कब और क्यों लगाया जाता है राष्ट्रपति शासन.?

राष्ट्रपति शासन या केन्द्रीय शासन, भारत में शासन के संदर्भ में उस समय प्रयोग किया जाने वाला एक पारिभाषिक शब्द है, जब किसी राज्य सरकार को भंग या निलंबित कर दिया जाता है और राज्य प्रत्यक्ष संघीय शासन के अधीन आ जाता है! भारत के संविधान का अनुच्छेद -356 केंद्र की संघीय सरकार को राज्य में संवैधानिक तंत्र की विफलता या संविधान के स्पष्ट उल्लंघन की दशा में उस राज्य का भूत वाला सरकार को बर्खास्त कर उस राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू करने का अधिकार देता है! राष्ट्रपति शासन उस स्थिति में भी लागू होता है, जब राज्य विधानसभा में किसी भी दल या गठबंधन को स्पष्ट बहुमत नहीं हो! राष्ट्रपति शासन से जुड़े प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 356 और 365 में हैं, राष्ट्रपति शासन लगने के बाद राज्य सीधे केंद्र के नियंत्रण में आ जाता है!

महाराष्ट्र में बीजेपी-शिवसेना के बीच बात नहीं बन पाई है और राष्ट्रपति शासन लगने की संभावना है! महाराष्ट्र में सरकार गठन को लेकर गतिरोध जारी है! शिवसेना मुख्यमंत्री पद को लेकर अड़ी रही और उसने भाजपा से राज्य की सत्ता में बने रहने के लिए ‘कार्यवाहक’ सरकार के प्रावधान का दुरुपयोग नहीं करने को कहा! महाराष्ट्र में विधानसभा का कार्यकाल 9 नवंबर को हुआ है, लेकिन सरकार बनाने के लिए किसी एक दल या गठबंधन ने दावेदारी साबित नहीं हो सकी है, ऐसे में महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन के हालात बनते दिखने लगे, दरअसल, किसी भी राज्य में जब राज्यपाल को लगता है कि कोई भी पार्टी सरकार बनाने की स्थिति में नहीं है तो वह राष्ट्रपति शासन की सिफारिश करते हैं! इसके अलावा यदि राज्य सरकार केंद्र सरकार द्वारा दिये गये संवैधानिक निर्देशों का पालन नहीं करती है तो उस हालत में भी राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाया जा सकता है!दोनों सदनों की मंजूरी जरूरी, राष्ट्रपति शासन से जुड़े प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 356 और 365 में हैं! राष्ट्रपति शासन लगने के बाद राज्य सीधे केंद्र के नियंत्रण में आ जाता है! किसी भी राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाए जाने के दो महीनों के अंदर संसद के दोनों सदनों से इसका अनुमोदन किया जाना जरूरी है! किसी भी राज्य में एक बार में अधिकतम 6 महीने के लिए ही राष्ट्रपति शासन लगाया जा सकता है! वहीं, किसी भी राज्य में अधिकतम तीन साल के लिए ही राष्ट्रपति शासन लगाने की व्यवस्था है! इसके लिए भी हर 6 महीने में दोनों सदनों से अनुमोदन जरूरी है!

राष्ट्रपति शासन से जुड़े प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 356 में दिए गए हैं! आर्टिकल 356 के मुताबिक राष्ट्रपति किसी भी राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा सकते हैं यदि वे इस बात से संतुष्ट हों कि राज्य सरकार संविधान के विभिन्न प्रावधानों के मुताबिक काम नहीं कर रही है! ऐसा जरूरी नहीं है कि राष्ट्रपति उस राज्य के राज्यपाल की रिपोर्ट के आधार पर ही यह फैसला लें! यह अनुच्छेद एक साधन है जो केंद्र सरकार को किसी नागरिक अशांति जैसे कि दंगे जिनसे निपटने में राज्य सरकार विफल रही हो की दशा में किसी राज्य सरकार पर अपना अधिकार स्थापित करने में सक्षम बनाता है! संविधान में इस बात का भी उल्लेख है कि राष्ट्रपति शासन लगाए जाने के दो महीनों के अंदर संसद के दोनों सदनों द्वारा इसका अनुमोदन किया जाना जरूरी है! यदि इस बीच लोकसभा भंग हो जाती है तो इसका राज्यसभा द्वारा अनुमोदन किए जाने के बाद नई लोकसभा द्वारा अपने गठन के एक महीने के भीतर अनुमोदन किया जाना जरूरी है! जब किसी सदन में किसी पार्टी या गठबंधन के पास स्पष्ट बहुमत ना हो . राज्यपाल सदन को छः महीने की अवधि के लिए ‘निलंबित अवस्था’ में रख सकते हैं!छः महीने के बाद, यदि फिर कोई स्पष्ट बहुमत प्राप्त ना हो तो उस दशा में पुन: चुनाव आयोजित किए जाते हैं!यदि संसद के दोनों सदनों द्वारा राष्ट्रपति शासन का अनुमोदन कर दिया जाता है तो राष्ट्रपति शासन छः माह तक चलता रहेगा! इस प्रकार 6-6 माह कर इसे तीन वर्ष तक आगे बढ़ाया जा सकता है!अनुच्छेद 356, केंद्र सरकार को किसी राज्य सरकार को बर्खास्त करने और राष्ट्रपति शासन लगाने की अनुमति उस अवस्था में देता है, जब राज्य का संवैधानिक तंत्र पूरी तरह विफल हो गया हो! यह अनुच्छेद एक साधन है जो केंद्र सरकार को किसी नागरिक अशांति जैसे कि दंगे जिनसे निपटने में राज्य सरकार विफल रही हो की दशा में किसी राज्य सरकार पर अपना अधिकार स्थापित करने में सक्षम बनाता है! राष्ट्रपति शासन के आलोचकों का तर्क है कि अधिकतर समय, इसे राज्य में राजनैतिक विरोधियों की सरकार को बर्खास्त करने के लिए एक बहाने के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है, इसलिए इसे कुछ लोगों के द्वारा इसे संघीय राज्य व्यवस्था के लिए एक खतरे के रूप में देखा जाता है! 1950 में भारतीय संविधान के लागू होने के बाद से केन्द्र सरकार द्वारा इसका प्रयोग 100 से भी अधिक बार किया गया है! अनुच्छेद को पहली बार 31 जुलाई 1957 को विमोचन समारम के दौरान लोकतांत्रिक तरीके से चुनी गयी केरल की कम्युनिस्ट सरकार बर्खास्त करने के लिए किया गया था। बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद उत्तर प्रदेश की भाजपा की राज्य सरकार को भी बर्खास्त किया गया था!अनुच्छेद 355 केंद्र सरकार अधिकृत करता है ताकि वो किसी बाहरी आक्रमण या आंतरिक अशांति की दशा में राज्य की सुरक्षा सुनिश्चित कर सके और प्रत्येक राज्य का शासन संविधान के प्रावधानों के अनुसार चलता रहे! इस अनुच्छेद का इस्तेमाल तब किया गया जब भाजपा शासित राज्यों में गिरिजाघरों पर हमले हो रहे थे! तब के संसदीय कार्य मंत्री वायलार रवि ने अनुच्छेद 355 में संशोधन कर, राज्य के कुछ भागों या राज्य के कुछ खास क्षेत्रों को केंद्र द्वारा नियंत्रित करने का सुझाव दिया था!

मोदी कैबिनेट ने की महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन की अनुशंसाचुनाव परिणामों के बाद राज्य में नहीं हो पा रहा था सरकार गठन
महाराष्ट्र में सत्ता का संघर्ष अब समाप्त हो चुका है, राज्य में राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया है! विधानसभा चुनावों में बीजेपी-शिवसेना महायुति को बहुमत मिलने के बाद भी सरकार गठन में उनकी आपस में ठन गई और दोनों ही दलों के रास्ते अलग हो गए, इसके बाद राज्य में किसी भी दल के पास बहुमत न होने की वजह से मतगणना, 24 अक्टूबर के बाद से अब तक राज्य में सरकार गठन नहीं हो पाया था!राष्ट्रपति शासन
किसी भी राज्य में राष्ट्रपति शासन लगने के बाद अगर कोई राजनीतिक दल सरकार बनाने के लिए जरूरी सीटें (बहुमत) हासिल कर लेता है, तो राष्ट्रपति शासन हटाया भी जा सकता है! किसी भी राज्य में राष्ट्रपति शासन किन परिस्थितयों में लगता है और इसके क्या प्रावधान होते हैं! महाराष्ट्र की बात करें तो यहां राष्ट्रपति शासन इसलिए लगाया गया है क्योंकि चुनावों में किसी भी दल या गठबंधन के पास बहुमत नहीं है!महाराष्ट्र की बात करें तो राज्य में 21 अक्टूबर को हुए चुनावों में 105 सीटें जीत कर सबसे बड़े दल के तौर पर उभरी भाजपा और 56 सीटें जीतने वाली उसकी सहयोगी पार्टी शिवसेना ने अब तक साथ-साथ या अलग-अलग, सरकार बनाने का दावा पेश नहीं किया है! चुनाव लड़ने वाले ये दोनों दल चुनाव नतीजे आने के बाद से मुख्यमंत्री पद साझा किए जाने को लेकर उलझे हुए हैं! बीजेपी औऱ शिवसेना के बाद एनसीपी की बारी थी! लेकिन इससे पहले ही मोदी कैबिनेट ने राष्ट्रपति शासन पर फैसला ले लिया है और राष्ट्रपति को सिफारिश भेज दी! जिसके बाद राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने भी राज्य में राष्ट्रपति शासन को मंजूरी दे दिया!महाराष्ट्र का सत्ता संघर्ष आखिरकार राष्ट्रपति शासन पर जाकर रुक गया!

सत्तारूढ़ पार्टी या केंद्रीय (संघीय) सरकार की सलाह पर, राज्यपाल अपने विवेक पर सदन को भंग कर सकते हैं, यदि सदन में किसी पार्टी या गठबंधन के पास स्पष्ट बहुमत ना हो, राज्यपाल सदन को छह महीने की अवधि के लिए ‘निलंबित अवस्था’ में रख सकते हैं! छह महीने के बाद, यदि फिर कोई स्पष्ट बहुमत प्राप्त ना हो तो उस दशा में पुन: चुनाव आयोजित किये जाते हैं!इसे राष्ट्रपति शासन इसलिए कहा जाता है क्योंकि, इसके द्वारा राज्य का नियंत्रण बजाय एक निर्वाचित मुख्यमंत्री के, सीधे भारत के राष्ट्रपति के अधीन आ जाता है, लेकिन प्रशासनिक दृष्टि से राज्य के राज्यपाल को केंद्रीय सरकार द्वारा कार्यकारी अधिकार प्रदान किये जाते हैं! प्रशासन में मदद करने के लिए राज्यपाल आम तौर पर सलाहकारों की नियुक्ति करता है, जो आम तौर पर सेवानिवृत्त सिविल सेवक होते हैं! आमतौर पर इस स्थिति में राज्य में केंद्र में सत्तारूढ़ पार्टी की नीतियों का अनुसरण होता है!जम्मू और कश्मीर में राष्ट्रपति शासन को राज्यपाल शासन कहा जाता हैं!

उत्तर प्रदेश में अबतक 10 बार राष्ट्रपति शासन लग चुका है, उत्तर प्रदेश में पहली बार राष्ट्रपति शासन 25 फरवरी 1968 से 26 फरवरी 1969 तक लगाया गया था! राज्य में यह पहला मौका था जब एक साल दो दिन की अवधि तक के लिए राष्ट्रपति शासन लगा!इसके बाद 1 अक्टूबर, 1970 से 18 अक्टूबर, 1970 तक यानी 18 दिन के लिए यूपी में राष्ट्रपति शासन लगाया गया! इस दौरान विधान सभा को निलम्बित किया गया! उत्तर प्रदेश में तीसरी बार 13 जून, 1973 से 8 नवम्बर, 1973 तक राष्ट्रपति शासन लगाया गया! कुल मिलाकर 4 महीने 25 दिन के लिए राष्ट्रपति शासन लगाया गया!उत्तर प्रदेश में राष्ट्रपति शासन 1952 से अब तक पहली बार 25 फरवरी, 1968 से 26 फरवरी, 1969 तक विधान सभा निलम्बित तथा 15 अप्रैल, 1968 को विधान सभा भंग 1 वर्ष 02 दिन,दूसरी बार 1 अक्टूबर,1970 से 18 अक्टूबर,1970 तक
विधान सभा निलम्बित 18 दिन,तीसरी बार 13 जून, 1973 से 8 नवम्बर,1973 तक विधान सभा निलम्बित 4 माह 25 दिन,चौथी बार 30 नवम्बर, 1975 से 21 जनवरी, 1976 तक,विधान सभा निलम्बित1 माह 22 दिन,पाचवीं बार 30 अप्रैल, 1977 से 23 जून, 1977 तक विधान सभा भंग1 माह 24 दिन,छठी बार17 फरवरी, 1980 से 9 जून,1980 तक विधान सभा भंग3 माह 21 दिन,सातवीं बार6 दिसम्बर,1992 से 4 दिसम्बर,1993 तक
विधान सभा भंग,11 माह 29 दिन,आठवीं बार18 अक्टूबर, 1995 से 17 अक्टूबर, 1996 तक,18 अक्टूबर, 1995 को निलम्बित 27 अक्टूबर,1995 को विधान सभा भंग,11 माह 29 दिन,नौवीं बार17 अक्टूबर, 1996 से 21 मार्च, 1997 तक, विधान सभा निलम्बित 5 माह 04 दिन,दसवीं बार08 मार्च,2002 से 03 मई 2002 तक, विधान सभा निलम्बित1 माह 25 दिन!इंदिरा गांधी के समय मे सबसे ज्‍यादा 50 बार लगाया था राष्‍ट्रपति शासन!देश में राष्‍ट्रपति शासन लगाने वाले प्रधानमंत्रियों में इंदिरा गांधी का नाम सबसे आगे है! उन्‍होंने जनवरी 1966 से मार्च 1977 के बीच 35 बार और जनवरी 1980 से अक्‍तूबर 1984 के बीच 15 बार राष्‍ट्रपति शासन लगाया गया हैं!मार्च 1999 से मई 2004 तक प्रधानमंत्री रहने वाले अटल बिहारी वाजेपयी ने पांच बार इस प्रावधान का इस्‍तेमाल किया था! 2004 से 2014 तक प्रधानमंत्री रहे मनमोहन सिंह ने भी 12 बार धारा 356 का इस्‍तेमाल कर राज्‍यों में केंद्रीय शासन लगवाया, वही मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दो साल में तीन बार ऐसा किया! हालांकि, उनके दो फैसलों को सुप्रीम कोर्ट ने पलट दिया!अरुणाचल प्रदेश पर 13 जुलाई को आए सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद एक बार फिर धारा 356 (राज्‍यों में राष्‍ट्रपति शासन लगाए जाने) के दुरुपयोग का मुद्दा गरम हो गया है! ज्‍यादातर केंद्र द्वारा राष्‍ट्रपति शासन लगाए जाने के फैसलों पर विवाद ही होता है!

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