें हमेशा अपना सिंहासन डोलता हुआ महसूस होता था. इन्हीं सब कारणों से अरबी शासक मंसूर ने 765 में इन्हें ज़हर देकर शहीद कर दिया. और दुनिया को अपने ज्ञान से रोशन करने वाला यह सितारा हमेशा के लिए धरती से दूर हो गया.
आयोजन का संचालन शाहिद नदीम ने किया। इस मौके पर रिज़वान अहमद क़रार, नदीम हाजी तौफीक साहब, मुबारक अली, नायब ओबैसी , जमील उद्दीन चाँद नियाज़ी, सईद उल्ला माहिर, अफ़ज़ल अकबराबादी, भईया ज़ाहिद क़ुरैशी, निसार अहमद वगैरह मौजूद रहे

E-Paper